indian politics : भारतीय राजनीति के बारे में कुछ सत्य ऐसे हैं, जो सार्वभौमिक हैं। जैसे आंदोलन या जनता के बीच काम करके नेता नहीं पैदा हो रहे हैं। न ही वैचारिक प्रतिबद्धता की वजह से नेता बन रहे हैं।
जैसे राजनीतिक अनुभव या योग्यता की बजाय पद पाकर नेता बन रहे हैं। आदि, आदि। इसका अर्थ है कि राजनीति और नेतृत्व की गुणवत्ता में स्वाभाविक रूप से गिरावट है।
अब समाजवादी, साम्यवादी, दक्षिणपंथी, गांधीवादी, उदार लोकतांत्रिक विचारों का अस्तित्व नहीं है। इसलिए इन वैल्यू सिस्टम्स को मानने वाले नेता भी नहीं हैं। (indian politics)
अन्ना हजारे के एक प्रायोजित आंदोलन को छोड़ दें तो इंदिरा गांधी के खिलाफ हुए जेपी आंदोलन के बाद पिछले 50 साल में कोई राजनीतिक आंदोलन नहीं हुआ है।
ऊपर से देश के बड़े नेताओं के असुरक्षा बोध और बेटे या बेटी के अंधमोह ने भारतीय राजनीति को और ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। यह बात लगभग हर पार्टी के बारे में कही जा सकती है, भले वह पार्टी सफल हो या असफल हो।
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महाराष्ट्र की राजनीति मिसाल (indian politics)
मिसाल की शुरुआत दिल्ली और अरविंद केजरीवाल से कर सकते हैं। एक आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी सबसे तेजी से राष्ट्रीय पार्टी बनी। लेकिन पहले दिन अपने असुरक्षा बोध में केजरीवाल ने पार्टी के सारे बड़े नेताओं को निकाल दिया।
आंदोलन में उनका साथ देने वाले और पार्टी बनवाने वाले सभी नेताओं को उन्होंने दो से तीन साल के अंदर बाहर कर दिया। योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, कुमार विश्वास, प्रोफेसर आनंद कुमार, आशुतोष आदि सब पार्टी से बाहर निकाल दिए गए।
उसके बाद बौने लोगों या बिना जमीनी या वैचारिक आधार वाले लोगों को उन्होंने पार्टी में आगे बढ़ाया। हालांकि बाद में उनके भी पद के लालच में झगड़े हुए और अभी तक विभाजन चल ही रहा है।
महाराष्ट्र की राजनीति मिसाल है कि परिवार का विवाद कैसे पार्टी और नेतृत्व को खत्म करता है। वहां बाल ठाकरे और शरद पवार जैसे बड़े नेताओं की पार्टी टूट गई। (indian politics)
अब दोनों की पार्टियां अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं। शरद पवार जैसे दिग्गज नेता ने अपने असुरक्षा बोध में भतीजे अजित पवार को हमेशा उप मुख्यमंत्री बनाए रखा। जब उनकी पार्टी कांग्रेस से बड़ी हो गई, कांग्रेस से ज्यादा सीट जीत गई, तब भी उन्होंने अजित पवार को मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया।
दूसरे यादव नेता पार्टी से दूर
बाद में अजित पवार ने पार्टी तोड़ी और अब शरद पवार की आंखों के सामने उनकी पार्टी आठ विधायकों वाली रह गई है। उन्होंने बेटी के मोह में ऐसा किया तो बाल ठाकरे ने बेटे के मोह में राज ठाकरे की अनदेखी की, जिससे राज ठाकरे पार्टी तोड़ कर गए।
बाद में उद्धव ठाकरे ने भी ऐसी ही राजनीति की, जिससे एकनाथ शिंदे को तोड़ने का भाजपा को मौका मिला। महाराष्ट्र के सबसे बड़े पिछड़े नेताओं में से एक गोपीनाथ मुंडे का परिवार बिखर गया। (indian politics)
धनंजय मुंडे एनसीपी में अजित पवार के साथ हैं और पंकजा मुंडे भाजपा के साथ। अब राज्य में चार प्रादेशिक पार्टियां हैं। दो शिव सेना और दो एनसीपी। लेकिन किसी के पास दूसरी लाइन का नेतृत्व नहीं है, जिससे भाजपा और कांग्रेस के लिए स्थायी जगह बनती दिख रही है।
बिहार में लालू प्रसाद जैसे बड़े नेता ने अपने बेटे तेजस्वी यादव को उत्तराधिकारी बनाया। एक एक करके उनकी पार्टी के सारे बड़े नेताओं का या तो निधन हो गया या वे पार्टी छोड़ कर चले गए या उनको मौका नहीं दिया गया। एक समय लालू प्रसाद की पार्टी में दर्जनों बड़े नेता होते थे।
लेकिन बाद में स्थिति यह हो गई कि वे हर ताकतवर युवा नेता से अपने बेटे को खतरा देखने लगे। तभी उन्होंने पप्पू यादव को समाप्त करने की सारी राजनीति की। दूसरे यादव नेताओं को पार्टी से दूर किया।
य़हां तक कि सीपीआई ने जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष रहे कन्हैया कुमार को 2019 में बेगूसराय से चुनाव लड़ाया तो लालू प्रसाद ने वहां मुस्लिम उम्मीदवार उतार कर कन्हैया की हार सुनिश्चित की क्योंकि उनको लगने लगा कि वे तेजस्वी के लिए खतरा हो सकते हैं। (indian politics)
तेजस्वी को सुरक्षित रखने के लिए सारे नेता निपटा दिए गए और दिल्ली के बड़े कारोबारी या जेएनयू में पड़े या हरियाणा के रहने वाले नेताओं को राज्यसभा भेज कर राजद की राजनीति चल रही है।
योगी आदित्यनाथ का मुकाबला आसान नहीं (indian politics)
पंजाब में अकाली दल आखिरी सांस गिन रहा है। इसकी शुरुआत भी परिवार बिखरने से ही हुई थी। प्रकाश सिंह बादल जैसे दिग्गज को लगने लगा था कि उनके भतीजे मनप्रीत बादल उनके बेटे सुखबीर के लिए खतरा बन सकते हैं।
हालांकि मनप्रीत के अलग होने के बाद अकाली दल एक बार जीती लेकिन अंत की शुरुआत उसी दिन हो गई थी, जिस दिन परिवार अलग हुआ। (indian politics)
उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश को मुख्यमंत्री बना कर अपना उत्तराधिकारी बना दिया था। लेकिन बाद में शिवपाल यादव बनाम अखिलेश के विवाद में उन्होंने जैसी राजनीति की उससे अंततः समाजवादी पार्टी कमजोर हुई।
आज दोनों का विवाद खत्म हो गया है लेकिन तब तक गंगा यमुना में बहुत पानी बह चुका और अब योगी आदित्यनाथ का मुकाबला करना आसान नहीं रह गया है। (indian politics)
मायावती ने अपने हाथों अपनी पार्टी और बहुजन आंदोलन को अपने हाथ से निकलने दिया। चाहे शरद पवार हों या बाल ठाकरे, प्रकाश सिंह बादल, लालू प्रसाद, मुलायम सिंह यादव, एमके करुणानिधि इन सब दिग्गज नेताओं ने अपनी आंखों के सामने अपनी पार्टी की दूसरी लाइन को खत्म किया, जमीनी पकड़ वाले नेताओं को कमजोर किया,
क्षमतावान नेताओं को आगे बढ़ने से रोका और अपने बेटे या बेटी को आगे बढ़ाया। इनमें से कुछ के बेटे या बेटी सफल भी हैं लेकिन उनके लिए आने वाले दिनों में भाजपा और कई जगहों पर कांग्रेस का मुकाबला आसान नहीं होने वाला है। indian politics)