शुक्रवार के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका की उप राष्ट्रपति कमला हैरिस दोनों से विदेश नीति, अंतरराष्ट्रीय राजनीति की अलग-अलग समझ मालूम हुई। प्रधानमंत्री मोदी ने विदेशी जमीन पर कहा कि भारत की पिछली सरकारें सबसे दूरी बनाने की नीति पर चलती थी, लेकिन अब भारत सबके साथ करीबी रिश्ते बना कर रखता है। मोदी ने यह क्यों कहा? पहला कारण, नेहरू और गुटनिरपेक्ष आंदोलन की पिछली सरकारों की विदेश नीति से अपने आपको अलग तथा महान बतलाना था। भक्तों में मैसेज बनाना था कि मैं कितना महान जो आपस में लड़ रहे रूस और यूक्रेन दोनों के नेता उन्हें गले लगाते हुए हैं। दूसरा और असल कारण यह है कि रूस जा कर नरेंद्र मोदी ने तानाशाह पुतिन से जो कंठमाला पहनी तो उससे नाराज अमेरिका, पश्चिमी देशों के साथ वे वैसे ही बैलेंस बना रहे हैं, जैसे हाल में अंदरूनी राजनीति में आगे बढ़ कर पीछे हटे हैं।
उधर कमला हैरिस ने राष्ट्रपति बनने की सूरत में दो टूक घोषण की कि वे अमेरिका के दोस्त देशों के लिए सब कुछ करेंगी तथा लोकतंत्र, स्वतंत्रता के अमेरिकी आदर्शों के पैमाने में दुनिया के तानाशाह नेताओं से संबंध नहीं रखेंगी। वे डोनाल्ड ट्रंप की तरह उत्तर कोरिया जैसे तानाशाह राष्ट्रपतियों के खिलाफ सख्त रहेंगी।
सवाल है मोदी और कमला के कहे का क्या अर्थ है? मोदी का भारत अवसरवादी है। वह बिना मूल्यों और आदर्शों का है। भारत के लिए इस बात का मतलब नहीं है कि कौन दुश्मन है और कौन दोस्त? लोकतांत्रिक, गणतांत्रिक और स्वतंत्रता के उन मूल्यों और आदर्शों का भारत की विदेश नीति में कोई अर्थ नहीं है जो भारत के संविधान में है। न ही नरेंद्र मोदी की विदेश नीति में रूस के पुतिन तथा चीन के शी जिनफिंग की सन् 2022 की उस कसम का मतलब है कि चीन-रूस की दोस्ती अंतहीन (friendship without limits) अटल है। मतलब यदि चीन ने भारत पर हमला किया तो रूस तब भी चीन के साथ होगा न कि भारत के साथ!
जबकि नरेंद्र मोदी कह रहे हैं कि भारत के लिए सब देश बराबर! क्या कोई देश अपनी सुरक्षा, सामरिक रणनीति में ऐसे अंतरराष्ट्रीय संबंध रखता है? भारत क्या चीन और पाकिस्तान से खतरा नहीं मानता? क्या ये दोनों देश दुश्मन नहीं है? भारत के खिलाफ भारत की सीमा पर चीनी सेना की तैयारियां, भारतीय इलाकों पर कब्जा और भारत के पड़ोस में उसकी विरोधी कूटनीति करता हुआ क्या नहीं है? और यदि ऐसा मानें तो रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तब क्यों अभी अमेरिका में उससे अरबों डॉलर की हथियार खरीद का सौदा पटा रहे हैं? क्यों देशी लड़ाकू विमान के लिए अमेरिका से इंजन आपूर्ति में देरी की चिंता है?
दुनिया का हर देश, पाकिस्तान और चीन भी अपने दुश्मन को चिन्हित कर अंतरराष्ट्रीय संबंधों में दुश्मन का दोस्त दुश्मन और दुश्मन का दुश्मन हमारा दोस्त की बेसिक सोच में विदेश नीति बनाते है। इसी अनुसार महाशक्तियों के रिश्ते हैं लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने पोलैंड जा कर यह ज्ञान दिया कि भारत के लिए सब बराबर!
जाहिर है पुतिन के गले लगने के बाद अमेरिका और पश्चिमी देशों ने मोदी सरकार को चेताया तो प्रधानमंत्री मोदी ने ताबड़तोड़ पोलैंड और यूक्रेन जाकर पश्चिम को खुश किया। साथ ही राजनाथ सिंह को अमेरिका भेजा ताकि अमेरिका में दुविधा खत्म हो और वह रक्षा आपूर्ति शुरू करे। ध्यान रहे भारत के कई ऑर्डर अटके हुए हैं।
कह सकते हैं अपने बूते बहुमत नहीं होने के कारण अंदरूनी राजनीति में मोदी सरकार जैसे फंसी है वैसे ही विश्व राजनीति में भी अमेरिका से बैंलेस बनाने की कोशिश है। मतलब कभी इधर-कभी उधर, कभी इस छोर और कभी दूसरे छोर झूलने की झूला विदेश नीति में भारत बुरी तरह भटका है। इसकी एक वजह यह भी है कि मोदी की कूटनीति में अडानी व अंबानी की कमाई का पेंच भी है। रूस और पुतिन से तेल खरीद कर पश्चिम में बेचने का अंबानी का धंधा है तो बांग्लादेश, ऑस्ट्रेलिया, इजराइल, चीन आदि से भी अडानी-अंबानी के हित हैं। तभी मोदी सरकार की विदेश नीति की प्राथमिकता में धंधा है, इमेज के लिए फोटोशूट है लेकिन सुरक्षा, सामरिक तकाजों में दोस्त बनाम दुश्मन का फर्क नहीं है।
जबकि कमला हैरिस और ऋषि सुनक की प्रवासी भारतीय कमान वह बुद्धि, वह साहस लिए हुए थी और है जो महाशक्तिपूर्ण व्यवहार का बेसिक है।