BJP vs Congress: लाख टके का सवाल है कि वक्फ बोर्ड मामले में मुस्लिम मौलानाओं के साथ खड़े तेजस्वी यादव से कितने यादव वोट छिटक भाजपा को जाएंगे? इस बार का बिहार, बंगाल चुनाव अहम है। दोनों को जीतने के लिए भाजपा महाराष्ट्र से अधिक होशियारी दिखाएगी। बिहार के अगले चुनाव में नीतीश कुमार, जीतनराम मांझी, पासवान पार्टियां सभी निपटेंगी। सोचें, भाजपा ने यदि अकेले ही 243 सीटों की विधानसभा में सवा सौ सीटें जीत लीं तो न सहयोगी पार्टियों का अर्थ बचेगा और न विपक्ष का। (BJP vs Congress)
नीतीश कुमार की पार्टी के जीतने लायक उम्मीदवारों को भी भाजपा अपने चुनाव चिन्ह पर टिकट दे देगी। नीतीश कुमार की जैसी मानसिक दशा है उसमें वे यह भी कह सकते हैं यह जनता दल यू क्या चीज है, मेरी पार्टी तो कमल की है, मोदीजी ही सबके मालिक।
यदि मुसलमानों का हल्ला बना रहा और तेजस्वी के नौजवानों में रोजगार के हल्ले की जगह हिंदू बनाम मुस्लिम धुव्रीकरण का माहौल बना तो भाजपा पौने दो सौ से कम सीटें नहीं पाएगी। सारे जातिवादी नेता हवा में उड़े मिलेंगे। उस नाते जिसने भी सलाह दी वह सही था जो राहुल गांधी ने बिहार में दलित चेहरे को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाने का फैसला किया।
इस अध्यक्ष से यदि जगजीवन राम की जाति के कोई पांच प्रतिशत वोट, लेफ्ट के वंचित वोट, मल्लाह यदि विपक्ष की एकजुट ताकत का हिस्सा हुए तभी ‘इंडिया’ ब्लॉक और तेजस्वी यादव का मुकाबला ठोस बनेगा। (BJP vs Congress)
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बिहार से दलित-मुस्लिम गठजोड़ की बिसात, कांग्रेस की बढ़ती उम्मीदें (BJP vs Congress)
मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी का बिहार में एलायंस की अपनी और से घोषणा करना तथा दलित अध्यक्ष बनाना वह बिसात है, जिसे अपनाया तो असम, बंगाल और उत्तर प्रदेश के चुनावों में भी कारगर होगी। कुछ भी हो, कांग्रेस अकेली पार्टी है जो पुरानी यादों में दलित, आदिवासी और मुसलमानों के लिए भरोसेमंद है।
तय मानें मुसलमान अब जिस मनोदशा में है उससे वह बंगाल में भी कांग्रेस की और देखता हुआ होगा! यदि ममता बनर्जी ने अकेले चुनान लड़ा और कांग्रेस अलग लड़ी तो मुसलमान का वोट कम ही अनुपात में सही मगर बंटेगा और तृणमूल कांग्रेस की वही दशा होगी जो महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की पार्टी की हुई है या हरियाणा में भूपिंदर सिंह हुड्डा और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की हुई है। (BJP vs Congress)
इसलिए सन् 2025 में हिंदू वोटों का समीकरण यदि जस का तस है तो मुस्लिम, दलित, आदिवासी वोटों में कांग्रेस का ख्याल लौटता हुआ है। झारखंड में आदिवासी वोटों का रूख, मुसलमान और ईसाई वोटों के साथ दलित सीटों पर दलितों का रूख बतलाता हुआ है कि कांग्रेस के साथ में रहने से क्षत्रप की राजनीति में एक और एक ग्यारह हो सकते हैं बशर्ते प्रदेश नेता गफलत में नहीं रहें।
धर्म और वोटों के मैक्रो व माइक्रो जुगाड़ों के अलावा मोदी सरकार और भाजपा के पास अब वह कुछ भी नहीं है, जिसमें मुसलमान-दलित-आदिवासी की साझा मनोदशा के आगे मध्य वर्ग, नौजवान और खांटी मोदी विरोधी वोटों में रेवड़ियों या बातों से जादू बने या बना रहे। भाजपा अंदर ही अंदर उतनी ही खोखती है, जितनी कि राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस को माना जाता है।
सत्ता से भले अभी सब चलता हुआ है, मुसलमान को केंद्र में बनाए रखने के प्रोपेगेंडा से ले कर अपने को देवदूत बनाए रखने तक का काम। मगर जमीन की वास्तविकताओं में वोट की गणित और जिंदगी की मुश्किलों में भाजपा की जड़ों को कीड़े लग रहे हैं। बावजूद इसके मुसलमान का तुरूप कार्ड तो है! (BJP vs Congress)