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गपशप

सिर्फ चुनाव और राजनीति की चिंता

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पूरे 10 साल देश यह देखता आया है कि संसद, सरकार, शासन-प्रशासन, जनता का कामकाज सब मिथ्या या दोयम दर्जे के काम हैं। असली सच राजनीति है। और प्राथमिक काम भी राजनीति है। सारे फैसले राजनीति और चुनाव को ध्यान में रख कर होते दिखे है। प्रधानमंत्री 24 घंटे राजनीति और चुनावी दांवपेंच में बिजी रहे। अब भी वही होता दिख रहा है। दो बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाले नरेंद्र मोदी को मतदाताओं ने बहुमत नहीं दिया है। भाजपा 240 सीटों पर रूक गई और मोदी को सहयोगी पार्टियों के साथ सरकार बनानी पड़ी। लेकिन ऐसा लग नहीं रहा है कि उन्होंने मतदाताओं का मैसेज समझा है।

तीसरा कार्यकाल शुरू हुआ नहीं कि राजनीति और चुनावी तिकड़में वापिस शुरू है। सरकार के पहले दो हफ्ते के कामकाज को देखें या संसद के पहले सत्र की कार्यवाही देखें, सब कुछ उसी ढर्रे पर होता दिख रहा है, जिस ढर्रे पर देश 10 साल चला है। पहले दो हफ्ते का कुल जमा नतीजा यह है कि मोदी और उनकी टीम को इसकी चिंता है कि कैसे विरोधियों को निपटाया जाए और कैसे चुनावी नैरेटिव अपने पक्ष में किया जाए। यही काम पिछले 10 साल हुआ है।

राजनीति का नैरेटिव बदलने की कोशिश में संसद सत्र के पहले दिन से इमरजेंसी का मुद्दा बनाया गया है। इसका मकसद सिर्फ इतना है कि कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों ने संविधान का मुद्दा बनाया है तो कैसे कांग्रेस को संविधान विरोधी साबित किया जाए। ऐसा लग रहा है कि नौ जून को प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद नरेंद्र मोदी ने प्लान करके ऐसे दिन संसद का पहला सत्र शुरू कराया, जिसके अगले दिन इमरजेंसी की बरसी आती है। तभी पहले दिन उन्होंने इमरजेंसी का मुद्दा बनाया और कांग्रेस पर हमला किया। फिर इमरजेंसी के 50 साल पूरे होने के हवाले लोकसभा में इमरजेंसी के खिलाफ प्रस्ताव ला दिया। इसके बाद राष्ट्रपति के अभिभाषण में इमरजेंसी का बार बार जिक्र हुआ। सोचें, 50 साल पहले इमरजेंसी लगी थी, जिसके लिए देश के मतदाताओं ने कांग्रेस और इंदिरा गांधी दोनों को सजा दे दी थी। कई बार कांग्रेस के नेता इमरजेंसी के लिए माफी मांग चुके। लेकिन अब भी उस बहाने कांग्रेस को पीटने का काम जारी है।

यह कैसी विडम्बना है कि एक तरफ इमरजेंसी के खिलाफ प्रस्ताव पास हो रहा था और दूसरी ओर एक चुने हुए मुख्यमंत्री को जेल से निकलने से रोकने के लिए केंद्र सरकार की एक दूसरी एजेंसी गिरफ्तार कर रही थी। केजरीवाल को ईडी ने मार्च में गिरफ्तार किया था और अब लग रहा था कि उनको जमानत मिलेगी तो उसके एक दिन पहले उनको सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया। सोचें, 1975 की गिरफ्तारियों के बारे में और 2024 की गिरफ्तारियों के बारे में! मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व मंत्री, आईएएस अधिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता, राजनेता आदि झूठे सच्चे आरोपों में गिरफ्तार करके जेल में डाले गए हैं। जिस अपराध में अधिकतम सात साल की सजा होती है उस अपराध के आरोप में बड़े नेता और अधिकारी डेढ़-डेढ़, दो-दो साल से जेल में बंद हैं और अभी तक सुनवाई शुरू नहीं हुई है और बातें 1975 की इमरजेंसी की हो रही है!

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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