झारखंड में चुनाव नतीजों से प्रदेश भाजपा के सारे नेता हिले हुए हैं। उनको लग रहा था कि नरेंद्र मोदी की लहर में सारी सीटें जीत रहे हैं तो एक गिरिडीह सीट हार भी जाएंगे तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इसका उलटा हो गया गिरिडीह सीट तो गिरते पड़ते आजसू जीत गई लेकिन भाजपा पांच सीटों पर हार गई। उसे तीन सीटों का नुकसान हुआ। विधानसभा चुनाव के लिए यह खतरे की घंटी है।
झारखंड में भाजपा ने इस बार लोकसभा चुनाव में भी अपनी सहयोगी आजसू को एक लोकसभा सीट दी। गिरिडीह सीट पर पिछली बार चुनाव जीते चंद्रप्रकाश चौधरी फिर से चुनाव लड़े और तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद चुनाव जीत गए। सुदेश महतो के साथ दूसरा धोखा यह हुआ है कि एक एक सांसद वाली दूसरी पार्टियों को केंद्र में मंत्री पद मिल गया लेकिन उनकी पार्टी को मंत्री पद नहीं दिया गया। इससे सुदेश तो पता नहीं कितने नाराज हैं लेकिन उनके इकलौते सांसद की नाराजगी बहुत है। सो, झारखंड में भाजपा के लिए अपनी सहयोगी आजसू के साथ तालमेल बैठाना आसान नहीं होगा।
जयराम महतो के हवाले दावा किया जा रहा है कि महतो यानी कोईरी वोट पर सुदेश की पहले की तरह पकड़ नहीं है। ध्यान रहे पिछली बार यानी 2019 में भाजपा के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने भी यही गलती की थी, जिसके बाद सुदेश ने ज्यादातर सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए। उनकी पार्टी को कुल 17 लाख वोट मिला था और एक दर्जन सीटों पर उनके उम्मीदवारों की वजह से भाजपा हारी थी। सो, झारखंड का फैसला भी भाजपा को बहुत सोच समझ कर करना होगा।