Monday

31-03-2025 Vol 19

वोट नहीं फिर सौगात क्यों?

Eid : भक्त भड़के हुए हैं। ईद (Eid) के मौके पर सौगात ए मोदी ने उनको भड़काया है। वे पूछ रहे हैं कि क्या फर्क रह गया भाजपा और कांग्रेस में? कांग्रेस भी मुसलमानों को सौगात देती थी और भाजपा भी दे रही है। एक समर्थक का कहना था कि जिस धर्म के लोगों का पास वक्फ बोर्ड की इतनी संपत्ति है उसको खैरात देने की क्या जरुरत है? महात्मा गांधी को मुसलमानों का सबसे बड़ा हितैषी मानने वाली हिंदुवादी जमात के एक व्यक्ति ने लिखा कि यही काम तो महात्मा गांधी करते थे।

उन्हीं के बचे हुए कामों को नरेंद्र मोदी पूरा कर रहे हैं। सच में हिंदुत्व समर्थकों ने नहीं सोचा होगा कि प्रधानमंत्री मोदी मुसलमानों को सौगात बांटेंगे। आखिर उन्होंने मुसलमानों की टोपी पहनने से इनकार कर दिया था और उनके दिल्ली की गद्दी पर बैठने के बाद इफ्तार की दावतें खत्म हो गई थीं। लेकिन यह संयोग है कि इस साल खूब जम के इफ्तार की दावतें हो रही हैं तो दूसरी ओर भाजपा की ओर से 32 लाख वंचित मुसलमानों को ईद (Eid) की किट बांटी जाएगी, जिसमें कपड़े और खाने पीने की चीजें होंगी।

एक किट पर करीब छह सौ रुपए का खर्च आ रहा है। यानी करीब दो सौ करोड़ रुपए की सौगात बांटी जाएगी। भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा देश की 32 हजार मस्जिदों के जरिए यह किट बांटेगा।

सवाल है कि इसका क्या फायदा होगा? क्या भाजपा को यह लग रहा है कि इससे मुस्लिम उसको वोट देने लगेगा? ऐसा तो नहीं हो सकता है। अगर ऐसा होता तो भाजपा का मौजूदा नेतृत्व पहले से और ज्यादा बड़े पैमाने पर इस तरह के काम कर रहा होता। असल में समय समय पर नरेंद्र मोदी इस तरह के काम करते रहते हैं। जैसे कुछ साल पहले हैदराबाद में पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक में उन्होंने पसमांदा मुस्लिमों का मुद्दा उठाया था और पार्टी के नेताओं से कहा था कि वे देश भर के पसमांदा मुस्लिमों तक पहुंचने का प्रयास करें।

उनको बताएं कि केंद्र सरकार के जन कल्याणकारी कामों का उनको कितना फायदा मिल रहा है और उनको फायदा उठाना चाहिए। इसका मकसद मुस्लिम समाज में आर्थिक और सामाजिक स्तर पर जो विभाजन है उस विभाजन को बढ़ा कर एक बड़े समूह को तटस्थ या उदासीन बनाना होता है। ऐसे ही तीन तलाक खत्म करने के कानून के बाद भाजपा ने यह हवा बनाई कि अब मुस्लिम महिलाएं भी नरेंद्र मोदी को वोट करती हैं।

Also Read : पुरानी दुविधाः धर्म या जाति!

सौगात-ए-मोदी: मुस्लिम वोट की हकीकत और सियासी गणित ( Eid)

हकीकत है कि न तो पसमांदा मुस्लिम भाजपा को वोट करता है और न महिलाएं भाजपा को वोट करती हैं। फिर भी भाजपा की ओर से पसमांदा और मुस्लिम महिला का नैरेटिव चलाए रखा जाता है तो उसका एक मकसद यह होता है कि एक समूह को मुस्लिम समाज में प्रचलित भाजपा विरोधी नैरेटिव के प्रति उदासीन बनाया जाए। दूसरा मकसद यह होता है कि वैश्विक बिरादरी और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को एक वैकल्पिक नैरेटिव फीड किया जाए। हालांकि अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं इसके ज्यादा असर में नहीं आती हैं। हाल में ही धार्मिक स्वतंत्रता पर रिपोर्ट देने वाले अमेरिकी आयोग की रिपोर्ट आई है, जिसमें भारत में धार्मिक आजादी और अल्पसंख्यकों के प्रति बरताव को लेकर भारत की आलोचना की गई है।

कोई भी संस्था इस वैकल्पिक नैरेटिव के ट्रैप में नहीं आती है लेकिन इसका एक फायदा यह होता है कि बहुपक्षीय वैश्विक मंचों पर या दुनिया के दूसरे देशों के साथ दोपक्षीय चर्चा में बताने के लिए मोदी के पास कुछ बातें होती हैं। वे मुस्लिम समाज में महिलाओं की स्थिति का जिक्र करके अपने को उनके मसीहा के तौर पर पेश कर सकते हैं। ऐसे ही ईद (Eid) की सौगात भी कुछ सकारात्मक माहौल बना सकती है। इसका एक इस्तेमाल यह भी है कि केंद्र में भाजपा के पास बहुमत नहीं है और कई ऐसी पार्टियां समर्थन दे रही हैं, जो मुस्लिम समाज के प्रति सद्भाव रखती हैं। सौगात बंटने पर उनके पास भी कहने को कुछ रहता है। वे अपने बचाव में इसका जिक्र कर सकते हैं।

हालांकि मुश्किल यह है कि एक तरफ वक्फ बोर्ड बिल का मामला चल रहा है तो दूसरी ओर औगंरजेब की कब्र उखाड़ कर हटाने की बात हो रही है। मुस्लिम समाज आंदोलित है। उनमें इस बात को लेकर नाराजगी है कि भाजपा की केंद्र सरकार और राज्यों की सरकारें मुस्लिम संस्थाओं और मान्यताओं को निशाना बना रही हैं। सोचें, कैसा विभाजन हो गया है कि उत्तर प्रदेश में सरकार ने आदेश जारी किया है कि ईद (Eid) के दिन सड़कों पर नमाज नहीं पढ़ी जाएगी तो उधर बिहार में भाजपा के एक विधायक और राज्य सरकार के मंत्री ने सरकार से अपील की है कि वह सड़कों पर नमाज रुकवाए।

इससे आगे बढ़ कर हरियाणा की भाजपा सरकार ने ऐलान किया है कि ईद (Eid) के मौके पर अब गजेटेड छुट्टी नहीं होगी, बल्कि रेस्ट्रिक्टेड यानी प्रतिबंधित छुट्टी होगी। इसका मतलब है कि जो ईद (Eid) मनाते हैं वे छुट्टी लें और बाकी लोग काम पर आएं। यह भी पहली बार हुआ है।

तभी यह भी लग रहा है कि इन तमाम घटनाओं के बीच सौगात बांट कर ध्यान भटकाया जाए या आलोचकों को बताया जाए कि अगर वह हो रहा है तो यह भी हो रहा है। यानी कुछ सख्ती हो रही है तो कुछ राहत भी दी जा रही है। इसके बावजूद यह तथ्य अपनी जगह है कि भाजपा कुछ भी कर ले उसे मुस्लिम का वोट नहीं मिलेगा। इस बात को समझने के लिए बिहार की सीतामढ़ी सीट के सांसद देवेश चंद्र ठाकुर से जुड़े विवाद को देखा जा सकता है।

वे जनता दल यू के सांसद हैं और जीतने के बाद उन्होंने कहा कि वे मुसलमानों के निजी काम नहीं करेंगे। इस पर विवाद हुआ तो उन्होंने असलियत बताई। उन्होंने कहा कि कई मुस्लिमों ने उनसे कहा कि वे उनको वोट देना चाहते हैं लेकिन जब बटन दबाने की बारी आती है तो तीर के निशान यानी नीतीश कुमार की पार्टी के चुनाव चिन्ह के सामने भी मोदी का चेहरा नजर आने लगता है।

इसके बाद ही देवेश ठाकुर ने कहा कि वे मुस्लिम इलाकों के सामूहिक और सार्वजनिक काम करेंगे लेकिन किसी का निजी काम नहीं करेंगे। मुस्लिम वोट नहीं करेगा इस हकीकत के बावजूद मोदी खैरात बांट रहे हैं। इससे तो मुस्लिम नहीं ही खुश हो रहा है उलटे हार्डकोर समर्थक अलग नाराज हो रहे हैं।

Pic Credit : ANI

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *