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01-03-2025 Vol 19

कांग्रेस का क्या होगा?

delhi asseimbly election : कांग्रेस पार्टी के लिए दिल्ली का विधानसभा चुनाव बहुत उलझा हुआ था। पार्टी को सिद्धांत रूप में यह तय करना था कि उसका बड़ा दुश्मन भाजपा है कि आम आदमी पार्टी?

उसे यह भी तय करना था कि भाजपा को हराने के लिए केजरीवाल के सामने सरेंडर करना चाहिए और उनकी मदद करनी चाहिए या केजरीवाल को हराना चाहिदिल्ली के नतीजों के बाद इस सोच में बदलाव होगा।

दिल्ली के बाद बिहार का चुनाव है, वहां भी दिल्ली के नतीजों से कांग्रेस की मोलभाव करने की ताकत बढ़ सकती है।ए, चाहे भाजपा क्यों न जीत जाए? कहने की जरुरत नहीं है कि कांग्रेस ने दूसरा विकल्प चुना।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने खुल कर कहा कि आम आदमी पार्टी मुख्य दुश्मन है।(delhi asseimbly election)

कांग्रेस इसी सोच के साथ चुनाव में उतरी कि भले भाजपा जीत जाए लेकिन केजरीवाल को हराना है। इसी  सोच में कांग्रेस ने दिल्ली प्रदेश के अपने तमाम बड़े और मजबूत नेताओं को चुनाव में उतारा।

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कांग्रेस ‘इंडिया’ ब्लॉक की विरोधी(delhi asseimbly election)

एक समय ऐसा लगा कि कांग्रेस पीछे हट रही है और वह बहुत मेहनत नहीं कर रही है क्योंकि समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के आम आदमी पार्टी के साथ आ जाने के बाद अगर कांग्रेस उनका विरोध करती है तो यह माना जाएगा कि कांग्रेस ‘इंडिया’ ब्लॉक की विरोधी है।

लेकिन तभी अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने भ्रष्ट नेताओं का एक पोस्टर जारी कर दिया, जिसमें राहुल गांधी की भी फोटो लगा दी।(delhi asseimbly election)

उनको भाजपा के कथित भ्रष्ट नेताओं की तरह ही साबित कर दिया। इसके बाद कांग्रेस के लिए पूरी ताकत के साथ आप के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरना ही पड़ा।

फिर राहुल गांधी ने खुद कमान संभाली और अरविंद केजरीवाल के खिलाफ वो सारे मुद्दे उठाए, जो भाजपा उठाती है।

राहुल ने ‘शीशमहल’ का मुद्दा उठाया और शराब नीति घोटाले में केजरीवाल के जेल जाने का मुद्दा भी उठाया।

राहुल और कांग्रेस नेताओं ने दिल्ली में कामकाज नहीं होने की तस्वीरें और वीडियो जारी किए। शीला दीक्षित के कामकाज को लेकर दिल्ली में प्रचार किया।(delhi asseimbly election)

केजरीवाल को हराना मकसद 

राहुल गांधी नई दिल्ली सीट पर केजरीवाल के खिलाफ चुनाव लड़ रहे कांग्रेस उम्मीदवार संदीप दीक्षित के खिलाफ प्रचार करने गए।(delhi asseimbly election)

कांग्रेस ने मुस्लिम बहुल सीटों पर मजबूत मुस्लिम उम्मीदवार उतारे और दलितों के लिए आरक्षित सीटों पर अपने सबसे मजबूत उम्मीदवार दिए।

पूर्व सांसद कृष्णा तीरथ से लेकर राजेश लिलोठिया और जयकिशन तक को चुनाव में उतारा। कांग्रेस का बाद में एकमात्र मकसद यह हो गया कि केजरीवाल को हराना है।(delhi asseimbly election)

कांग्रेस ने करीब एक दर्जन सीटों पर अपना प्रचार केंद्रित किया। उसके नेता मान रहे हैं कि भले पार्टी का प्रदर्शन उम्मीद के लाय़क नहीं हो लेकिन वह आप को वैसे ही डैमेज कर रही है, जैसे उसने कांग्रेस को हरियाणा, गुजरात और गोवा में किया।

असल में कांग्रेस यह मान रही है कि भाजपा से तो वह तब लड़ेगी, जब आम आदमी पार्टी या दूसरी प्रादेशिक पार्टियां उसको लड़ने लायक छोड़ेंगी।

दिल्ली के बाद बिहार का चुनाव(delhi asseimbly election)

सहयोगी पार्टियां कम सीटें देती हैं या कांग्रेस के खिलाफ लड़ कर उसका नुकसान करती हैं तो फिर कांग्रेस भाजपा से लड़ने लायक कैसे बन पाएगी?

अगर दिल्ली में किसी तरह से आम आदमी पार्टी हार जाती है तो कांग्रेस को को लेकर प्रादेशिक पार्टियों को सोच बदलनी होगी।

अभी तक यह माना जाता था कि कांग्रेस कोई ऐसा काम नहीं करेगी, जिसका फायदा भाजपा को हो।(delhi asseimbly election)

दिल्ली के नतीजों के बाद इस सोच में बदलाव होगा। दिल्ली के बाद बिहार का चुनाव है, वहां भी दिल्ली के नतीजों से कांग्रेस की मोलभाव करने की ताकत बढ़ सकती है।

कांग्रेस के नेता यह भी मान रहे हैं कि एक बार दिल्ली में आम आदमी पार्टी हार गई तो उसका पतन शुरू हो जाएगा। केजरीवाल की ऑथोरिटी कम होगी और पार्टी में टूट शुरू होगी।

इसका कारण यह है कि आप कोई विचारधारा आधारित पार्टी नहीं है और न उसका कोई इतिहास है। वह मुफ्त की चीजें बांटने के विचार पर बनी और कामयाब हुई(delhi asseimbly election)

लेकिन अब मुफ्त की चीजें बांटने की राजनीति भी चरम पर पहुंच गई है। वहां से अब उसे नीचे उतरना है। तभी कांग्रेस ने जोखिम लेकर केजरीवाल की पार्टी को हराने की राजनीति की।

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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