Saturday

01-03-2025 Vol 19

मोदी का अब टाइमपास

नरेंद्र मोदी के पास अब करने को कुछ नहीं है। वे अपनी छाया में वक्त काटते हुए हैं। इसलिए क्योंकि उन्हें देखने, सुनने का जो क्रेज था, वह सूख गया है तो वे करें तो क्या करें! तभी संसद सत्र की शुरुआत के दिन वे यह स्यापा करते हुए थे कि विपक्ष उन्हें बोलने नहीं दे रहा है! इसलिए गौर करें नौ जून 2024 की शपथ से 26 जुलाई के 45 दिनों में नरेंद्र मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री क्या किया? वे केवल यह जतलाते हुए हैं कि देखो, मैंने तीसरी बार शपथ ली। इसे जतलाने के लिए उन्होंने शपथ के दिन राष्ट्रपति भवन में भोंडी भीड़ जमा की। चंद्रबाबू नायडू, नीतीश कुमार की लल्लोचप्पो की। पुराना बासी कैबिनेट जस का तस रखा।

रिटायर हो चुके अफसरों की प्रशासकीय बाबूशाही बनाए रखी। न नया जुमला, न नए दर्शन और न छप्पन इंची छाती। कोई आश्चर्य नहीं जो ऐसा सड़ा केंद्रीय बजट आया है, जिससे पहली बार भारत की संघीय व्यवस्था में हल्ला है कि यह तो राज्यों के साथ भेदभाव वाला बजट। 1977 से आज तक के अपने पत्रकारी अनुभव में मैंने पहली बार राज्यों से बजट के पक्षपातपूर्ण होने को विरोध देखा। तमिलनाडु के स्वभावतः संकोची, मौनी मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने भी इस पर नरेंद्र मोदी को दो टूक चेतावनी दी है!

और नरेंद्र मोदी का यह विलाप कि विपक्ष वाले मुझे बोलने नहीं दे रहे है! मेरा गला घोंट रहे हैं। नरेंद्र मोदी ने पिछले सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर सवा दो घंटे भाषण दिया था। जबकि वे अगले सत्र से पहले यह कहते हुए कि उन्हें बोलने नहीं दिया जा रहा है। क्यों ऐसी मनोदशा? इसलिए क्योंकि अब मोदी की आवाज गूंजती नहीं है। उनके भाषण, जुमलों को लोग लाइक नहीं करते हैं। भाषण को डाऊनलोड नहीं करते हैं। पिछले सत्र में विपक्ष, राहुल गांधी ने अग्निवीर, महंगाई, किसान, बेरोजगारी आदि पर जो बोला था तो उन पर मोदी का जवाब नहीं था। लोगों ने प्रधानमंत्री के भाषण को बकवास माना। और राहुल गांधी के कहे को सच्चा और उन्हें ज्यादा सुना गया तो मोदी में यह कुंठा बनेगी ही कि उन्हें सुना नहीं जा रहा।

पर जब भाषण का क्रेज नहीं है, जुमले फेल हैं, टीआरपी डाउन है तो नरेंद्र मोदी और कुछ क्या करें? इसलिए ले दे कर टाइमपास। शपथ बाद के 45 दिनों पर सोचें। नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने क्या किया है? आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की नसीहतें सुनी-अनसुनी की। योगी आदित्यनाथ के गले में जंजीर बांधनी चाही। पर नाकामायब रहे। पार्टी में अपना अगला कठपुतली अध्यक्ष बैठाना चाहा पर आरएसएस ने ‘हां’ नहीं की। प्रदेशों में उपचुनाव कराने की हिम्मत नहीं हुई। संसद में राष्ट्रपति का अभिभाषण हो या बजट पर बहस, सरकार की तरफ से भाजपा सासंदों में एक का भी कायदे का भाषण नहीं हुआ।

नरेंद्र मोदी हों या अमित शाह, ये  बोलें तो दोनों के दिमाग में राहुल गांधी के अलावा दूसरा कोई नहीं! मोदी ने ‘बाल बुद्धि’ जैसी जो जुमलेबाजी की उससे उलटे सोशल मीडिया और आम नैरेटिव में यह मखौल बना कि राहुल गांधी की तो बाल बुद्धि मगर नरेंद्र मोदी की क्या? संसद में राहुल गांधी की बात तो दूर अभिषेक बनर्जी, महुआ मोइत्रा, अखिलेश यादव, मल्लिकार्जुन खड़गे, कुमारी शैलजा, संजय सिंह, दयानिधि मारन और तो और चन्नी आदि विपक्षी सासंदों ने भी जिस दमदारी से जो बोला है उसके आगे भाजपा का एक भी वक्ता, खुद अमित शाह और नरेंद्र मोदी तर्क और तथ्य से तनिक भी यह मैसेज नहीं बना पाए कि वे सच्चे हैं और विपक्ष झूठा। फिर भले मुद्दा अग्निवीर का हो नीट, बेरोजगारी, महंगाई, एमएसपी, किसान, अंबानी-अडानी, हिंदुत्व का हो या उनकी अपनी किसी जुमलेबाजी का।

सोचें, दस वर्ष के शासन के बाद भी नरेंद्र मोदी के पास दस ऐसी उपलब्धियां नहीं हैं, जिनको आधार बना कर संसद में नरेंद्र मोदी 140 करोड़ लोगों की जिंदगी के दस प्रमाण रख सकें। सच्चे, तथ्यपूर्ण एक भाषण का संसदीय रिकार्ड दर्ज कराएं।

कुल मिलाकर विपक्ष की पौ-बारह है और नरेंद्र मोदी के लिए यथास्थिति और सत्ता में टाइमपास करते रहना है। उनके लिए आम बजट भी मंहगा साबित हुआ है। देश में यह मनोवैज्ञानिक मैसेज बना है कि नरेंद्र मोदी अब चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार के रहमोकरम पर है। डीएमके सांसद दयानिधि मारन ने पते की एक बात कही। उनका कहना था सार्वजनिक खजाने से बेइंतहां पैसा खर्च करके ‘मोदी की गारंटी’ का प्रोपेगेंडा हुआ। लेकिन चुनाव के बाद मोदी की गारंटी अब मोदी का इंश्योरेंस है और वे सत्ता में बने रहने की गारंटी के लिए जनता के पैसे से प्रीमियम भर रहे हैं। मतलब चंद्रबाबू और नीतीश को खुश कर रहे हैं। चंद्रबाबू और नीतीश की गारंटी से अब मोदी की कुर्सी है!

ऐसी दशा में प्रधानमंत्री के लिए करने को बचता क्या है? मोदी में पीवी नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी जैसी बुद्धि तो है नहीं जो अल्पमत सरकार के बावजूद देश को सुधार डालें या व्यवहार से लोगों का दिल जीत कर सर्वजनीय वाहवाही कमाएं।

वह वक्त गया जब नरेंद्र मोदी के झूठे जुमले हिट थे। वे भगवान थे। और तमाम तरह के शृंगारों, झांकियों और अभिनय से लोगों को बहका लेते थे। अब उन्हें चंद्रबाबू, नीतीश बहका रहे हैं और देश-विदेश सभी तरफ लोग नरेंद्र मोदी का भविष्य जान रहे हैं। मोदी के लिए करने को यही है कि वे पुतिन जैसे राक्षसों से गले में माला पहनें और अडानी-अंबानी के जरिए चीन का पैसा भारत में निवेश कर ‘विकसित भारत’ की हवाबाजी के नए झांसे बनाएं। हालांकि चीन भी और विश्व राजनीति में हर तरफ यह जान लिया गया है कि मोदी अब बिना पेंदे के वह लुढ़कते लोटे हैं, जिसे लुढ़कते-लुढ़कते लुढ़कना ही है!

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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