Wednesday

23-04-2025 Vol 19

विनाशकाले विपरीत बुद्धि या……

विधानसभा चुनाव के लिए मतदान से ठीक एक महीने पहले राजस्थान के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के घर पर प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी के छापे हैरान करने वाले हैं। आमतौर पर चुनाव की घोषणा के बाद जैसे प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री आदि के सरकारी कार्यक्रम थम जाते हैं वैसे ही केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई भी नहीं होती है। लेकिन इस बार चुनाव घोषणा के बाद और नामांकन शुरू होने से ठीक पहले राजस्थान में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डोटासरा और उनके रिश्तेदारों के यहां ईडी ने छापा मारा। उसी दिन ईडी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को विदेशी मुद्रा विनियम कानून यानी फेमा के कथित उल्लंघन के मामले में समन जारी करके पूछताछ के लिए बुलाया। कांग्रेस के एक अन्य उम्मीदवार के घर पर भी ईडी ने छापा मारा। यह सब हैरान करने वाला है।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी लोगों में डोटासरा नौवें व्यक्ति हैं, जिनके खिलाफ ईडी या किसी दूसरी एजेंसी ने छापा मारा है या कार्रवाई कर रही है या जांच हो रही है। सबसे पहले उनके भाई अग्रसैन गहलोत के यहां छापा पड़ा था। अब उनके बेटे वैभव गहलोत को ईडी पूछताछ के लिए बुला रही है। गहलोत सरकार के गृह राज्यमंत्री राजेंद्र सिंह यादव के खिलाफ कुछ दिन पहले ही ईडी ने छापा मारा था। उससे पहले आयकर ने भी छापा मारा था। गहलोत के ओएसडी लोकेश शर्मा के खिलाफ केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने गलत तरीके से फोन टेप करने का आरोप लगाया है और दिल्ली पुलिस इसकी जांच कर रही है। वे पांच बार दिल्ली पुलिस के सामने पेश हो चुके हैं। इसी मामले में एक मंत्री महेश जोशी के खिलाफ भी मुकदमा हुआ है। मुख्यमंत्री के करीब धर्मेंद्र राठौड़ के खिलाफ आयकर विभाग की जांच चल रही है। एक दूसरे करीबी और पुराने कांग्रेस नेता राजीव अरोड़ा के खिलाफ भी आयकर की जांच है।

यह सिर्फ राजस्थान का मामला नहीं है। पिछले दिनों छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा और दो अन्य सहयोगियों के यहां ईडी ने छापा मारा। शराब घोटाला, चावल मिल घोटाला, महादेव ऐप घोटाला जैसे अलग-अलग मामलों में मुकदमा करके मुख्यमंत्री के करीबियों या अधिकारियों पर कार्रवाई हुई है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के लिए मामल इतना परेशान करने वाला हो गया कि उन्होंने कहा है कि ‘कुत्ते, बिल्लियों से ज्यादा ईडी और आयकर के अधिकारी राज्य में घूम रहे हैं’। उधर छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की बेटी के कविता को चुनाव की घोषणा से ठीक पहले ईडी ने समन जारी किया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट जाकर उस पर रोक लगवाई हुई है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के भांजे रतुल पुरी पर ईडी का शिकंजा कसा है। सो, हर चुनावी राज्य में या केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई जोर-शोर से चल रही है और चुनाव की घोषणा के बाद भी यह थमी नहीं है।

सवाल है कि आखिर क्या सोच कर केंद्र सरकार ने इन राज्यों में एजेंसियों को कार्रवाई की खुली छूट दे रखी है और वह भी सिर्फ विपक्षी नेताओं के खिलाफ? क्या सरकार और भारतीय जनता पार्टी को ऐसा नहीं लग रहा है कि इससे विपक्षी नेताओं के प्रति सहानुभूति पैदा हो सकती है? यह तो साफ दिख रहा है कि विपक्ष की सभी पार्टियों और सभी नेताओं को भ्रष्ट साबित करके उनके प्रति गलत धारणा बनवाने का अभियान इसके जरिए चल रहा है। लेकिन इसके साथ ही चुनावी महीने में कार्रवाई का और भी मकसद दिख रहा है। चुनाव से ठीक पहले केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई से विपक्षी पार्टियों को तीन तरह की मुश्किल हो सकती है। पहली मुश्किल तो यह है कि चुनाव लड़ने में इस्तेमाल होने वाले संसाधनों खास कर नकद पैसे और उपहार में देने वाली चीजों का बंदोबस्त इससे गड़बड़ाता है। एजेंसियों की जब्ती से नेताओं के लिए मुश्किल होती है। हो सकता है कि जब्त किया गया धन वैध हो लेकिन वह जो जांच के बाद पता चलेगा और तब तक चुनाव निकल चुका होगा। दूसरी मुश्किल यह होती है कि चुनाव लड़ने के लिए किसी पार्टी या नेता को धन और दूसरी सुविधाएं मुहैया कराने वाले कारोबारियों आदि में डर बैठता है। यहां तक कि केंद्रीय एजेंसियों के डर से चंदा मिलना भी कम हो जाता है। तीसरी मुश्किल यह है कि चुनाव लड़ाने वाले बड़े नेता अपनी निजी मुश्किलों में उलझते हैं। एजेंसियों की जांच, पूछताछ आदि से चुनाव प्रचार, प्रबंधन आदि कमजोर होता है। कुल मिला कर कहा जा सकता है कि इस तरह की कार्रवाई से विपक्षी पार्टियां चुनाव से पहले कमजोर होती हैं, लड़ने के लायक नहीं रह जाती हैं।

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *