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31-03-2025 Vol 19

वोट बंटवा पाएगी भाजपा

भाजपा की रणनीति में एक खास बात यह है कि वह इस बार अपने दम पर वोट लेकर चुनाव जीतने की बजाय विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के वोट बंटवाने की राजनीति पर ज्यादा ध्यान दे रही है। हर जगह नई पार्टियां खड़ी हो गई हैं। हालांकि भाजपा के नेता कह सकते हैं कि उनका इन पार्टियों से कोई लेना देना नहीं है। लेकिन असल में कहीं न कहीं इन पार्टियों के पीछे भाजपा की ताकत दिख रही है। असल में लोकसभा चुनाव में विपक्षी गठबंधन की एकजुटता का जैसा लाभ कांग्रेस और अन्य पार्टियों को मिला है उसने भाजपा की नींद उड़ाई है। आखिर साथ लड़ कर कांग्रेस के नेतृत्व वाला गठबंधन 204 सीट जीत गया। उसमें ममता बनर्जी के 29 सीट जुड़ते हैं तो विपक्ष 233 सांसदों वाला हो जाता है।

भाजपा को पता है कि उसके वोट में इजाफा नहीं होना है। इसलिए विपक्ष का वोट बंटे तभी उसकी जीत की आस बनती है। तभी सभी राज्यों में नए नेता या नई पार्टियां उभारी जा रही हैं या ऐसे गठबंधन बनवाए जा रहे हैं, जिनसे विपक्ष के वोट कटें। मिसाल के तौर पर हरियाणा में दोनों जाट राजनीतिक करने वाली पार्टियां यानी इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश में दलित राजनीति करने वाली दो पार्टियों से तालमेल कर लिया है। हरियाणा की दोनों प्रादेशिक पार्टियां भाजपा की सहयोगी रही हैं। इनेलो ने बसपा से और जजपा ने चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी से तालमेल किया है। ध्यान रहे हरियाणा में 21 फीसदी के करीब दलित आबादी है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा, उदयभान और कुमारी शैलजा की वजह से कांग्रेस का जाट और दलित समीकरण बना है। लेकिन इनेलो और जजपा के गठबंधन से इसे नुकसान पहुंचाने का प्रयास हो रहा है।

इसी तरह जम्मू कश्मीर में गुलाम नबी आजाद आगे किए गए थे। परंतु उनको वास्तविकता समझ में आ गई है तो वे खराब सेहत के आधार पर पीछे हट गए हैं और कह दिया कि पार्टी के दूसरे नेता नेतृत्व करें। फिर भी सज्जाद लोन की जम्मू कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेंस और अल्ताफ बुखारी की अपनी पार्टी से भाजपा को कुछ उम्मीद है। जेल में बंद इंजीनियर राशिद की आवामी इत्तेहाद पार्टी भी घाटी में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस का वोट काट सकती है। उधर झारखंड में जयराम महतो एक नए खिलाड़ी उभरे हैं, जिन्होंने लोकसभा चुनाव में अच्छी खासी संख्या में महतो वोट काट लिया था। इस बार उनके चुनाव लड़ने की खबर है। इससे महतो वोट कई हिस्सों में बंटने की उम्मीद भाजपा कर रही है, जो आमतौर पर जेएमएम और आजसू के साथ जाता है।

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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