Saturday

01-03-2025 Vol 19

मोदी के चेहरे के बिना चुनाव!

हां, याद करें लोकसभा चुनाव तक नरेंद्र मोदी हर चुनाव के दौरान या उससे ठीक पहले कितने दौरे और उद्घाटन करते होते थे? कितने भाषण देते थे? टिकटार्थियों के आगे गाजर लटकवा कर कैसे भीड़ जुटवा रैलियां करते थे? पर क्या ऐसा हरियाणा और जम्मू कश्मीर के चुनाव में दिख रहा है? वे हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र में कितना घूमते हुए है? उनका पहले की तरह हर दिन भाषण, कार्यक्रम का सिलसिला क्या खत्म नहीं है? क्या वे ट्रेनों को हरी झंडी दिखा रहे हैं? हकीकत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह पहले जैसे सर्वव्यापी, सर्वत्र अब नहीं दिखलाई दे रहे हैं। और न ही जम्मू कश्मीर या हरियाणा में अबकी बार छप्पर फाड़ सरकार जैसे नारे लगवा रहे हैं!

यदि नरेंद्र मोदी के तीसरे टर्म के 75 दिनों का लेखा जोखा करें तो लगेगा कि वे अपने पर कैमरे की फ्रेम अब बनने नहीं दे रहे हैं। और कुछ कोशिश भी की तो फेल रहे। उन्होंने बहुत धूमधाम से ट्रेन से यूक्रेन यात्रा की, खूब फोटोशूट कराया लेकिन उनकी तस्वीरें भारत में वैसे ही फ्लॉप थी जैसे इन दिनों अक्षय कुमार की फिल्मे फ्लॉप होती हैं। उनकी जगह इस सप्ताह सुर्खियों, चर्चाओं और सोशल मीडिया में कंगना रनौत और उनका राजनीतिक ज्ञान अधिक प्रसारित था।

कह सकते हैं नरेंद्र मोदी, उनकी मीडिया टीम ने मान लिया है कि चेहरे की अब ओर मार्केटिंग नहीं होनी चाहिए। इसलिए क्योंकि उनको देख लोग टीवी चैनल बदल लेते हैं या टीवी बंद कर देते हैं या खबर देख पन्ना पलट लेते हैं। इसलिए नरेंद्र मोदी के करियर याकि गुजरात में मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार उनकी कमान के आगे के चुनाव में नरेंद्र मोदी गिनी चुनी सभाएं करेंगे। यदि समय पुराना होता तो नरेंद्र मोदी जम्मू कश्मीर, हरियाणा में लाखों, करोड़ों रुपए की विकास की बातें, या योजनाओं और वादों के सरकारी आयोजनों में भाषण दे चुके होते। उनकी बार बार, हर शनिवार, रविवार को रैलियां होतीं। उनके हाथों से मंच पर दलबदलू नेता गले में भगवा दुपट्टा पहन रहे होते। पहले की तरह आए दिन टीवी चैनलों में लाइव भाषण सुनाई देता।

पर क्या जम्मू कश्मीर, हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र की चुनाव तैयारियों में ऐसा कुछ दिखलाई दे रहा है?

माना जा सकता है इन राज्यों में मोदी व शाह को जीत का भरोसा नहीं है इसलिए हारने वाले मैदान में अपने चेहरे की प्रतिष्ठा को दांव पर लगाना ठीक नहीं मानते। लेकिन यह भी सच्चाई है कि नरेंद्र मोदी की राजनीति का कोर, सत्व तत्व ही चेहरा दिखाने, अखबार, टीवी की छपास व फोटोशूट और बड़बोलापना है। इसलिए यह कल्पना मुश्किल है कि इस सबके बिना इन दिनों नरेंद्र मोदी का समय कैसे कट रहा होगा? कितनी आश्चर्य की बात है कि गुजरात जलप्रलय में डूबा है लेकिन वे गुजरातियों के रक्षक की तरह अपने हेलीकॉप्टर से लटक कर किसी गुजराती को बचाने की रील नहीं बनवा रहे! लोगों को बाढ़ में डूबे रहने दे रहे हैं।

सोचें, गुजरात डूबा हुआ है और टीवी चैनलों पर इसे कुदरत की लीला दिखलवा नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने आपाद राहत की फोर्स के साथ अपने फोटो खिंचवाने की जरूरत नहीं समझी। जबकि नरेंद्र मोदी ने घोषित किया हुआ है कि वे कुदरती अजैविक देवदूत, भगवान हैं। असंख्य गुजराती उन्हें कल्कि अवतार भी मानते है। बावजूद इसके विकट संकट में भी भगवानश्री अपने उस वडनगर के तालाब में फोटोशूट करवाते हुए नहीं हैं, जहां वे बचपन में मगरमच्छों के साथ खेलते थे। न ही पानी में डूबे आधुनिक मगरमच्छों के कॉरपोरेट दफ्तर की छत से  बाढ़ का विहंगम अवलोकन कर रहे हैं। हालांकि इस बात को समझा जा सकता है कि इतने दिन हो गए है और मोदी, अंबानी, अडानी पानी में डूबे गुजरातियों के बीच जा कर उन्हें खाखरा-फाफड़ा बांटते नहीं दिखे।

बहरहाल, असल बात मोदी का यह सलाह मानना या सोचना है कि चेहरे का अधिक एक्सपोजर लोगों को ऊबा देता है। चेहरा तब डरावना हो जाता है। इसलिए दर्शन देना कम करें। अपने को रिइनवेंट करें। चेहरे को नया बनाएं। तब तक बासी कढ़ी को फ्रीज में संभाले रखें। और यदि सर्वे रिपोर्ट हरियाणा, जम्मू कश्मीर, झारखंड, महाराष्ट्र में हारने की हैं तो चेहरे को दांव पर कतई न लगाएं।

मुझे लगता है अमेरिकी चिंता में जिस आपाधापी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पोलैंड और यूक्रेन गए और सितंबर में अमेरिका जाने वाले हैं तो मोदी या तो चुनाव प्रचार से बचने की कोशिश में हैं या अब विदेश से रिइनवेंट होने की आस में हैं। खबरों के अनुसार उनकी टीम ने अमेरिका में प्रवासी भारतीयों की बड़ी भीड़ इकठ्ठा करने का प्रोग्राम बनाया है। मतलब अमेरिका याकि न्यूयॉर्क के टाइम्स स्क्वायर से हरियाणा के मतदाताओं को नरेंद्र मोदी संदेशा देंगे कि समझो उनकी विश्व गुरूता को। और फिर न्यूयॉर्क से फिर सीधे कुरूक्षेत्र में!

पर ऐसा तो तब होगा जब नरेंद्र मोदी चुनाव में उतरे दिखलाई दें! वह वक्त गया जब विधानसभा चुनाव में भी मतदाताओं के दिमाग में सिर्फ मोदी का चेहरा होता था। लेकिन अब यदि हरियाणा में भी मोदी की जगह भाजपा की कंगना रनौत पर ज्यादा चखचख है तो मोदी, शाह को या तो अपनी जगह कंगना को रिप्लेस कर लेना चाहिए या सिर्फ मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के चेहरे पर पार्टी चुनाव लड़े। इसलिए देखना है कि चारों राज्यों में चुनाव के अंत में भाजपा की हार का ठीकरा मोदी, शाह पर फूटेगा या प्रादेशिक चेहरे मसलन सैनी, मरांडी, फड़नवीस जिम्मेवार माने जाएंगे।

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *