Monday

07-04-2025 Vol 19

ताकि संघ को भी मिले श्रेय

सवाल है भाजपा और आरएसएस में अनेक लोगों द्वारा ऐसा क्यों हो रहा है?  शुरुआत मोहन भागवत से करें तो एक बात यह समझ में आती है कि अगर देश की सच्ची आजादी की तारीख 22 जनवरी 2024 स्थापित हो जाती है तो उसका श्रेय भाजपा, आरएसएस और खुद मोहन भागवत को भी मिलेगा। अभी जिस आजादी का उत्सव मनाया जाता है उसका कोई श्रेय आरएसएस के पूर्वजों को नहीं मिलता है। संघ विरोधी हमेशा पूछते रहते हैं कि जब आरएसएस की स्थापना 1925 में हो गई थी तो उसने आजादी की लड़ाई में क्यों नहीं हिस्सा लिया? यह बताया जाता है तत्कालीन संघ प्रमुख ने अंग्रेजों को चिट्ठी लिख कर सुझाव दिया था कि आजादी की सबसे निर्णायक लड़ाई ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ को कैसे कुचला जा सकता है। अगर उस आजादी को नकली साबित कर दिया जाए तो ये सारे सवाल अपने आप ही समाप्त हो जाएंगे।

अगर 22 जनवरी 2024 को सच्ची आजादी का दिन मान लिया जाता है तो उसका श्रेय भागवत को भी इसलिए मिलेगा क्योंकि जिस समय नरेंद्र मोदी सच्ची आजादी दिला रहे थे यानी रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा कर रहे थे उस समय भागवत भी एक तरफ खड़े थे। उससे पहले भी पांच अगस्त 2020 को जब मोदी सच्ची आजादी की निर्णायक लड़ाई की शुरुआत कर रहे थे यानी राममंदिर का शिलान्यास कर रहे थे तब भी भागवत वहां मौजूद थे। हालांकि कई लोग इसमें भी विघ्न डालते रहते हैं। जैसे ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने महाकुंभ के दौरान कह दिया कि अयोध्या में राममंदिर तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बना है उसमें भाजपा का कोई योगदान नहीं है।

बहरहाल, अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई में संघ की भूमिका नहीं के बराबर है। लेकिन सवाल है कि उस समय भी संघ क्या हिंदुओं की आजादी के लिए लड़ रहा था? क्या अंग्रेजों के सामने संघ ने कभी यह मांग रखी कि हिंदुओं के साथ ऐतिहासिक रूप से अन्याय हुआ है और उसे ठीक करना चाहिए। डॉक्टर भीमराव अंबेडकर भी आजादी की लड़ाई नहीं लड़ रहे थे लेकिन यह बात कोई नहीं कहता है क्योंकि उस समय भी उनका लक्ष्य बहुत स्पष्ट था। वे दलितों, वंचितों  के हितों की आवाज उठा रहे थे और अंग्रेजों से इस बात पर मोलभाव कर रहे थे कि दलितों, अछूतों को कैसे मुख्यधारा में स्थापित किया जाए। उनके लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र बनाया जाना अंबेडकर की वजह से संभव हुआ था।

क्या उस समय संघ के लोग अंग्रेजों से इस तरह का कोई मोलभाव हिंदुओं को लेकर कर रहे थे? अंग्रेजों के राज में संघ ने अयोध्या, मथुरा, काशी या संभल जैसे दूसरे धर्मस्थलों की मुक्ति के लिए कितनी बार आंदोलन किया? जिस हिंदू गौरव की स्थापना के लिए एक सौ साल पहले संघ बना था उस गौरव के लिए आजादी के पहले उसने प्रयास किए होते और उसका एजेंडा उस समय भी स्पष्ट होता तो आज उसके लोगों को इतनी सफाई देने की जरुरत नहीं पड़ती।

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *