Monday

31-03-2025 Vol 19

हिंदू 2014 में और 2024 में!

तब अच्छे दिनों का ख्याल था। अब बंटने और कटने का ख्याल है। तब भारत में मध्यम वर्ग मजबूत था अब जर्जर और घटता हुआ है। तब दुनिया में उभरी हिंदू राजनीति पर कौतुक था, सम्मान और अभिनंदन था। कनाडा में मोदी के अभिनंदन का भारतीय महाकुंभ था। अब उसी कनाडा में हिंदू पीटते हुए हैं। तब वहां संसद में भी दिवाली थी, हिंदू मंदिरों में दीये थे अब हिंसा है। तब अमेरिका, ओबामा हिंदू राजनीति और मोदी को गले लगाते हुए थे अब उसी अमेरिका में दक्षिण एशियाई (भारत मूल के लोग अधिक) लोगों के खिलाफ हेटस्पीच (10 अक्टूबर 2024 की रायटर एजेंसी की विस्तृत रिपोर्ट) के नए रिकॉर्ड हैं। हिंदुओं के प्रति पक्षपात है। कमला हैरिस, निकी हेली, विवेक रामस्वामी आदि भारतीय मूल के नेताओं ने भी हिंदू और हिंदू वोटों से कन्नी काटी हुई है तो अमेरिकी संसद में दाखिल प्रस्ताव 1131 का भी फॉलोअप नहीं है। यह प्रस्ताव भारतीय मूल के सांसद थानेदार ने हिंदूफोबिया के खिलाफ रखा था। इससे अमेरिका में हिंदू मंदिरों पर हमलों का जिक्र था।

इतना ही नहीं जनवरी 2023 से अगस्त 2024 के मध्य में अमेरिका के ऑनलाइन स्पेस में एशियाई (मोटा मोटी हिंदुओं) के खिलाफ घृणा नैरेटिव की संख्या 23 हजार से बढ़ 46 हजार थी। अमेरिका के सबसे बड़े प्रदेश कैलिफोर्निया में यहूदियों के बाद नफरती अपराध हिंदुओं के खिलाफ सर्वाधिक थे। इस्लामोफोबिया तीसरे नंबर पर था।

पर कनाडा और अमेरिका में ही क्यों ब्रिटेन में भी ऋषि सुनक के फिनोमीना के बावजूद लिस्टर में हिंदू बनाम पाकिस्तानियों की हिंसा के बाद हिंदुओं के खिलाफ माहौल है। हालांकि वहां अब फिलस्तीन-इजराइल के झगड़े के शोरगुल के चलते हिंदुओं से ध्यान हटा होना चाहिए था। लेकिन हिंदुओं के प्रति दुराव बना हुआ है। ऋषि सुनक का ग्राफ भी पैंदे पर है।

हिंदू 2014 में भारत से भागते हुए नहीं थे। इन दस वर्षों में अंबानी ने ब्रिटेन में मकान बनाया है तो तमाम अरबपतियों के भारत छोड़ने, भारत का पासपोर्ट छोड़ने की खबरें हैं। वहीं गुजरात, पंजाब से रिकॉर्डतोड़ गुजरातियों, सरदारों के मैक्सिको के रास्ते से अवैध रूप से अमेरिका में घुसने के भी आंकड़े हैं।

2014 में दुनिया में हिंदूफोबिया शब्द प्रचलित नहीं था। अब है। तब इस्लामोफोबिया में मुसलमानों सें नफरत थी अब मोदी सरकार के राजकाज, अनुभवों के चलते हिंदूफोबिया फैला है। और हिंदुओं से नफरत है!

2014 में बांग्लादेश में हिंदुओं की पिटाई नहीं थी, आज है। तब नेपाल में हिंदू बेगाने नहीं थे अब हैं। दक्षिण एशिया में तब नरेंद्र मोदी और हिंदू राज का सम्मान था। अब मखौल और उपेक्षा है।

वैश्विक स्थिति की एक रिपोर्ट के इन वाक्यों पर गौर करें- जुलाई में हिंदूफोबिक कोड वर्ड और मीम्स पर संकेत रिकॉर्ड ऊंचाई पर था। यह जमीनी तौर पर हिंसा भड़का सकता है।…. दुर्भाग्य से, हिंदू आबादी के लिए इसमें कुछ भी नया नहीं है। तब नया क्या है?  सोशल मीडिया पर अब हिंदुओं के प्रति नफरत भरे संदेश साझा किए जा रहे हैं।

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *