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01-03-2025 Vol 19

एआई में भारत का जबरदस्त मौका!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसे समय में फ्रांस की राजधानी पेरिस में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस यानी एआई के एक्शन समित की सह अध्यक्षता की, जब पूरी दुनिया में इसकी धूम है। सभी महाशक्तियों में इसमें आगे निकलने की होड़ है। ओपनएआई अमेरिका की पहली कंपनी है। अब कई कंपनियां इसके टूल्स तैयार कर रही हैं। इसके जवाब में चीन ने सस्ता डीपसीक मॉडल पेश किया है। मोदी पेरिस में जिस सम्मेलन की सह अध्यक्षता कर रहे थे उसमें अमेरिका के उप राष्ट्रपति जेडी वेंस भी थे। उन्होंने चीन के डीपसीक का मजाक उड़ाते हुए उसे सस्ता और सरकारी मॉडल कहा। उनका चीन के मॉडल पर तंज करना ही यह दिखाता है कि अमेरिका उसको लेकर कितनी चिंता में है। आखिर जिस दिन डीपसीक को बाजार में लॉन्च किया गया उस दिन अमेरिकी शेयर बाजार में हाहाकार मचा था। दुनिया की सबसे बड़ी चिप कंपनी एनवीडिया की छह सौ अरब डॉलर की बाजार पूंजी कम हो गई थी। बहरहाल, अभी सबका फोकस एआई पर है कि कैसे सस्ता और सबसे सक्षम एआई टूल तैयार किया जाए और साथ ही उससे सुरक्षा व गोपनीयता के भी पूरे बंदोबस्त हों।

भारत के लिए अच्छी बात यह है कि प्रधानमंत्री ने पेरिस में एआई एक्शन समित की फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ सह अध्यक्षता की, जहां वे ओपनएआई के संस्थापक सैम ऑल्टमैन से मिले। उसके बाद वे अमेरिका गए, जहां उनकी मुलाकात ऑल्टमैन को चुनौती दे रहे टेस्ला चीफ इलॉन मस्क से हुई। जाहिर है आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के खेल में जितने भी प्लेयर हैं, सबकी नजर भारत के बाजार पर है।

सो अब भारत को तय करना है कि वह एआई का अपना टॉप मॉडल बनाता है या दुनिया के बाकि मॉडल के टूल्स बनाने का डेवलपर बनता है। ध्यान रहे भारत आज तक न तो अपना ऑपरेटिंग सिस्टम बना सका है, न अपना सर्च इंजन डेवलप कर सका है, न अपना सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म है और न माइक्रोब्लॉगिंग की साइट है। भारत इन सबका बाजार व उपयोक्ता भऱ है।

अब समय है, जब इस स्थिति से बाहर निकाल एआई का उपयोक्ता होने के साथ साथ उसके शिखर का डेवलपर भी हो सकता है।

अवसर इसलिए है क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में दुनिया भर में जो ट्रेड और टैरिफ की लड़ाई छिड़ी है उसमें भारत एडवांटेज की स्थिति में है। अमेरिका को भारत की जरुरत है और भारत उसके हिसाब से अपनी नीतियों में लचीलापन दिखा रहा है। दूसरी ओर अमेरिका में ही एआई के मसले पर जंग छिड़ी है। इलॉन मस्क को ट्रंप का सबसे करीबी बताया जा रहा है और ट्रंप को पता है कि मस्क एआई के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। उन्होंने सरकार बनने के तुरंत बाद मस्क की बजाय सैम ऑल्टमैन को बुलाया। उनके साथ मिल कर पांच सौ अरब डॉलर के स्टारगेट प्रोजेक्ट की घोषणा की। यह एआई का अब तक का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है। मस्क इस पर भड़के हैं लेकिन अभी वे ट्रंप से लड़ नहीं सकते हैं। तभी वे सैम ऑल्टमैन को निशाना बना रहे हैं। उन्होंने ओपनएआई को 85 हजार करोड़ रुपए में खरीदने का प्रस्ताव दिया, जिसे ऑल्टमैन ने तुरंत खारिज कर दिया। गौरतलब है कि अभी ओपनएआई का बाजार मूल्य 22 लाख करोड़ रुपए बताया जा रहा है। भारतीय मूल के सुंदर पिचाई इस जंग में सैम ऑल्टमैन के साथ हैं। उनसे भी प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात हुई है।

पिछले दिनों सैम ऑल्टमैन भारत के दौरे पर आए थे उन्होंने कहा था कि भारत एआई में लीडर बन सकता है। पता नहीं उनके कहने का असली मकसद क्या था लेकिन भारत सरकार को उसी बात को ध्यान में रख कर आगे बढ़ना चाहिए। मोदी सरकार ट्रंप प्रशासन और ऑल्टमैन से बात कर सकता है कि भारत की सिलिकन वैली यानी बेंगलुरू में एआई का प्रोजेक्ट शुरू हो। भारत ओपनएआई का उपयोक्ता बनने के साथ साथ नए प्रोजेक्ट्स विकसित करे।  वैसे भारत अपना लार्ज लैंग्वेज मॉडल, एलएलएम विकसित कर रहा है, यह एआई टूल्स की बुनियाद है। इसका मतलब है कि भारत भी एआई टूल्स विकसित करना चाहता है लेकिन तकनीक के मामले में भारत के इतिहास को देखते हुए अच्छा यह होगा कि भारत सरकार नामी अमेरिकी कंपनियों के साथ तालमेल करे।

अगर ऑल्टमैन और ट्रंप प्रशासन भारत में निवेश और भारत के साथ मिल कर एआई टूल विकसित करने को तैयार नहीं होते हैं तो इलॉन मस्क से भी भारत की बात हो सकती है। ध्यान रहे मस्क की नजर भारतीय बाजार पर है वे स्टारलिंक व टेस्ला की एंट्री चाहते हैं। अभी भारत के पड़ोस में उन्होंने भूटान में स्टारलिंक के जरिए इंटरनेट सेवा शुरू की है। भारत में भी वे इसके लिए स्पेक्ट्रम चाहते हैं। साथ ही अपनी इलेक्ट्रिक गाड़ियों के लिए भारतीय बाजार की भी उनको जरुरत है। उनके आने से इलेक्ट्रिक गाड़ियों का भारतीय बाजार भी बेहतर होगा और इंटरनेट की सेवा तो खैर बेहतर होगी ही। स्टारलिंक और टेस्ला की एंट्री के साथ साथ भारत उनसे एआई में साझेदारी की बात कर सकता है। ध्यान रहे चीन को छोड़ कर पूरी दुनिया में जहां भी एआई प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा है वहां भारतीय मूल के इंजीनियर और डेवलपर काम कर रहे हैं। सो, भारत के पास इसके लिए जरूरी मानव संसाधन की बहुतायत है। इसलिए अगर सरकार और खासकर प्रधानमंत्री दूरदृष्टि दिखाएं तो भारतीयों को अमेरिकी एआई का उपयोक्ता बनाने की बजाय उनकी मदद से अपना टूल्स विकसित करने की रणनीति बना सकते हैं। उससे भारत न सिर्फ इस मामले में आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि दुनिया भर में इसका बड़ा बाजार भी बना सकता है।

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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