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भाजपा के अधिकांश टिकट दलबदलुओं को!

मोदी-शाह की भाजपा

नरेंद्र मोदी-अमित शाह ने भाजपा को बदल दिया है। पार्टी दलबदलुओं की हो गई है। पार्टी के अब तक 405 उम्मीदवार घोषित हुए है। मोटा मोटी लगता है इनमें से सौ भी असली भगवा उम्मीदवार नहीं हैं। अधिकांश दलबदलू और संघ परिवार को हिकारत से देखने की बैकग्राउंड वाले हैं। संघ-भाजपा में सालों जो लोग मरे-खपे, कर्मठ क्षेत्रीय-जिला पदाधिकारी हैं वे लगभग आउट हैं। भाजपा के घोषित 405 उम्मीदवारों की सीटों के मौजूदा 291 सांसदों में से 101 भाजपाइयों के टिकट कटे हैं। सवाल है नए चेहरे कैसे हैं? ये चेहरे कौन हैं? Lok Sabha election 2024

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भाजपा की जमीनी राजनीति, संगठन में मेहनत करके उभरे हुए नेता तो कतई नहीं! सभी नरेंद्र मोदी-अमित शाह द्वारा सीटवार हारने-जीतने के सर्वेक्षणों के अनुसार चयनित। और जहां नरेंद्र मोदी के चेहरे पर वोट पड़ने हैं वहां नरेंद्र मोदी द्वारा चयनित। जैसे गुजरात। चौदह नए चेहरों को टिकट मिला है। ये नरेंद्र मोदी द्वारा निजी तौर पर चुने गए वे चेहरे हैं, जिनको चुनने के बाद इन्हे सिर्फ मोदी का जयकारा लगाना है। नरेंद्र मोदी जब मुख्यमंत्री बने थे। उस समय, और उसके बाद की दो पीढ़ी के संगठन के लोग गुजरात में अब आउट हैं। मोदी-शाह की कमान में गुजरात अब उस नई पीढ़ी के भाजपाइयों की हो गई है, जिसका संगठन, आंदोलन, विचारधारा से वैसा नाता नहीं है, जैसा मोदी-शाह का प्रारंभ में हुआ करता था। अधिकांश नए मोदी द्वारा सेलेक्टेड हैं।

सो, भाजपा नाम के संगठन में उम्मीदवार चयन में संगठन का रोल लगभग जीरो है। जिले से पैनल, प्रदेश से पैनल, संघ पदाधिकारियों की छंटनी और संगठन मंत्रियों जैसे राष्ट्रीय स्तर पर बीएल संतोष आदि का सन् 2024 के लोकसभा उम्मीदवारों के चयन में लगभग जीरो और केवल दिखावे का रोल है। दिल्ली में केंद्रीय चुनाव समिति की बैठकों के फोटोशूट खूब छपे लेकिन असलियत में लिस्ट मोदी-शाह की सर्वेक्षण टीमों की फीडबैक व अमित शाह के यहां बनी है। Lok Sabha election 2024

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जिनके नाम मोदी के यहां से गए वे अपने आप लिस्ट में शामिल। फिर अमित शाह के यहां तमाम जरियों से आई सूचियों में नामों की छंटनी। और चुनाव समिति की बैठक में उन पर या तो स्वंय अमित शाह द्वारा चर्चा करके फैसला करना या संगठन मंत्री बीएल संतोष की प्रस्तुति और ठप्पा। जेपी नड्डा, प्रदेश पदाधिकारियों, मुख्यमंत्री (जैसे योगी आदि) बैठक में बैठे जरूर दिखे लेकिन इनसे एक सलाह, एक नाम तय नहीं हुआ होगा।

हां, योगी आदित्यनाथ कितना ही बड़ा चेहरा हों उनका उत्तर प्रदेश के 80 उम्मीदवारों में एक के भी चयन में हाथ नहीं है। प्रदेश सीएम, प्रदेश अध्यक्ष, महामंत्री सब जीरो। और सर्वेसर्वा या तो मोदी-शाह की इनहाउस सर्वेक्षण टीमें या खुद के हिसाब व पसंद-नापसंद। Lok Sabha election 2024

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प्रधानमंत्री मोदी ने राज्यों में महिलाओं को टिकट देने का निश्चय किया। और उन्हें कैसे ढूंढा गया? अपनी पहचान से या परिवार नेताओं के घर से। हाल के विधानसभा चुनाव में मेवाड़ राजघराने के विश्वराज सिंह विधायक नाथद्वारा से चुने गए तो उस जिले में सांसद उम्मीदवार किसे बनाएं? नरेंद्र मोदी ने उनकी पत्नी महिमा विश्वराज सिंह को राजसंमद सीट से उम्मीदवार बनवा दिया। मतलब परिवारवाद आड़े नहीं आया। भाजपा लिस्ट में केरल से ले कर हिमाचल तक पारिवारिक विरासत के चेहरे दिखलाई देंगे या फिर दलबदलू या संघ परिवार से दूर-दूर तक नाता नहीं रखने वाले निराकार चेहरे।

मतलब जो कार्यकर्ता या नेता तीस-चालीस साल से संघ संगठन-भाजपा संगठन में उम्मीदवार बनने के लिए  इंतजार करते हुए थे, उनकी जिला पैनल कूड़ेदानी में गई। जहां आसान जीत वहां नरेंद्र मोदी ने पुराने चेहरों को काट अनाम से नए चेहरे खड़े किए और जहां मुकाबले का माहौल वहां तमाम तरह के दलबदलुओं को टिकट। और बिहार जैसे कांटे के मुकाबले वाले राज्यों में इस चिंता में सीटिंग सांसदों को रिपीट किया गया क्योंकि नयों के जीतने की गारंटी नहीं।

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यही है भाजपा की उम्मीदवार लिस्ट की गाथा। उत्तर भारत में हवा वाली सीट के एक भाजपा प्रत्याशी ने ठीक कहा- मैं तो घर बैठे जीतूंगा। न पैसा खर्च करने वाला हूं और न जिले के पुराने नेताओं की लल्लो-चप्पो करनी है। मैं यह सब क्यों करूं? सही बात है। न कंगना रनौत को मेहनत करनी है और न नवीन जिंदल को। मोदी अपने आप जीता देंगे तो उम्मीदवार को बस उनकी सभा के लिए भीड़ भर पहुंचानी है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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