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31-03-2025 Vol 19

मुसलमान कबूल करेगा या खारिज?

Saugat-e-Modi : समय की लीला बेजोड़ है! नरेंद्र मोदी ईद पर मुसलमान को ‘सौगात-ए-मोदी’ दे रहे हैं और फिर उन्हें सौगात-ए-वक्फ बोर्ड मिलेगा! मगर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने वक्फ बिल के खिलाफ आंदोलन शुरू किया है। पटना में मुसलमानों का जोरदार प्रदर्शन हुआ। इस बिल के कानून बनने का अर्थ है कि पूरे देश के उन मुस्लिम धर्मगुरूओं, संस्थाओं की संपदाओं पर सीधा अंकुश, जिसे ले कर उनकी कोई जवाबदेही नहीं थी। यह इस्लाम के उस कुलीन वर्ग पर चोट है, जो अपने उद्देश्यों में वक्फ बोर्ड की अकूत संपत्ति का इस्तेमाल करता आया है। इसलिए हर बड़ा मौलाना, धर्मगुरू, नेता नए कानून के मायने समझ हिला हुआ है। असदुद्दीन ओवैसी का यह कहा अर्थपूर्ण है कि ‘मोदी सरकार कलेक्टर को इतनी शक्तियां दे रही है कि जब तक कलेक्टर किसी भी वक्फ संपत्ति की जांच पूरी नहीं कर लेता, तब तक उसे वक्फ बोर्ड को नहीं सौंपा जाएगा… कोई भी कलेक्टर स्वघोषित जज नहीं हो सकता’। इसलिए ओवैसी की पार्टी से ले कर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमात-ए-इस्लामी हिंद, जमात इस्लामी आदि सभी मुस्लिम संगठन विरोध में उतर आए है। ओवैसी ने सीधे कहा है कि ‘मुसलमान खतरे में हैं’ तो केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने पलट कर जवाब दिया है कि ओवैसी जैसे लोग गृहयुद्ध छिड़वाना चाहते हैं।

इसलिए अब यह वह मसला है, जिससे बिहार, बंगाल, केरल, असम, तमिलनाडु और आखिर में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में तेजस्वी यादव, ममता बनर्जी, राहुल गांधी, स्टालिन, वामपंथी तथा अखिलेश यादव के लिए और मुसलमानों के लिए यह बड़ी चुनौती है कि वे वोट की राजनीति में कैसे अपने को फिट करें? बिहार में गुरूवार को मुस्लिम संगठनों का बड़ा प्रदर्शन हुआ। तेजस्वी यादव और मल्लाहों के नेता मुकेश सहनी याकि विपक्ष ने उसका समर्थन किया। गुरूवार को ही तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने विधानसभा से प्रस्ताव पास करा केंद्र सरकार से वक्फ बिल को पास नहीं कराने की मांग की। पर गृह मंत्री अमित शाह ने गुरूवार को लोकसभा में इमिग्रेशन बिल 2025 पर बोलते हुए बांग्लादेशियों और रोहिंग्या की घुसपैठ को ले कर जो टूक लहजा बतलाया है तो वक्फ बोर्ड बिल के टलने का सवाल नहीं उठता। अगले सप्ताह यह बिल पास हो जाना है। इस बिल पर भी कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, राजद, डीएमके आदि का विरोध तय है। (Saugat-e-Modi)

Saugat-e-Modi: वक्फ बिल और मुस्लिम सियासत की नई चाल (Saugat-e-Modi)

ऐसे में ईद के मौके पर भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चे के जरिए 32 हजार मस्जिदों में गरीब, पसमांदा मुसलमानों में ‘सौगात-ए-मोदी’ के किट को बांटने से कम्युनिटी में क्या भाव बनेगा, इसका अनुमान लगा सकते हैं। पर वक्फ बिल पास हो गया तो उसके बाद विरोध से मुसलमान को हासिल क्या होना है? कांग्रेस और ‘इंडिया’ ब्लॉक के वोटों की गणित क्या बनेगी? तमिलनाडु और केरल में समझ आ सकता है कि मुस्लिम, ईसाई, डीएमके और लेफ्ट का वोट बैंक तब करो या मरो के अंदाज में गोलबंद हो कर विधानसभा चुनाव में भाजपा को फिर हरा दे लेकिन बिहार, बंगाल, असम और उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के हो-हल्ले से भाजपा के लिए छप्पर फाड़ मौका बनेगा या नहीं? विपक्ष के हाथ में वक्फ बोर्ड बिल के खिलाफ की तख्तियों से भाजपा को आसानी है या मुश्किल? (Saugat-e-Modi)

राजनीति जिद्द का नाम है तो संघर्ष का उद्योग भी। महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव ने दो टूक बताया है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की वोट की मशीनरी में वोट लिस्ट के एक-एक वोट का हिसाब लगता है, वोटर के कटने, जुड़ने, खरीदने, वोट नहीं पड़ने देने के वे आधुनिक प्रबंध हैं, जो लालू यादव के जंगल राज में मतपत्रों की लूट शैली से ज्यादा प्रभावी हैं। विपक्ष को पता पड़ता है उससे पहले ही चिड़िया खेत चुग चुकी होती है। जिस मुसलमान को सतर्क और एकमुश्त थोक वोट देने वाला समझा जाता था वह भी कई इलाकों में रोते मिले हैं। ऐसे में यदि ओवैसी ने ‘मुसलमान खतरे में’ के नारे से अपने उम्मीदवार खड़े किए, ममता बनर्जी और कांग्रेस या अखिलेश और कांग्रेस अलग-अलग लड़े तो विपक्ष की बिहार, यूपी, बंगाल में क्या दशा होगी इसका अनुमान लगा सकते हैं। (Saugat-e-Modi)

तो ‘सौगात-ए-मोदी’ का लब्बोलुआब है कि इमिग्रेशन बिल 2025 या वक्फ बिल बोर्ड 2025 से मुस्लिम भौकाल बने और बिहार के दलित हो या ओबीसी, वे भी मौलानाओं के विरोध को देख वही करें जैसे महाराष्ट्र और हरियाणा में किया था। यह वह राजनीति है, जिसमें मुसलमान के कबूल या खारिज करने का कोई महत्व नहीं है!

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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