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चुनाव 2024 का सत्य

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गौर करे, इन पंक्तियों पर!

हां, आग्रह है आम चुनाव 2024 के पचहत्तर दिनों में मेरे लिखे कॉलम ‘अपन तो कहेंगे’ और ‘गपशप’ के शीषर्क, और उनके सार-संक्षेप (विस्तार से पूरा पढ़ना हो तो www.nayaindia.comविजिट करें।) की इन लाईनों पर चुनाव नतीजों के संदर्भ में गौर करें-

उम्मीद रखें, समय आ रहा!यों रावण ने भी राम को थका दिया था। वह अजय भाग्य जो पाए हुए था। लेकिन समय के आगे भला अहंकार कितना दीर्घायु होगा? इस सत्य को मैंने बतौर पत्रकार, 12 प्रधानमंत्रियों के आने-जाने के अनुभवों में बारीकी से बूझा है। इसलिए न तो समय पर अविश्वास करना चाहिए और न उम्मीद छोड़नी चाहिए।…लब्बोलुआब में मतदान के दो चरणों के संकेत हैः 1- भाजपा के सीटिंग सांसदों के खिलाफ नाराजगी, एंटी-इन्कम्बेंसी भारी है। 2- भाजपा कार्यकर्ता चुनाव में पहले जैसे एक्टिव नहीं हैं। 3-चुनावी सीट पर स्थानीय जोश और मोदी का माहौल बनवाती भाजपा मशीनरी नहीं है। 4- अधिकांश सीटों पर जात-पांत में वोट पड़ते हुए है। 5- जातीय समीकरण में भाजपा का उम्मीदवार अपनी जाति में ही अधिक वोट ले पा रहा है। 2019 जैसा सर्वजनीय माहौल नहीं है। 6- मोदी का नाम है पर उनका चेहरा अब लोगों से स्वंयस्फूर्त वोट डलवाने वाला चुंबक नहीं रहा।…सो, उम्मीद रखिए और मानिए समय बलवान है। याद है न- तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान। भीलां लूटी गोपियां, वही अर्जुन वही बाण।(29 अप्रैल 2024- अपन तो कहेंगे)

त्रिशंकु लोकसभा के आसारहां, मुझे न चार सौ पार की सुनामी दिख रही है और न किसी एक पार्टी का चार जून को बहुमत होता लगता है। निश्चित ही मोदी के समय यह अनहोनी बात है। मगर ऐसी संभावना खुद नरेंद्र मोदी व अमित शाह अपने हाव-भाव, भाषणों से बतला रहे हैं। नरेंद्र मोदी घबराए हुए हैं। तभी प्रधानमंत्री पद की गरिमा को ताक में रख दिया है। वे मतदान के पहले चरण तक अति आत्मविश्वास में बहुत हांक रहे थे। लेकिन 19 अप्रैल को राजस्थान, यूपी, मध्य प्रदेश, बिहार, छतीसगढ़ आदि में कम मतदान का उन्हें अर्थ समझ आया।(27 अप्रैल 2024- गपशप)

भाजपा की सुनामी दूर-दूर तक नहीं!- नरेंद्र मोदी अब जनसभाओं में चार सौ पार का नारा पहले की तरह हर जगह लगवाते हुए नहीं हैं। मैंने चार सौ सीटों की सुनामी के भाजपा हल्ले पर पंद्रह दिन पहले राज्यवार सीटों की अनुमानित लिस्ट देना शुरू किया था। भाजपा की हवाई सुनामी को पहली लिस्ट में डाला तब भी चार सौ सीटों का आंकड़ा नहीं बना। उसके बाद पिछले सप्ताह (29 मार्च 2024) भाजपा-एनडीए की अधिकतम सीटों का अनुमान 358 सीटों का था। जबकि कांटे के मुकाबले के जमीनी सिनेरियो में गैर-एनडीए पार्टियों की सीटों का अनुमान था 248 सीट। पिछले सात दिनों में माहौल बदला है।…( 6अप्रैल, 2024, गपशप)

मोदी की सुनामी या कांटे का मुकाबला?

मोदी की सुनामी या कांटे का मुकाबला?-18वीं लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ‘चार जून, चार सौ सीट’ का जुमला बोल रहे हैं। लोग (खास कर उत्तर भारत के) अबकी बार मोदी के चार सौ पार के विश्वास में हैं। मतलब यह कि चुनाव में मोदी की आंधी नहीं, बल्कि मोदी की सुनामी है और राजीव गांधी की जीती 414 सीट का रिकार्ड एनडीए तोड़ेगा। लोग कहते हैं ऐसा होगा क्योंकि मोदी और ईवीएम है तो सब संभव है। पर मैं ऐसा नहीं मानता। न नरेंद्र मोदी में क्षमता है और न इतने बडे लेवल पर ईवीएम से फ्रॉड मुमकिन है।…मोदी की सुनामी या कांटे का मुकाबला?.. (23 मार्च2023,गपशप)

400-400 ही क्यों, 500 क्यों नहीं? कहावत है थोथा चना, बाजे घना! और यह बात जनसंघ-भाजपा की राजनीति पर शुरू से लागू है। मेरी याद्दाश्त में यूपी में जनसंघ द्वारा अटल बिहारी वाजपेयी को मुख्यमंत्री बनाने का हल्ला करके विधानसभा चुनाव जीतने की हवाबाजी से लेकर 2004 में शाइनिंग इंडिया और अब विकसित भारत से 400 सीट का शोर इस बात का प्रमाण है कि ढोलबाजी में भाजपा का जवाब नहीं है।... (24 फरवरी 2024 गपशप)

मोदी से लोग लड़ रहे न कि विपक्ष!2024 के चुनाव में अजूबा होगा। मैंने पहले भी लिखा था कि मौन लोग विपक्ष की ओर से चुनाव लड़ते हुए हैं। मेरी यह थीसिस मुझे सात मई के मतदान के दिन साक्षात सही दिखी। उस दिन मैं कोई तीन सौ किलोमीटर घूमा होगा। महाराष्ट्र में मुंबई से दूर तीन लोकसभा क्षेत्रों में। कोंकण इलाके में। इनमें एक रायगढ़ की सीट पर मतदान भी था। तीनों जगह नरेंद्र मोदी नजर आए लेकिन उद्धव ठाकरे, शरद पवार, राहुल गांधी का कहीं कोई होर्डिंग, पोस्टर नहीं था। न पार्टियों के एक्टिविस्ट या वोटर इनका नाम बोलते हुए थे। पर हर जगह लोग…( 11 मई, 2024पशप)

मोदी का सिक्का, हुआ खोटा!मैंने 29 अप्रैल को लिखा था, ‘उम्मीद रखें, समय आ रहा है’! और दो सप्ताह बाद आज क्या तस्वीर? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम के जिस सिक्के से देश चार सौ पार सीटों में खनका हुआ था, वह खोटा हो गया है। वह अपने नाम व दाम से छोटा है और सिक्का बस एक  मुखौटा है। हां, खुद नरेंद्र मोदी के भाषण, शेयर बाजार की खनक और आम चर्चाओं में यह हकीकत आग की तरह फैलते हुए है कि मोदी के सिक्के से अब भाजपा उम्मीदवारों की जीत की गारंटी नहीं है। उम्मीदवारों को अपने बूते, अकेले अपने दम पर पसीना बहाना पड़ रहा है। मोदी का सिक्का प्रचलित जरूर है पर वह खोटा माना जाता हुआ है। वह पुरानी चमक, पुराना वजन गंवाते हुए है। न नाम चल रहा है और न उससे जुड़े विकसित भारत, राम मंदिर, आर्टिकल 370 का चुंबकीय आकर्षण लोगों को मतदान केंद्र की और दौड़ा रहा है। मैंने स्वंय झारखंड में भाजपा के एक नेता की जुबानी सुना कि राम मंदिर का असर नहीं है और न आर्टिकल 370 का!सोचे, यह बात उत्तर प्रदेश के बगल के एक हिंदी प्रदेश में!  लोग अब मोदी की नहीं, बल्कि अपनी-अपनी बात लिए हुए हैं।…जिन्हें सोचना है वे सोचें कि रावण हारेगा नहीं, डोनाल्ड ट्रंप हारेगा नहीं, नरेंद्र मोदी हारेंगे नहीं…और इन सबका सिक्का ईश्वरीय है तो ठीक है। लेकिन यह भी नोट रखें, चींटी हाथी को पगला कर मारती है। छोटी-छोटी बातों से छोटे-छोटे दिमागों में भी अचानक जब  खदबदाहट बनती है तो सोया हुआ व्यक्ति भी वह कर देता है, जिसकी कल्पना तानाशाह नहीं किए हुए होता है।(13 मई 2024)

क्या सचमुच?– विश्वास नहीं होता लेकिन फीडबैक जमीनी है। यूपी की पांचवें राउंड की 14 सीटों में भाजपा को कम से कम चार सीटों का नुकसान है। और नौ सीटों में से कोई भी चार। इसका अर्थ यह है कि भाजपा को भारी नुकसान भी संभव है। 2019 में केवल रायबरेली की अकेली सीट पर विपक्ष जीता था। इस बार रायबरेली के अलावा अमेठी, बाराबंकी, मोहनलालगंज, बांदा, झांसी, कौशांबी, फतेहपुर और फैजाबाद में भाजपा हार सकती है। यदि ऐसा है तब फिर भाजपा का बचा क्या? इसलिए मैं कड़े मुकाबले की नौ सीटों में विपक्ष की चार सीट वैसे ही मान रहा…(25 मई 2024,गपशप)

चुनाव अब जनमत संग्रह!इतिहास बनता लगता है। जनवरी में जो देश अबकी बार चार सौ पार के हुंकारे में गुमसुम था वह मई में विद्रोही दिख रहा है। इसलिए चुनाव अब जनमत संग्रह है। और इसका मुद्दा है मोदी बनाम संविधान-लोकतंत्र। इसके सवाल हैं, जनता को चक्रवर्ती-अवतारी राजा की एकछत्रता चाहिए या संसदीय व्यवस्था? एक कथित सर्वज्ञ नेता की केंद्रीकृत सत्ता चाहिए या विकेंद्रित सरकार? प्रधानमंत्री का पद सार्वभौम हो या जवाबदेह? मनमानी चाहिए या चेक-बैलेंस? कोतवाल चाहिए या कानून? पक्षपात चाहिए या निष्पक्षता? बराबरी चाहिए या गैर बराबरी? निर्भयता चाहिए या भयाकुलता? बुद्धि चाहिए या मूर्खता? अहंकार चाहिए या विनम्रता? रावण चाहिए या राम? देश में मर्यादा, नैतिकता, ईमानदारी और शोभनीयता का मान बना हुआ होना चाहिए या उनका निरंतर अवमूल्यन?आश्चर्य जो ये सवाल अफवाहों में व छोटी-बड़ी बातों से भारत की मंद-बंद बुद्धि में हलचल पैदा किए हुए है!….2024 में शोर है- अबकी बार चार सौ पार तो दूसरी तरफ है- मोदी हटाओ, संविधान बचाओ!(27 मई 2024- अपन तो कहेंगे)

भाजपा का सब तरफ घटना जारी!– लोकसभा चुनाव 2024 में मतदान के पांचवें चरण को लेकर जितनी तरह की रिपोर्ट है उसमें बहुत कुछ उलट-पलट होता लगता है। बावजूद इसके मैं, शुरुआत की अपनी कसौटी में ही अनुमान लगा रहा हूं कि एनडीए की संख्या के घटने की न्यूनतम संभावना क्या है? हालांकि उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र जैसे बड़े प्रदेशों में यह धारणा बनी है कि ईवीएम का मैनेजमेंट हो तो अलग बात है अन्यथा भाजपा पैंदे में जा रही है। बहरहाल पिछले सप्ताह की तरह एनडीए बनाम एनडीए- विरोधी पार्टियों के आंकड़ों में यथास्थिति याकि 267 बनाम 269 की संख्या है। और एनडीए की 267 सीटों में भाजपा की 235 सीटें।(25 मई 2024-गपशप)

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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