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31-03-2025 Vol 19

कोतवाल कड़क होना चाहिए!

Parliament winter session समाप्त हो गया है लेकिन उसकी गर्मी अभी बची रहेगी। अब संसद की नई इमारत पुलिस के हवाले होगी। सोचें, गुलामी की कथित भावना से मुक्ति के लिए अंग्रेजों की बनाई संसद के सामने एक नई इमारत बनी और एक साल में दूसरी बार ऐसा हुआ कि संसद का मामला सुलझाने के लिए पुलिस का सहारा लिया गया। पिछले साल दिसंबर में ही कुछ लोग संसद में धुआं फैलाने वाली चीजें लेकर पहुंच गए थे और वे सदन में कूद गए थे। उसकी जांच के लिए भी संसद भवन में पुलिस बुलानी पड़ी थी और अब सांसदों की धक्कामुक्की की जांच का जिम्मा भी पुलिस को है।

तभी सवाल है कि क्यों नहीं दोनों सदनों में आसन पर किसी कोतवाल को ही बैठा दिया जाए? सरकार चुन चुन कर आईएएस, आईपीएस अधिकारियों को सांसद और मंत्री बना ही रही है तो आसन पर सबसे कड़क अधिकारी को बैठा दिया जाए, जो इनकाउंटर स्पेशियलिस्ट हो तो और भी अच्छा है।

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यह भी किया जा सकता है कि स्पीकर और सभापति के आसन के नजदीक एक आसन कोतवाल का भी लगा दिया जाए। आखिर यह देश की सर्वोच्च पंचायत की सुरक्षा और उससे भी ज्यादा अनुशासन सुनिश्चित करने का मामला है। कब तक इस मामले में पीठासीन अधिकारी या दोनों सदनों के मार्शलों पर भरोसा किया जाएगा।

हालांकि एक बार जरुरत पड़ी थी तब कृषि बिल पास कराने के समय मार्शल ही काम आए थे। उन्होंन ही विपक्षी सांसदों को बाहर निकाला था, जिसके बाद सांसद बाहर धरना देते रहे थे। बहरहाल, अगर कोई कड़क कोतवाल बैठा रहेगा तो किसी की हिम्मत नहीं होगी नारेबाजी करने, प्रदर्शन करने या धक्कामुक्की करने की। विपक्षी सांसद पीठासीन अधिकारियों पर हेडमास्टर की तरह बरताव करने का आरोप लगाते हैं तो कई सांसदों ने अमित शाह को लेकर भी कहा था कि वे हमेशा गुस्से में रहते हैं और डांटने वाले अंदाज में बात करते हैं। इसके जवाब में उन्होंने सफाई दी थी कि उनकी आवाज ही ऐसी है। लेकिन अगर कोतवाल बैठा होगा तो इसकी जरुरत ही नहीं पड़ेगी। वह खुद सबसे निपटेगा। केंद्रीय एजेंसियों की चाबुक जैसे संसद से बाहर विपक्ष के अनेक नेताओं को नचा रही है वैसे संसद के अंदर कोतवाल के इशारे पर सब कुछ होगा।

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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