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12-04-2025 Vol 19

ख़ामोशी में दहाड़: ‘द डिप्लोमैट’

the diplomat : फिल्म चुस्त है, स्क्रिप्ट और एडिटिंग दुरुस्त। फ़िल्म के एडिटर हैं कुणाल वाल्वे। फ़िल्म कासी हुई है और इसकी अवधि है, दो घंटे 17 मिनट।

फ़िल्म को आलोचना की दृष्टि से देखें तो एक बड़ी कमी ये लगती है कि सब कुछ बहुत जाना पहचाना सा लगता है और इन दिनों लगातार अटेंशन घटते दर्शकों के वर्ग को हर थोड़ी देर पर फ़िल्म में एक सरप्राइज़ चाहिए होता है। ‘द डिप्लोमैट’ में ऐसा कोई सरप्राइज एलीमेंट नहीं है।

सिने-सोहबत (the diplomat)

जॉन अब्राहम वास्तविक ज़िंदगी में हमेशा से मुझे डबल रोल में दिखते रहे हैं। एक अभिनेता के किरदार में तो दूसरा निर्माता के तौर पर। हीरो वाले किरदार में उनके, उनकी फ़िटनेस के, उनके पशु प्रेम के और स्पोर्ट्स को लेकर उनकी दीवानगी के लाखों चाहने वाले हैं। उन्होंने बतौर अभिनेता कई अच्छी बुरी फ़िल्मों में काम किया है।

एक तरफ़ जहां इतने प्रशंसक हैं तो वहीँ उनके ढेर सारे आलोचक भी हैं। जॉन की ज़िंदगी के इस डबल रोल में जो दूसरा क़िरदार है, वो है बतौर निर्माता का। (the diplomat)

निर्माता के तौर पर उन्होंने अपनी पारी की शुरुआत बेहद दिलचस्प, सार्थक और सफल फ़िल्म, ‘विक्की डोनर’ से की, जिसने हिंदी फ़िल्म उद्योग को ‘आयुष्मान खुराना’ नाम का तोहफ़ा दिया।

जॉन आमतौर पर अपनी कंपनी के बैनर तले बनने वाली सभी फ़िल्मों में अभिनय करने के मोह में नहीं फंसते हैं। यही वजह है कि उन्होंने निर्माता के तौर पर अब तक एक शानदार पारी खेली है।

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इस बार के ‘सिने-सोहबत’ में उनकी सबसे ताज़ा तरीन हिंदी फ़िल्म ‘द डिप्लोमैट’ की समीक्षा है, जिसका निर्देशन शिवम् नायर ने किया है। ये फ़िल्म पिछले दिनों होली के दिन सिनेमाघरों में आई है।

‘द डिप्लोमैट’ की ख़ास बात ये है कि इस फ़िल्म के नायक जॉन इसके निर्माता भी हैं। मतलब ये कि इस फ़िल्म में उन्होंने अपने अभिनेता और निर्माता वाले दोनों किरदारों को बखूबी एक कर लिया है। (the diplomat)

जॉन लगातार अपने किरदारों के साथ प्रयोग कर रहे हैं। ‘द डिप्लोमैट’ वाले किरदार और फिल्म के कसाव का पूरा का पूरा श्रेय जाता है, निर्देशक शिवम नायर को। शिवम नायर थ्रिलर स्पेस के धाकड़ डायरेक्टर हैं, जो अपने काम के बारे में बात करने से कतराते हैं।

उनका काम बोलता है। जिस अंदाज़ में उन्होंने वेब सीरीज ‘स्पेशल ऑप्स’ के भारत में फिल्माए गए दृश्यों का फिल्मांकन किया है, वह अलग स्तर की निर्देशकीय क्षमता है, वही तेवर शिवम इस बार फिर ले आए हैं अपनी ‘द डिप्लोमैट’ में।

‘द डिप्लोमैट’ की कहानी (the diplomat)

फिल्म ‘द डिप्लोमैट’ की कहानी अब तक हर उस शख्स को पता चल चुकी होगी, जिसे हिंदी फिल्मों में दिलचस्पी रहती है। ये उन दिनों की बात है जब सुषमा स्वराज विदेश मंत्री थीं। (the diplomat)

असली कहानी के इस फिल्मी संस्करण में वे सारी बातें हैं, जो पहले अखबारों में और फिर फिल्म के प्रचार के दौरान जॉन और शिवम अपने इंटरव्यू में बता ही चुके है।

मलेशिया में रह रही एक भारतीय महिला अपने बच्चे के इलाज के लिए परेशान है। सोशल मीडिया पर वह पाकिस्तान के एक शख्स से मिलती है। (the diplomat)

उसके प्रेमजाल में वह पाकिस्तान जाती है और वहां पता चलता है कि उसका तथाकथित प्रेमी एक ‘फ्रॉड’ है। लेकिन, अब वहां से निकल पाना आसान नहीं। मामला हमारे नायक जेपी सिंह तक पहुंचता है और फिर कहानी आगे बढ़ती है।

जॉन की दूसरी सबसे ज़रूरी फ़िल्म

ग़ौरतलब है कि ‘बाटला हाउस’ के बाद जॉन अब्राहम की ये दूसरी सबसे ज़रूरी फ़िल्म है जो उनकी फिल्मोग्राफी में चार चांद लगाएगी। इस फ़िल्म की मदद से जॉन अपने दर्शकों तक अपनी सही पहचान पहुंचाने में बख़ूबी सफल होंगे। (the diplomat)

जॉन को प्यार करने वाले दर्शकों की कमी नहीं है, बस हाल के बरसों में जॉन ‘पठान’ को छोड़ कर बाकी की फिल्मों में अपने किरदारों में ये प्यार दोहरा नहीं पाए। इस बार उन्होंने कहानी सही चुनी है।

जॉन ने खुद को जब भी नियंत्रित करके अभिनय किया है, उनका किरदार बोल उठा है। इस फ़िल्म में भी ऐसा ही हुआ है। अभिनेता के तौर पर भी ये उनके करियर की बेस्ट परफॉरमेंस है क्योंकि वो जो कॉमर्शियल फिल्में करते हैं, उसमें उन्हें अपनी बॉडी पर खेलना पड़ता है।

इस फिल्म में उन्हें अपने चेहरे पर आने वाले हाव-भाव से काम चलाना था, जिसमें वो काफी हद तक सफल हुए हैं। (the diplomat)

जॉन के अलावा सादिया खतीब ने उज़्मा अहमद का रोल किया है। उज़्मा के किरदार में वो एक वल्नरेबिलिटी लेकर आई हैं, जिसकी इस फ़िल्म को ज़रूरत थी। सादिया को हमने इससे पहले ‘रक्षा बंधन’ और ‘शिकारा’ में देखा है।

इसके अलावा शारिब हाशमी, कुमुद मिश्रा और रेवती जैसे एक्टर्स ने भी ज़बरदस्त काम किया है। इस फिल्म में सभी के रोल्स उनकी रियल लाइफ पर्सनैलिटी या छवि के आधार पर दिए गए लगते हैं क्योंकि सभी अपने अपने किरदार में सटीक बैठते हैं।

मामला रेस अगेंस्ट द टाइम वाला

‘द डिप्लोमैट’ देखते हुए कुछ मौकों पर बेन एफ्लेक की ‘आर्गो’ याद आती है क्योंकि यहां भी मामला रेस अगेंस्ट द टाइम वाला है। मसलन, ताहिर और उसके साथी कोर्ट जाते हुए उज़्मा और जेपी सिंह की गाड़ी को घेर लेते हैं। उनकी मांग है कि उज़्मा को उसके पति के हवाले किया जाए।

ये फिल्म के सबसे भयावह और ज़रूरी दृश्यों में से एक है। इस फिल्म को ‘पिंक’ और ‘एयरलिफ्ट’ जैसी फिल्मों के बेहद प्रतिभाशाली स्क्रिप्ट राइटर रितेश शाह ने लिखा है। ‘द डिप्लोमैट’ थ्रिलर जॉनर में पूरी टीम की साख को मजबूत करती है। (the diplomat)

फिल्म चुस्त है, स्क्रिप्ट और एडिटिंग दुरुस्त। फ़िल्म के एडिटर हैं कुणाल वाल्वे। फ़िल्म कासी हुई है और इसकी अवधि है, दो घंटे 17 मिनट।

फ़िल्म को आलोचना की दृष्टि से देखें तो एक बड़ी कमी ये लगती है कि सब कुछ बहुत जाना पहचाना सा लगता है और इन दिनों लगातार अटेंशन घटते दर्शकों के वर्ग को हर थोड़ी देर पर फ़िल्म में एक सरप्राइज़ चाहिए होता है।

‘द डिप्लोमैट’ में ऐसा कोई सरप्राइज एलीमेंट नहीं है। ऊपर से फिल्म के गाने भी बहुत शानदार नहीं बन सके हैं। मनोज मुंतशिर का लिखा ‘भारत’ भी नई दुकान में पुराने पकवान की तरह ही है। ‘नैना’ और ‘घर’ में अनुराग सैकिया की धुनें दिल में हूक उठाती हैं लेकिन उनका असर अभी और गहरा होना बाकी है।

अच्छी बात ये है कि इस फ़िल्म के मेकर्स को कहानी में यकीन है। उन्हें ऐसा नहीं लगता है कि इसे मनोरंजक बनाने के लिए इसमें सिनेमैटिक एलीमेंट्स डालने चाहिए। यही वजह है कि ‘द डिप्लोमैट’ एक अच्छी थ्रिलर फिल्म बन पड़ी है। (the diplomat)

‘द डिप्लोमैट’ में वो संजीदगी है, जो इन दोनों देशों के मैटर पर बनने वाली फिल्मों से अमूमन गायब रहती है।

यदि आप सच्ची घटनाओं, राजनीतिक मुद्दों और राष्ट्रों की न्याय प्रणाली की जटिलताओं वाली थ्रिलर फ़िल्में देखने में रुचि रखते हैं, तो ‘डिप्लोमैट’ आपके लिए एक दिलचस्प सोहबत है और वो भी आपके नज़दीक़ी सिनेमाघर में। देख लीजिएगा।  (पंकज दुबे मशहूर बाइलिंग्वल उपन्यासकार और चर्चित यूट्यूब चैट शो, “स्मॉल टाउन्स बिग स्टोरीज़” के होस्ट हैं।) (the diplomat)

पंकज दुबे

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