शेख हसीना के सितारे गर्दिश में हैं। इस साल चौथी बार बांग्लादेश का प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद से उन्हें कई समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा है। उनके अच्छे दिन ख़त्म हो गए लगते हैं।
पिछले 15 सालों से शेख हसीना बांग्लादेश पर सख्ती से शासन करती आ रहीं हैं। इस सख्ती से देश को फायदा भी हुआ है। आर्थिक हालात बेहतर हुए हैं और जीडीपी सात प्रतिशत प्रति वर्ष की गति से बढ़ती रही है। उनका राज इतना सफल रहा है कि बांग्लादेश की चर्चा चारों ओर होने लगी है। देश ने आर्थिक बदहाली से निकलकर आर्थिक बेहतरी की ओर बढ़ने की एक नजीर पेश की है। फीनिक्स (एक मिथकीय पक्षी जो अपनी राख से पुनः जन्म लेता है) की तरह उनकी आंखों में दृढ़ संकल्प नजर आता था और उनकी चाल-ढ़ाल में आत्मविश्वास। उन्होंने 17 करोड़ लोगों को गरीबी के अभिशाप से बाहर निकाला, इस्लामिक आतंकवाद का मुकाबला किया और अपने पड़ोसी देशों से और देश के शत्रुओं से भी अच्छे रिश्ते कायम किए। वे हमेशा आकर्षक बहुरंगी साड़ी पहनती हैं और उनके होठों पर लुभाने वाली मुस्कान रहती है। शेख हसीना दुनिया की सबसे लंबे समय तक शासन करने वाली और सर्वाधिक कामयाब महिला शासक बन गईं।
मगर यह फीनिक्स जैसे-जैसे ऊंचा, और ऊंचा उड़ता गया, वैसे-वैसे उसकी सत्ता की भूख बढती गयी। वे सख्त से कठोर बन गई। वे तानाशाह बन गईं। तानाशाहों को विरोध बर्दाश्त नहीं होता। उनकी नीतियों से समाज में भय व्याप्त हो गया। लोग दो भागों में बंट गए। जो उनके आगे झुक गए, उन्हें पुरस्कृत किया गया और जिन्होंने उनकी आलोचना की उन्हें जेलों में ठूंस दिया गया। निष्ठुरता से शासन चलाने के कारण बांग्लादेश का लोकतंत्र कलंकित हो गया और उसका दम घुटने लगा। इस साल हुए चुनाव भी एकतरफा थे क्योंकि विपक्षी नेताओं को जेलों में डाल दिया गया था। बिना किसी खास विरोध के शेख हसीना एक बार फिर सत्ता पर काबिज हो गईं।
लेकिन आखिर जनता को कब तक दबाया जा सकता है? जाहिर है कि हमेशा के लिए नहीं। नतीजतन, बांग्लादेश में शेख हसीना और उनकी सरकार को जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
इसकी शुरूआत एक जुलाई को हुई जब विद्यार्थियों ने सरकारी नौकरियों में आरक्षण समाप्त करने की मांग के समर्थन में विशाल प्रदर्शन किया। पांच जुलाई को हालात और बदतर हो गए जब उच्च न्यायालय ने आरक्षण जारी रखने के पक्ष में फैसला सुनाया। लेकिन 14 जुलाई को शेख हसीना की इस निंदनीय टिप्पणी के बाद तो कहर बरपा हो गया कि ‘‘उन्हें (प्रदर्शनकारियों को) स्वाधीनता सेनानियों से इतना विद्वेष क्यों है? यदि स्वाधीनता सेनानियों के नाती-पोतों को आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाएगा तो क्या इसका लाभ रजाकारों के नाती-पोतों को दिया जाएगा?”
‘‘रजाकार” बांग्लादेश में एक अपमानजनक शब्द है – भारत में जयचंद की तरह। इस शब्द का इस्तेमाल 1971 के युद्ध में पाकिस्तान का साथ देने वाले बांग्लादेशियों के लिए किया जाता है।
इसके बाद तो मानो विश्वविद्यालयों के छात्रों ने शेख हसीना के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। उनकी पुलिस और सत्ताधारी दल की विद्यार्थी शाखा के गुंडों से विद्यार्थियों की मुठभेड़ें हुईं। विद्यार्थी सरकारी टीवी स्टेशन में घुस गए और हिंसा देश के 64 में से करीब आधे जिलों में फैल गई। जवाबी कार्यवाही करते हुए सरकार ने सेना की तैनाती कर दी और 20 जुलाई से राष्ट्रव्यापी कर्फ्यू लागू करते हुए उपद्रवियों को देखते ही गोली मारने का आदेश जारी कर दिया गया। इंटरनेट भी बंद कर दिया गया, जिसे 23 जुलाई को आंशिक रूप से बहाल किया गया।
सरकार द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक अब तक हुई हिंसा में 150 लोग अपनी जान गँवा चुके हैं। लेकिन शायद वास्तविक संख्या इससे ज्यादा है। बड़ी संख्या में लोग घायल भी हुए हैं। मगर अब भी जनता और शेख हसीना – दोनों का एक-दूसरे से बदला लेने पर आमादा दिख रहे हैं।
शेख हसीना के सत्तासीन रहते बांग्लादेश में इस तरह के अशांति के हालात बनना अभूतपूर्व है। लेकिन उन्होंने स्वयं मुसीबत मोल ली है और इसके लिए वे स्वयं जिम्मेदार हैं। शेख हसीना सत्ता के मद में इस हद तक मगरूर हो गई थीं कि उन्हें जमीनी हालातों का अहसास ही नहीं था। उनके द्वारा किया गया सरकारी संस्थाओं का दुरूपयोग और उनके नेतृत्व वाली अवामी लीग से जुड़े लोगों और सरकार के संगी-साथी व्यापारियों व उद्योगपतियों द्वारा किए जा रहे भयावह स्तर के भ्रष्टाचार से बांग्लादेश आर्थिक दृष्टि से खोखला होने लगा है। आलोचकों के प्रति उनका रवैया शुरू से ही प्रतिशोधात्मक रहा है लेकिन उनकी तुलना रजाकारों से करने जनता में जबरदस्त आक्रोश की लहर फैल गई। यदि शेख हसीना को जनता में उनके प्रति खौल रहे आक्रोश को नहीं समझा और अपना रवैया नहीं बदला तो उन्हें और बांग्लादेश को प्रलयंकारी हालातों का सामना करना पड़ेगा। यदि हालात और बिगड़े तो उसका नतीजा भयानक खून-खराबे के रूप में सामने आएगा।
शेख हसीना ने राख से एक नया बांग्लादेश गढ़ा और आज वे ही उस बांग्लादेश को जलाकर राख करने पर आमादा दिख रही हैं। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)