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25-04-2025 Vol 19

‘प्रथम’ है फिर भी ‘प्रथम’ की सनक!

डोनाल्‍ड ट्रंप का जवाब नहीं हैं। अमेरिका को सनका दिया है। और सनक मानो छूत की बीमारी जो कई योरोपीय देशों में भी दक्षिणपंथियों की पौ-बारह है। सियासी उथलपुथल है। उस नाते फिर प्रमाणित है कि अमेरिका का छींकना और दुनिया को जुकाम!  सभी की डोनाल्ड ट्रंप पर निगाह है। किस कारण? वजह उनका ‘अमेरिका फर्स्ट’ का नारा है। अर्थात ‘अमेरिका पहले’ बाद में सब! मगर क्या यह उन्नीसवीं सदी से बनी वास्तविकता नहीं है?  अमेरिका ने कब अपनी पंसद, अपनी प्राथमिकता में दुनिया को नहीं ढ़ाला? तभी अमेरिका दुनिया की नंबर एक ताकत बना और उसी की मनमाफिक विश्व व्यवस्था है। जब यह रियलिटी है तो डोनाल्‍ड़ ट्रंप उसे और क्या ‘फर्स्ट’ बनाएंगे?

क्या अमेरिका की आर्थिकी दुनिया में प्रथम नहीं है? क्या वह सैनिक, सांस्कृतिक, भौतिक, बुद्धी-ज्ञान-विज्ञान में प्रथम स्थिति प्राप्त नहीं है?  कह सकते है ट्रंप के कहने का भाव है कि वे वही करेंगे जो प्राथमिक तौर पर अमेरिका के हित में है! जाहिर है उन्होने इस नैरेटिव से अमेरिकीयों को मूर्ख बनाया है कि उनके पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों ने दुनिया की चिंता की जबकि अमेरिका का अहित किया। इसलिए डोनाल्ड़ ट्रंप का प्रण है कि उनकी कमान में अमेरिका सिर्फ अपने स्वार्थों की पूर्ति करेगा। अमेरिका यदि नंबर एक है, दुनिया का दादा है तो ट्रंप प्रशासन अपनी दादागिरी से बाकि देशों को अपनी ऊंगलियों पर नचाएंगे। मनचाहा वैश्विक एजेंडा बनाएंगे!  वे आदेश देंगे और नेतन्याहू, पुतिन, नरेंद्र मोदी, शी जिनपिंग, सऊदी बादशाह, जोर्डन के किंग, मिस्र से राष्ट्रपति सभी उनके आदेश अनुसार काम करेंगे। उन्हे खुश करेंगे और ऐसे अमेरिका फर्स्ट बनेगा।

पर दिखलाई क्या दे रहा है? दुनिया में अमेरिका और डोनाल्‍ड़ ट्रंप को ले कर क्या परसेप्शन, धारणा बनती हुई है?  मोटा मोटी यह कि अमेरिका सनक गया है!  ट्रंप की अंदरूनी और बाहरी राजनीति अमेरिकीयों के साथ नए किस्म की लोक ठगी है। लोगों का बने कुछ नहीं मगर दुनिया में अमेरिका और अमेरिकीयों का मखौल जरूर बनेगा। व्हाईट हाउस मसखरों, जोकरों का ठिकाना हो गया है। कैसी त्रासदी है जो दुनिया का सर्वाधिक पॉवरफुल राष्ट्रपति ट्रंप और दुनिया के नंबर एक अमीर इलान मस्क दोनों जोकर जैसी हरकते कर रहे है और अपने हाथों राष्ट्रपति भवन व्हाउट हाऊस का अवमूल्यन कर रहे है। अमेरिकी पॉवर की गरिमा पैंदे की और है। इलान मस्क ने व्हाइट हाऊस को अपने बच्चों का प्लेग्राउंड बना दिया है। तुर्की के राष्ट्रपति आर्दिऑन और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगे इलान मस्क अपने बच्चों की मासूमियत बेचते हुए थे।

इलान मस्क कई मायनों में ट्रंप शासन की मसखरी का प्रतीक है। अमेरिका को हर कोई हल्केपन में लेता हुआ है। आश्चर्य नहीं जो शनिवार को फिलीस्तीनी उग्रवादी संगठन हमास ने राष्ट्रपति ट्रंप को हैसियत दिखाई। राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने सर्वाधिक चौंकाने वाला, दो टूक अल्टीमेटम हमास को दिया। पहले तो उन्होने गाजा क्षेत्र को लेने का अमेरिकी मंसूबा बताया। फिर हमास को चेतावनी दी कि शनिवार तक सभी इजराइली बंधकों को रिहा करें अन्यथा युद्धविराम रद्द और तब भोगे नरक!

और हमास का जवाब है हमें परवाह नहीं!

सोचे, अमेरिका की कैसी किरकिरी है!  बीस जनवरी से अब तक डोनाल्ड़ ट्रंप ने जैसे जो तैंवर दिखाएं है उनमें एक भारत को छोड़ कर किसी भी दूसरे देश ने ट्रंप प्रशासन की दादागिरी, उनके आदेशों की परवाह नहीं की है। ट्रंप के फैसलों का सबसे बडा विषय विदेश व्यापार है। अमेरिका में दूसरे देशों से आयात हो कर वाले सामानों पर कस्टम ड्यूटी बढ़ाने के है। लेकिन अमेरिका का निर्णय हुआ तो चीन ने पलट कर जवाब दिया तो अपनी अमेरिकी आयात की अपनी कस्टम ड्यूटी बढ़ा दी। ऐसे ही कनाड़ा और मेक्सिकों ने जवाब दिया। कनाडा के सुपर स्टोर, शापिद मॉल में ‘बॉयकाट अमेरिकी सामान की तख्तियां लग गई है। ऐसे ही पहले लगता था लातीनी अमेरिकी देश ट्रंप द्वारा अवैध प्रवासियों की निकासी के आगे कुछ कर नहीं पाएंगे। मगर इस मामले में ये देश भी अलग-अलग रूख अपनाए हुए है। अमेरिकी प्रशासन से कीमत वसूल रहे है। कोलबिंया ने अमेरिका के भेजे विमान को उतरने नहीं दिया। डोनाल्‍ड ट्रंप के विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री की लातिनी देशों और नाटो में कूटनीति या पेरिस में उपराष्ट्रपति वांस की उपस्थिति में उनका स्वागत कम था और असहजता अधिक।

तो अमेरिका दुनिया की निगाह में ग्रेट नहीं हो रहा है। हास्यास्पद बन रहा है। ‘अमेरिका फर्स्ट’ नहीं ‘अमेरिका जोकर’ की इमेज बनती है। पश्चिम एसिया के घोर अमेरिकी परस्त देश जोर्डन, सऊदी अरब, मिस्र भी ‘गाजा’ के मुद्दे पर  डोनाल्ड़ ट्रंप के इरादों की अनदेखी करते हुए है। उन्हे कोई गंभीरता से नहीं ले रहा है। सभी का यह रूख है कि वे कतई गाजा के फिलीस्तिनियों को नहीं लेंगे। यदि ट्रंप ने जबरदस्ती की तो पूरा झमेला अमेरिका के मत्थे। इजराइल के नेतन्याहू मजा लेंगे तो हमास और इस्लामी कट्टरपंथी, मुस्लिम दुनिया का सीधे अमेरिका से टकराव!

सोचे, हमास ने ट्रंप की घोषित शनिवार की डेडलाइन को नहीं माना। तयशुदा प्रोग्राम में तीन बंधक रिहा किए। जाहिर है वह अपनी बात पर अड़ा रहा तो ट्रंप प्रशासन के लिए अब करने को क्या है?  ट्रंप क्या नेतन्याहू का आदेश करेंगे कि गाजा पर कहर बरपाओं? कौन उनकी सनक में पाबंद होगा? यही स्थिति यूक्रेन-रूस लड़ाई में होती दिख रही है। डोनाल्ड ट्रंप ने पुतिन को फोन कर उनका अछूतपना खत्म किया। और मान रहे है कि योरोपीय संघ तथा यूक्रेन फोलो करेंगे? लेकिन पूरी नाटो बिरादरी तथा फ्रांस, जर्मनी, पौलेंड, ब्रिटेन सभी का रूख देखने और सुनने का है और इंतजार कर रहे हैं कि अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगा कर वे पुतिन से क्या करवाते है?  इसी तरह चीन से संबंधों में सब तमाशे की इंतजार में है।

अमेरिका अलग-अलग होता हुआ है। ऐकला चलों की नियति में ट्रंप देश की महाशक्ति को उस मुकाम पर ले जाते हुए जिसमें सब उन्हे करना है और अमेरिका का तमाशा बनेगा। ‘प्रथम’ होने का अमेरिका का रूतबा ‘अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता’ की कहावत को चरितार्थ करेगा।

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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