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05-04-2025 Vol 19

मौका पर खत्म एमएसएमई धंधे

भारत का कपड़ा क्षेत्र भी लाभ उठाने की स्थिति है। पड़ोसी देशों के मुकाबले कम शुल्क की वजह से देश के परिधान और वस्त्र क्षेत्र को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है। वियतनाम, बांग्लादेश, कंबोडिया, पाकिस्तान और चीन जैसे प्रतिस्पर्धी कपड़ा निर्यातक देशों को काफी अधिक शुल्क का सामना करना पड़ा है। अब भी अमेरिका भारतीय वस्त्रों का सबसे बड़ा खरीदार बना हुआ है। वित्त वर्ष 2023-24 में भारत का कपड़ा निर्यात करीब 36 अरब डॉलर था, जिसमें से अमेरिका का हिस्सा कररीब 28 फीसदी यानी 10 अरब डॉलर था।

भारत के घरेलू स्टील उद्योग को राहत मिली है क्योंकि ट्रंप ने स्टील और एल्युमिनियम उत्पादों को अतिरिक्त पारस्परिक टैरिफ से छूट दी है। अमेरिका ने पिछले महीने स्टील और एल्युमिनियम निर्यात पर 25 फीसदी शुल्क लगाया था, लेकिन नया कदम यह सुनिश्चित करता है कि इन धातुओं को नए टैरिफ ढांचे के तहत आगे कोई शुल्क नहीं देना पड़ेगा। इनमें स्टील और एल्युमिनियम उत्पाद और ऑटो, ऑटो पार्ट्स शामिल हैं। (एमएसएमई)

हालांकि इसका खतरा यह है कि जैसे जैसे कुछ एशियाई इस्पात उत्पादक देशों के लिए अमेरिका और यूरोपीय संघ के बाजारों तक पहुंच अधिक प्रतिबंधित होती जाएगी, भारत में डंपिंग बढ़ने का जोखिम बढ़ता जाएगा।

एमएसएमई सेक्टर की समस्याएं और आत्मनिर्भरता की चुनौती

बहरहाल, भारत के साथ समस्या यह है कि मेक इन इंडिया अभियान भारत में बहुत सफल नहीं हुआ है और न आत्मनिर्भर भारत से कुछ हासिल हो सका है। ऊपर से नोटबंदी और जीएसटी ने छोटे उद्यमियों की कमर तोड़ दी। नोटबंदी के दौरान नकदी से काम करने वाले एमएसएमई सेक्टर की हजारों कंपनियां बंद हो गईं। (एमएसएमई)

उसके बाद बची खुची कसर जीएसटी ने पूरी कर दी। तमाम तरह के कानूनों के पालन और हर महीने जीएसटी रिटर्न भरने के बोझ तले कंपनियां दब गईं और बंद हो गईं।

सरकार बड़े गर्व से कहती है कि दो लाख फर्जी कंपनियां बंद हुईं। लेकिन उसी सरकार से पूछा गया कि फर्जी कंपनी की क्या परिभाषा है तो उसके पास कोई परिभाषा नहीं थी। यानी जो कंपनियां बंद हुईं वो छोटी छोटी कंपनियां थीं, जिनमें दो, चार, पांच लोग काम करते थे और छोटी छोटी चीजें बनाते थें। अब ऐसी सारी चीजें चीन से आती हैं।

तभी मुश्किल यह है कि इस आपदा को अवसर बनाना कैसे संभव होगा। क्या भारत सरकार और देश के उद्यमी इस स्थिति का लाभ उठाने के लिए जिला स्तर तक छोटे छोटे उद्य़ोगों को खड़ा कर सकते हैं ताकि सस्ता और पर्याप्त मात्रा में उत्पादन सुनिश्चित हो सके? अगर भारत ने जज्बा दिखाया तो यह संभव भी हो सकता है। (एमएसएमई)

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Pic Credit : ANI

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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