संघ अपने लिए जो सबसे बड़ी चुनौती मानता है उसमें लेफ्ट प्रमुख है। और नेहरू गांधी परिवार भी। आरएसएस इसी साल अपने सौ साल पूरे कर रहा है। मगर आप देखेंगे कि इस बड़े अवसर पर भी अपने संगठन के बारे में बात करने के बदले संघ और भाजपा लेफ्ट और नेहरू गांधी परिवार मतलब राहुल गांधी पर ही सबसे ज्यादा बात करते हैं। … भाजपा संघ को लगता है कि देश की जनता उनके वृक्ष की छाया के बदले कांग्रेस के पेड़ की सबको समान छाया और लेफ्ट की गरीबों को खासतौर से ज्यादा छाया को ज्यादा तवज्जो देती है। इसलिए वह कांग्रेस और लेफ्ट की छाया को तेज धूप बताने की कोशिश करते रहते हैं।
देश की राजनीति में यह और अगला हफ़्ता बहुत महत्वपूर्ण होने जा रहा है। बशर्त की विपक्ष की दो बड़ी पार्टियां अपने महाधिवेशनों में कुछ बड़े फैसले ले सकें। पहला महाधिवेशन जिसे कांग्रेस कहा जाता है सीपीआई (एम ) का 2 अप्रैल से 6 अप्रैल तक सीताराम येचुरी नगर मदुरई तमिलनाडु में हो रहा है। और दूसरा विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस का पूर्ण अधिवेशन (प्लेनरी) 8 और 9 अप्रैल को अहमदाबाद गुजरात में।
पहले सीपीआईएम के अधिवेशन की बात जो शुरू हो चुका है। इस समय सीपीआईएम अपने इतिहास के सबसे कमजोर दौर से गुजर रही है। पार्टी के पहले भी कम ज्यादा सांसद और विधायक होते रहे। मगर प्रभाव के मामले वह कभी कमजोर नहीं रही। देश की राजनीति को प्रभावित करती रही। सरकार किसी की भी उसकी नीतियों कार्यक्रमों को आम जनता की तरफ मोड़ने का माहौल बनाती रही। आज जो मोदी जी बार नए नए शब्द लाकर शहरी नक्सल, पढ़े लिखे और पता नहीं क्या क्या बोलकर वाम विचारधारा पर हमला करते हैं तो वह इसीलिए की उन्हें लगता है कि वह विचराधारा उनकी प्रतिगामी और जहरीली विचारधारा को आगे बढ़ने से सबसे ज्यादा रोकती है।
संघ अपने लिए जो सबसे बड़ी चुनौती मानता है उसमें लेफ्ट प्रमुख है। और नेहरू गांधी परिवार भी। आरएसएस इसी साल अपने सौ साल पूरे कर रहा है। मगर आप देखेंगे कि इस बड़े अवसर पर भी अपने संगठन के बारे में बात करने के बदले संघ और भाजपा लेफ्ट और नेहरू गांधी परिवार मतलब राहुल गांधी पर ही सबसे ज्यादा बात करते हैं। कहने को तो मोदी जी ने कह दिया कि संघ वटवृक्ष है।
लेकिन अगर वटवृक्ष है तो दूसरे दरख्तों के बारे में क्या बात करना? मगर नहीं भाजपा संघ को लगता है कि देश की जनता उनके वृक्ष की छाया के बदले कांग्रेस के पेड़ की सबको समान छाया और लेफ्ट की गरीबों को खासतौर से ज्यादा छाया को ज्यादा तवज्जो देती है। इसलिए वह कांग्रेस और लेफ्ट की छाया को तेज धूप बताने की कोशिश करते रहते हैं।
फिलहाल तो वे कामयाब हैं। हिन्दू-मुसलमान का उनका जहर लोगों पर चढ़ा हुआ है। लेकिन वे यह भी जानते हैं कि यह कब तक? एक दिन या तो जहर उतरना शुरू हो जाएगा या यह जहर का असर इंसान से देश तक पहुंच कर उसे अंदर से नष्ट कर देगा। अभी भी देश को उन्होंने इतना कमजोर बना दिया है कि अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप हमारे खिलाफ बोलते हैं। बताते है कि भारत यह मान गया है वह मान गया है। मतलब डर गया है। अमेरिका जो कहेगा करेगा। बात सही है।
प्रधानमंत्री मोदी एक भी बात का विरोध नहीं कर पाए। किसी देश के नागरिकों को अमेरिका ने इस तरह हथकड़ी बेड़ियां डालकर वापस नहीं भेजा जैसा तीन तीन बार भारतीयों को। टेरिफ ( आयात शुल्क ) के मामले में कह दिया कि हमारी धमकी के बाद वह इसे कम करने पर मान गया। मतलब अमेरिका से आने वाले सामान पर सरकार शुल्क नहीं लेगी या नाम मात्र का लेगी। इसका परिणाम यह होगा कि अमेरिकी चीज सस्ती और भारत की बनी चीज महंगी। भारत की अर्थ व्यवस्था गर्त में।
इस अर्थ व्वस्था को संभालने के बदले भाजपा सरकार जहर की मात्रा बढ़ा देती है। साम्प्रदायिकता का जहर। वक्फ बिल। उससे पहले नमाज, रमजान, ईद कोई भी चीज जिसका संबंध मुसलमान से हो। मुसलमान का नाम चलता रहे। सुबह से टीवी अखबारों में। उसको ही चर्चा में रखो। ताकि लोग बेरोजगारी, महंगाई, शिक्षा , स्वास्थय सब भूल जाएं।
ट्रंप समझ गए हैं इन बातों को इसलिए वे अपनी शर्तें भारत पर थोप रहे हैं। उन्हें मालूम है कि हिन्दु मुसलमान करने में ही अपनी सफलता मानने वाले मोदी उनकी किसी बात का विरोध नहीं करेंगे। क्योंकि विरोध करते ही, भारत की आवाज उठाते ही अमेरिका से लड़ना होगा, जैसे इन्दिरा गांधी लड़ी थीं तो अगर अगर अमेरिका से लड़ने लगे तो यहां मुसलमान से कौन लड़ेगा?
मोदी जी 11 साल से बस यही एक काम कर रहे हैं। अब उन्हें इस क्षेत्र में चैलेंज करने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी भी आ गए हैं। दोनों मोदी और योगी में एक रन आउट होगा। कौन? यह कहना अभी मुश्किल है। लेकिन डबल इंजन के दोनों इंजन अब एक दूसरे से टकराने लगे हैं, जैसा सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव का कहना है। कांग्रेस का भी कहना है कि योगी दिल्ली आने की जल्दबाजी में अवैधानिक काम कर रहे हैं।
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कांग्रेस अधिवेशन: संगठन में नई जान या पुरानी जड़ता?
बुलडोजर पर सुप्रीम कोर्ट ने बहुत कड़ी टिप्पणी करते हुए यूपी के अधिकारियों पर दस दस लाख रूपए का जुर्माना लगाया है। और भी कई टिप्पणियां हैं। मगर अभी तक यह नहीं कहा है कि बुलडोजर चलाने वाले और चलवाने वालों के या उनके परिवार के घरों पर अगर बुलडोजर चले तो उन्हें कैसा लगेगा? तो सुप्रीम कोर्ट यह कहे इससे पहले योगी दिल्ली की कुर्सी पर कब्जा चाहते हैं। फिर क्या बुलडोजर सुप्रीम कोर्ट की तरफ मोड़ा जाएगा यह देखना बहुत कष्टकारी होगा। और यह भी सवाल है कि जैसा हाल मोदी जी ने आडवानी का किया क्या वैसा नया आने वाला उनका नहीं करेगा?
बहुत सारे सवाल हैं। और इसलिए विपक्ष का मजबूत होना जरूरी है कि देश बचा रहे। अमेरिका मनमानी नहीं कर सके।
कांग्रेस का इसीलिए मजबूत होना जरूरी माना जा रहा है। मुख्य विपक्षी दल है। और पूरे भारत में फैली अभी भी एक मात्र पार्टी है। कोई राज्य ऐसा नहीं रहा जहां उसकी सरकार नहीं रही हो। भाजपा को 11 साल हो गए केन्द्र में सरकार चलाते मगर तमाम राज्यों में अभी भी वह सत्ता से बहुत दूर हैं। हिन्दी बेल्ट तक में बिहार में वह अभी तक अपना मुख्यमंत्री नहीं बना पाए हैं।
उधर बिहार में कांग्रेस ने एक नई शुरूआत कर दी है। अपना संगठन जमीन से मजबूत करने की।
बात जहां से शुरू की थी दो अधिवेशनों की तो मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के इस अधिवेशन पर सबकी निगाहें रहेंगी। कांग्रेस ने जिस तरह बिहार में कुछ ही महीनों में अपना संगठन चुस्त दुरूस्त कर दिया है वैसा ही संकल्प उसने देश भर में अपने संगठन के लिए लिया है।
अहमदाबाद पूर्ण अधिवेशन से पहले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी दोनों पार्टी की कमियों पर बहुत साफगोई से बात कर चुके हैं। और यह भी कह चुके हैं कि यह साल 2025 संगठन का साल होगा। दोनों की बात में संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है। दोनों कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हैं। और बहुत ही बेहतर तालमेल से काम कर रहे हैं। वैसे नहीं जैसे मोदी और योगी एक दूसरे को रन आउट कराने के चक्कर में आ गए हैं।
इसलिए कांग्रेस के इस पूर्ण अधिवेशन से पार्टी को संदेश देने में आसानी होगी। कार्यकर्ता को भी कि जैसे हिन्दी क्षेत्र के दो सबसे बड़े प्रदेशों बिहार और उत्तर प्रदेश में नई जिला ईकाइयां ( डीसीसी) बनाने की शुरुआत की वैसे ही पूरे देश में यह काम होगा। और काम करने वालों को मौका मिलेगा। कांग्रेस में जड़ता बहुत है। सालों साल से लोग पदों पर जमे बैठे हैं।
बिहार का अनुभव यह बता रहा है कि कांग्रेस नेतृत्व बदलाव का महत्व समझ रहा है। इसलिए अहमदाबाद अधिवेशन जो कांग्रेस 86 वां पूर्णअधिवेशन है पार्टी के लिए नया रास्ता खोलने वाला हो सकता है। और जाहिर है कि दोनों अधिवेशन अपनी अपनी पार्टी की तो मजबूती की बात करेंगे ही देखना यह है कि विपक्ष की मजबूती पर क्या कहते हैं?
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