विश्वास नहीं होता लेकिन फीडबैक जमीनी है। यूपी की पांचवें राउंड की 14 सीटों में भाजपा को कम से कम चार सीटों का नुकसान है। और नौ सीटों में से कोई भी चार। इसका अर्थ यह है कि भाजपा को भारी नुकसान भी संभव है। 2019 में केवल रायबरेली की अकेली सीट पर विपक्ष जीता था। इस बार रायबरेली के अलावा अमेठी, बाराबंकी, मोहनलालगंज, बांदा, झांसी, कौशांबी, फतेहपुर और फैजाबाद में भाजपा हार सकती है। यदि ऐसा है तब फिर भाजपा का बचा क्या? इसलिए मैं कड़े मुकाबले की नौ सीटों में विपक्ष की चार सीट वैसे ही मान रहा हूं जैसे मैंने राजस्थान, मध्य प्रदेश में चार व तीन मानी है। बावजूद इसके सोचें, उत्तर भारत में नरेंद्र मोदी के नंबर एक गढ़ यूपी में, और यूपी में भी नंबर एक अवध-बुंदेलखंड क्षेत्र में चार सीट भी भाजपा खोती है तो प्रदेश में विपक्ष की 25-30 सीट कही नहीं गई। इस राउंड में भी यह पैटर्न था कि जहां विपक्षी उम्मीदवार के दमदार होने की चर्चा है वहां अधिक मतदान और जो सीट भाजपा की आसान उस पर कम मतदान।
विपक्ष के लिए अनुमानित बाराबंकी में सर्वाधिक 67 प्रतिशत मतदान। वहीं मोहनलालगंज (63 प्रतिशत), बांदा (60 प्रतिशत), हमीरपुर (61 प्रतिशत), फैजाबाद (59 प्रतिशत), झांसी (64 प्रतिशत) में वोट कांटे के मुकाबले की धारणा के अनुसार है। केमिस्ट्री के नाते रायबरेली और अमेठी का हिसाब है तो फैजाबाद (अयोध्या) का मामला इसलिए हैरानी वाला है क्योंकि भाजपा के सीटिंग सांसद लल्लू सिंह ने कहा था कि भाजपा को संविधान बदलने के लिए 400 सीट चाहिए। इसके बाद अखिलेश यादव ने होशियारी दिखाई और इस जनरल सीट पर अनुभवी-स्थापित दलित नेता अवधेश पासी को खड़ा किया। जानकारों की मानें तो सीट की 22 लाख वोटों की गणित में 24 प्रतिशत दलित, 22 प्रतिशत मुस्लिम, फिर यादव सहित समाजवादी-कांग्रेस के परंपरागत वोटों के आधार पर ‘इंडिया’ गंठबंधन की भाजपा के खिलाफ सॉलिड गणित है। मतदान से पहले यह नारा था- अयोध्या में न मथुरा, न काशी सिर्फ अवधेश पासी। एक जानकार के अनुसार मायावती के जाटव वोट भी आरक्षण के हल्ले में सपा के पासी के साथ केमिस्ट्री में पड़े हैं। यह भी नोट रहे 2019 में भाजपा के लल्लू सिंह 60 हजार वोटों से ही जीते थे। तब विपक्ष के वोट बंटे थे। इस बार वैसा बंटवारा नहीं है। सो, आश्चर्य नहीं होगा यदि अयोध्या में सपा का झंडा लहराए।
और जैसा फैजाबाद में मुकाबला है उससे अधिक बाराबंकी, मोहनलालगंज से लेकर कौशांबी तक। मतलब 14 में से 9-10 सीटों पर विपक्ष दमदार। सो विपक्ष की यदि दो मानें या चार या छह, लब्बोलुआब तो यही है कि यूपी में मोदी का वह जादू नहीं है जो 2019 में था।
ऐसे ही झारखंड, बिहार और हरियाणा की ताजा फीडबैक है। मैं यह सुन हैरान हूं कि बिहार में लालू यादव की बेटी का सारण में भाजपा के रूड़ी के आगे ज्यादा जोर है तो बिहार में पाटलीपुत्र, झारखंड में रांची, जमशेदपुर और हरियाणा में फरीदाबाद में भी वह केमिस्ट्री-गणित नहीं है जो 2019 में भाजपा की थी। भला सारण में राजीव प्रताप रूड़ी, फरीदाबाद में कृष्णपाल गुर्जर जैसे भाजपा सांसदों के आगे कांग्रेस या राजद का क्या मतलब है? लेकिन मतलब हो गया है। एक जमीनी जानकार ने बताया कि फरीदाबाद के 16 लाख वोटों में भाजपा उम्मीदवार पांच लाख मोदी भक्तों के वोट ले लें लेकिन बाकी गणित तो एंटी इन्कम्बेंसी, महंगाई, बेरोजगारी और कांग्रेस की गारंटियों की केमिस्ट्री में कांग्रेस के बुजुर्ग गुर्जर नेता महेंद्र प्रताप के लिए है। और इस थीसिस के साथ यह भी नोट करें कि हरियाणा में गुरूग्राम और करनाल की ही दो सीटें भाजपा की सुरक्षित बताई जा रही हैं। कांग्रेस के खाते में पांच पक्की, छठी संभव और सातवीं-आठवीं में मुकाबला।
ऐसी ही गणित झारखंड में है। भाजपा की चार (रांची, गोड्डा, चतरा, कोडरमा) पक्की बाकी खटाई में या मुकाबले में। तब कम से कम का अर्थ निकालें तब भी ‘इंडिया’ गठबंधन कम से कम चार (आदिवासी बहुल) या आदिवासी, दलित, मुस्लिम, विभाजित महतो आदि की विपक्षी गणित में सात या नौ सीटें!
यह सिलसिला (मतलब हर राज्य में भाजपा को नुकसान) प्रथम चरण से शुरू हुआ था और लगातार चलता और बढ़ता हुआ है। तभी पांचवें चरण में यूपी की 14 सीटों में विपक्ष की तीन-चार सीटों की भी सेंध अगले दो चरण और खासकर पूर्वी उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए बहुत खतरनाक हो सकती है।