indian political parties : देश की लगभग सभी क्षेत्रीय पार्टियां एक जैसी दशा में पहुंचती दिख रही हैं। हर पार्टी में संस्थापक नेताओं के निधन या उनके कमजोर होने के बाद उनके उत्तराधिकारियों ने कमान संभाली है और उन उत्तराधिकारियों की कोई दूसरी लाइन तैयार नहीं है।
सभी प्रादेशिक क्षत्रपों के साथ कभी एक करिश्मा जुड़ा था या एक जातीय समीकरण था, जिसके दम पर वे सफल हुए। इसके बावजूद उनके पास पुराने, विचारधारा के प्रति समर्पित और मजबूत जमीनी आधार वाले नेता भी थे।
लेकिन अब किसी भी ऐसे प्रादेशिक क्षत्रप के बेटे ये बेटी के साथ ऐसे नेताओं की जमात नहीं है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि तमाम प्रादेशिक क्षत्रपों के बच्चे बाहर पढ़ाई करते रहे और एक दिन लाकर प्रदेश की राजनीति में स्थापित कर दिए गए। (indian political parties)
वे किसी आंदोलन या राजनीतिक गतिविधि में नहीं रहे तो उनके स्कूल, कॉलेज के सहपाठी तो हैं लेकिन कोई राजनीतिक सहयोगी या हमउम्र नेता नहीं है, जो बराबरी में बात कर सके या सुझाव दे सके।
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अखिलेश यादव के साथ ऐसा कोई है?
सोचें, मुलायम सिंह के साथ आजम खान थे तो बेनी प्रसाद वर्मा, लालजी वर्मा, रामजी लाल सुमन, जनेश्वर मिश्र, कुंवर रेवती रमण सिंह जैसे नेता थे तो अमर सिंह भी थे। (indian political parties)
क्या अखिलेश यादव के साथ ऐसा कोई है? लालू प्रसाद के साथ नीतीश कुमार और शरद यादव के साथ साथ रघुवंश प्रसाद सिंह, शिवानंद तिवारी, प्रभुनाथ सिंह, बैद्यनाथ पांडेय, रघुनाथ झा, मोहम्मद तसलीमुद्दीन जैसे नेता थे।
तेजस्वी यादव के साथ कौन है? शरद पवार के साथ छगन भुजबल थे तो प्रफुल्ल पटेल और नवाब मलिक भी थे लेकिन सुप्रिया सुले के साथ ऐसा कोई नहीं है। (indian political parties)
नवीन पटनायक अभी सक्रिय हैं लेकिन उनके पास भी न तो प्यारी मोहन महापात्र हैं और न दिलीप रे हैं। नीतीश कुमार की तो पूरी टीम ही बिखर गई।
अपनी पार्टी में एक से आखिरी तक वे अकेले हैं। न तो उनका कोई उत्तराधिकारी है और न पार्टी में नंबर दो या तीन का कोई नेता है।
कांग्रेस और लेफ्ट पूरी तरह से खत्म (indian political parties)
ममता बनर्जी अपने साथ कांग्रेस के तमाम दिग्गज नेताओं को लेकर गई थीं। उनके पास सौगत राय से लेकर मुकुल राय और सुदीप बंदोपाध्याय जैसे बड़े और मजबूत नेता था। इनके अलावा भी नेताओं की एक पूरी जमात थी, जो धीरे धीरे हाशिए में जा रही है।
जब वे अपनी पार्टी भतीजे अभिषेक बनर्जी को सौंपेंगीं तो अभिषेक के पास कौन सी टीम होगी? कह सकते हैं कि जैसे जीवन के हर क्षेत्र में गिरावट आई है वैसे ही राजनीति में और नेतृत्व में भी आई है।
लेकिन पहले जैसे कद्दावर नेताओं की जगह कम कद का ही कोई नेता तो होना चाहिए। ऐसा तो नहीं है कि प्रादेशिक क्षत्रपों के बेटे या बेटियां हैं और उनके पीछे बौने लोगों की फौज है! (indian political parties)
आज देश की हालत ऐसी ही हो गई है और इसी का नतीजा है कि नरेंद्र मोदी के लिए राज्य दर राज्य अवसर बनते गए हैं। इसी वजह से ओडिशा का किला ढहा।
पश्चिम बंगाल में पिछली बार भाजपा मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई। कांग्रेस और लेफ्ट पूरी तरह से खत्म हो गए हैं।
70 साल की ममता बनर्जी कब तक भाजपा को रोक पाती हैं यह देखने वाली बात होगी। प्रादेशिक क्षत्रपों की इस स्थिति से कांग्रेस के लिए भी राज्यों में संभावना बन सकती है। (indian political parties)