नरेंद्र मोदी का बतौर प्रधानमंत्री ‘शराब काल’ का इतिहास भी बनेगा। हां, भारत ‘अमृत काल’ में नहीं बल्कि, ‘दारू काल’ के कीर्तिमान बनाते हुए है। भारत के 140 करोड़ लोगों में मुस्लिम आबादी को छोड़ें तो बहुसंख्यक हिंदू मानों शराब के प्यासे। मोदी-शाह के राज में हिंदू कैसे पियक्कड़, नशेड़ी, दारूबाज बने हैं इसकी बहुत भारी दास्तां है। मोदी सरकार का नंबर एक पाप है जो उसने शराब को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा। मतलब राज्य सरकारों को शराब याकि आबकारी से कमाई का भरपूर मौका दिया। पेट्रोलियम पदार्थों याकि ईंधन को जीएसटी से बाहर रख जहां केंद्र ने जनता से अपनी मनमानी वसूली बनवाई और परिवहन तथा इकोनॉमी को महंगा बनाया वहीं राज्यों ने शराब की बिक्री को बेइंतहां बढ़वा कर उसकी घर-घर आदत बनवा दी है।
एक और बारीक बात। मुफ्त में अनाज, राशन, घरों में पांच सौ हजार-बारह सौ रुपए के ट्रांसफर व रेवड़ियों से सरकारों ने लोगों की वह नकदी बनवाई है, जिससे गरीब-गुरबों में हर शाम दारू का पव्वा पीने की आदत बनी। मोदी सरकार हो या कांग्रेस और आप सभी पार्टियों में नौ सालों से यह होड़ है कि लोगों को फ्री में राशन आदि दे कर उनके वोट पाएं। इसका सीधा असर यह हुआ है जो गांव, देहात, झुग्गी झोपड़ियों, गरीब, बीपीएल कार्डधारियों में खाने का अनाज पहुंचा और उससे लोगों का अनाज पर होता खर्च बचा। लोगों की जेब में पैसा रहने लगा। नतीजतन अपने आप शराब की दुकानों, भट्ठी पर दारू का पव्वा लेने का वह रिवाज बना जैसे पहले कभी सुबह लोग दूध खरीदने जाया करते थे। दूध भले न पीयें मगर शराब हर रोज, नियमितता से पीते हैं। संघ परिवार के अमृत काल यह वह नया अकल्पनीय संस्कार है जो बाप-बेटे, घर-परिवार मिल कर शराब पीने में अब संकोच नहीं करते।
सचमुच छतीसगढ़ ने मुझे नई जमीनी हकीकत दिखलाई। आदिवासी, देहाती, किसानी, कस्बाई और शहरी लोगों में शराब की दहला देने वाली भूख और आदत बनी दिखी। दारू की भट्ठी पर मेला लगता है। दिन में ही लोग पीये रहते हैं। और सबकी नंबर एक शिकायत है कि दारू की क्वालिटी खराब होती जा रही है, जबकि रेट प्रति पव्वा साठ से अस्सी, सौ रुपए की रफ्तार में लगातार बढ़ते हुए! क्या बूढ़े, क्या प्रौढ़, क्या नौजवान सब शराब की भट्ठी जाने की आदत में बंध गए हैं। धान कटाई करते हुए घर वालों के बीच जब पुरूष से पूछा कि दारू पीते हो तो महिला ने पहले जवाब दिया- मर्द जब मेहनत करता है तो पीएगा ही…।
आदिवासी, बीपीएल, खेतीहर मजदूर, किसान हो या शहरी बनिया-ब्राह्मण में शराब की आदत पर जिससे भी जानना चाहे वह बताता मिलेगा यह तो सामान्य और दिनचर्या की बात। छत्तीसगढ़ में ज्यादा हैरानी इसलिए हुई क्योंकि किसानों में यह सुना कि धान पर बोनस और खरीद से लोगों के लिए दारू का खर्चा वहन करना आसान हो गया है। रेवड़ियों से शराब की प्यास बूझाने का पैसा मिल रहा है। सरकार किसान से धान ऊंचे दाम व बोनस से खरीद रही है जबकि खाने का राशन मुफ्त में मिल ही रहा है तो बचत से शराब की भट्ठी का रोजाना का खर्चा अब गांव-देहात का नियमित खर्च है। लोगों में शिकायत सिर्फ यह है कि दारू अच्छी नहीं मिल रही। क्वालिटी अच्छी नहीं है, जबकि शराब के दाम बढ़ते जा रहे है। जाहिर है पार्टियों को अब और खासकर ‘शराब काल’ वाली मोदी सरकार को लोकसभा चुनाव 2024 से पहले घोषणापत्र में यह गारंटी देनी चाहिए कि वह महीने में पांच किलो अनाज के साथ दारू के इतने पव्वे मुफ्त देगी और उसकी क्वालिटी अच्छी होगी। मोदीजी को दारू के अच्छे दिनों का डंके की चोट माहौल बनाना चाहिए!
यह व्यंग्य नहीं है, बल्कि हिंदुओं की जमीनी जरूरत का फीडबैक है। कांग्रेस, आप, भाजपा सभी को मिशन शराब बनाना चाहिए। मोदी सरकार को नल से जल नहीं, बल्कि नल से अच्छी दारू देने के प्रोजेक्ट बनवाने चाहिए। मेरा मानना था कि छतीसगढ़ में समाज सुधार आंदोलन से निकले सतनामी लोग शराब और मांसाहार से दूर होंगे। मगर सतनामी परिवारों के मुखिया लोग भी कहते मिले कि नई पीढ़ी सुनती कहां है।
सोचें, इस हकीकत पर कि छतीसगढ़ तो बहुत पीछे है शराब बिक्री में। केरल, पंजाब, हरियाणा और योगीजी के प्रदेश यूपी पर या अरविंद केजरीवाल के शराब क्रांति की दिल्ली में, सभी तरफ सरकारों की कितनी कमाई बढ़ी है? नीतीश कुमार ने बिहार में शराबबंदी की लेकिन बगल के यूपी से लेकर झारखंड, नेपाल सबने बॉर्डर किनारे शराब की दुकानें खोल मोटरसाईकिलधारी बिहारी नौजवानों की रोजी-रोटी और दारू का रास्ता खोल दिया। कहते हैं बिहार में शराब की उपस्थिति कण-कण में वैसे ही है जैसे भगवानजी कण-कण में माने जाते हैं। एक अलग समानांतर तंत्र बन गया है।
दरअसल यह सब मोदी सरकार के वित्तीय-जीएसटी और केंद्र-राज्य रिश्तों की रीति-नीति का परिणाम है। इससे प्रदेश सरकारों का एकमेव उद्देश्य अब है कि जैसे भी हो शराब से टैक्स की कमाई सुरसा की तरह बढ़े। प्रदेशों का खर्चा दारू की बिक्री पर आश्रित हो गया है। कल्पना करें इस खबर पर कि ओणम के पवित्र त्योहार पर केरल सरकार की एक सप्ताह में सात सौ करोड़ रुपए की कमाई हुई। कल्पना करें रामजी के, योगीजी के उत्तर प्रदेश की जहां के नोएडा-गाजियबाद से लेकर बिहार सीमा के बलिया तक शराब की महागंगा बहती हुई है। हाल में यह खबर पढ़ने को मिली- उत्तर प्रदेश बदल रहा है।..यह भारत की नई शराब राजधानी है, जहां देश में पोर्टेबल और गैर-पोर्टेबल शराब सबसे अधिक बनाई और बेची जाती है!…उत्तर प्रदेश शराब हब के रूप में उभरा है। शराब मॉल, अहाता, माइक्रो ब्रुअरीज के रूप में भव्य दुकानें, जो गुरुग्राम की नकल जैसा दिखता है जो एनसीआर के नोएडा और गाजियाबाद शहरों में स्थित हैं। द वीकेंड मॉडल स्टोर्स से लेकर कैंपाई जैसे इन-हाउस बियर ब्रांड और हाल ही में लॉन्च की गई वाइनरी और उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में ब्रांड रेजिना तक मौजूद है।…राज्य ने वित्त वर्ष 2023 में 42,250 करोड़ रुपए का उत्पाद शुल्क राजस्व (शराब से) अर्जित किया जो 2017-18 में दर्ज 14 हजार करोड़ रुपए से तीन गुना अधिक है। जिस वर्ष भाजपा और योगी आदित्यनाथ सत्ता में आए उसके बाद से शराब से राजस्व के मामले में यूपी, कर्नाटक को पीछे छोड़कर देश में नंबर एक बन गया है।…नोएडा और गाजियाबाद में हाई-एंड फर्निशिंग वाली शानदार शराब की दुकानें हैं। यूपी की शराब संस्कृति परिवर्तन के दौर से गुजर रही है।..2017 और अब के बीच, राज्य में 25 नई डिस्टिलरी और दो ब्रुअरीज सामने आई हैं।
उफ! और क्या लिखा जाए? सत्य कितना बताएं? तो लब्बोलुआब यह कि… नरेंद्र मोदी के नौ सालों में भारत के लोगों की बुद्धि जैसी नष्ट-भ्रष्ट हुई है उसे भी इतिहास में अनिवार्यतः लिखा जाएगा। कौम, नस्ल की सारी बुद्धि मानो दारू की भट्ठी के पौव्वों में बोतल बंद हो।