मणिपुर के जातीय दंगों और अलग अलग समुदायों के लोगों का एक दूसरे को पहचान कर उन पर हमला करने की खबरे आए दिन आती रहती है। शुक्रवार को यह खबर देखने को मिली कि असम में भाजपा का बिहार दिवस मनाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया। भारतीय जनता पार्टी ने बिहार चुनाव को देखते हुए उन तमाम जगहों पर ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत स्नेह मिलन’ के नाम पर बिहार दिवस मनाने का फैसला किया था। लेकिन असम में स्थानीय संगठनों ने इसका विरोध किया। पूर्वी असम के तिनसुकिया में भाजपा की ओर से 22 मार्च को बिहार दिवस मनाने के फैसले का कई संगठनों ने विरोध किया। प्रतिबंधित संगठन उल्फा (आई) ने इस आयोजन के गंभीर नतीजे भुगतने की चेतावनी दी। उसने इसे असम की संस्कृति और विरासत पर हमला बताया। ध्यान रहे पूर्वी असम के तिनसुकिया इलाके में प्रवासी बिहारियों की अच्छी खासी संख्या है। लेकिन वहां बिहार दिवस मनाने की खबर सामने आने के बाद उल्फा (आई) ने एक बयान जारी करके कहा, ‘हम बाहरी लोगों द्वारा बिहार दिवस का उत्सव बर्दाश्त नहीं करेंगे’।
उल्फा (आई) तो प्रतिबंधित संगठन है लेकिन उसके अलावा ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन, अखिल गोगोई के रायजोर दल और असम जातीय परिषद ने भी बिहार दिवस के आयोजन का विरोध किया। ये चुनाव लड़ने वाले मुख्यधारा के संगठन और पार्टियां है। असम जातीय परिषद के नेता लुरिनज्योति गोगोई ने कहा, ‘जब से बीजेपी सत्ता में आई है, वह लगातार असम पर बिहार और उत्तर प्रदेश की भाषा और संस्कृति थोपने की कोशिश कर रही है। यह बीजेपी-आरएसएस के ‘एक राष्ट्र, एक भाषा, एक धर्म’ के एजेंडे का हिस्सा है’। उन्होंने यह भी कहा कि इसके लिए सरकार हिंदी भाषा और संस्कृति का विस्तार करने और असमिया भाषा और परंपराओं को कमजोर करने का काम कर रही है। इसी तरह असम के विधायक और रायजोर दल के अखिल गोगोई ने भी बिहार दिवस मनाने का विरोध किया। सोचें, क्या फर्क है तमिलनाडु के और असम के विरोध में? तमिलनाडु की एमके स्टालिन की सरकार भी यही कह रही है कि भाजपा एक संस्कृति, एक धर्म, एक भाषा थोपने की कोशिश कर रही है और असम के स्थानीय लोग और संगठन भी यही बात कह रहे हैं। जाहिर है कि कहीं न कहीं बड़ी गड़बड़ है, जिसकी वजह से हर जगह विभाजन बढ़ रहा है। नफरत बन रही है।