राहुल गांधी ने जाति गणना का विरोध करने वालों को देशद्रोही बताने के बाद दूसरी मूर्खतापूर्ण बात यह कही है कि मेरिट यानी योग्यता या प्रतिभा का सिद्धांत दोषपूर्ण है। उन्होंने मेरिट के सिद्धांत को दोषपूर्ण बताते हुए कहा है कि यह सवर्ण मानसिकता से सवर्ण हितों की रक्षा के लिए बनाया गया एक सिद्धांत है। श्री सुखदेव थोराट के साथ बातचीत में ही राहुल गांधी ने यह बात भी कही। आरक्षण समर्थक कुछ अति क्रांतिकारी लोग इस तरह की बातें पहले भी कहते रहे हैं।
कांग्रेस सुप्रीमो श्री राहुल गांधी पिछले कुछ दिनों से पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जातियों और जनजातियों के प्रति अतिशय प्रेम भाव दिखा रहे हैं। विशुद्ध राजनीतिक कारणों से उन्होंने ओबीसी, एससी और एसटी का राग छेड़ा है। जब तक केंद्र में उनकी पार्टी की सरकार थी तब तक उन्होंने एक बार भी एफर्मेटिव एक्शन की बात नहीं की। कभी भी जनगणना में जातियों की गिनती की पैरवी नहीं की और न आबादी के अनुपात में जातियों का आरक्षण बढ़ाने की बात कही। परंतु लगातार दो बार लोकसभा चुनाव और देश भर में राज्यों के चुनाव हारने का शतक बनाने की ओर बढ़ रहे राहुल गांधी को अब इसमें उम्मीद की किरण दिख रही है। वास्तविकता यह है कि देश के पिछड़े और वंचित समूहों के लिए पिछले 11 साल में केंद्र की श्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने जितने काम किए हैं उनके सामने श्री राहुल गांधी जो कर रहे हैं वह लफ्फाजी से ज्यादा कुछ नहीं है। वे सिर्फ बातें कर रहे हैं, जबकि श्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने सभी वंचित समूहों को व्यापक रूप से आरक्षण का लाभ पहुंचाया है। उसमें पिछड़ी और अगड़ी सभी जातियां शामिल हैं।
इससे घबराए श्री राहुल गांधी अब अनाप-शनाप बातें करने लगे हैं। उन्होंने पिछले दिनों एक बातचीत में दो ऐसी बातें कही हैं, जो पूरी तरह से बेसिर-पैर की हैं और किसी समझदार नेता से ऐसी बात की उम्मीद नहीं की जा सकती है। अपनी सरकार में जाति गणना कराने में विफल रहे श्री राहुल गांधी ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष और जाने माने शिक्षाविद् श्री सुखदेव थोराट से बातचीत में कहा कि, ‘जाति गणना का विरोध करने वाले देशद्रोही हैं’। यह बहुत हैरान करने वाली बात है। कोई भी समझदार नेता इतने हल्के फुल्के तरीके से देशद्रोह और देशप्रेम को कैसे परिभाषित कर सकता है? आजादी के बाद 55 साल तक कांग्रेस की सरकार रही है, जिसमें करीब 40 साल श्री राहुल गांधी के परनाना पंडित जवाहर लाल नेहरू, उनकी दादी श्रीमति इंदिरा गांधी और उनके पिता श्री राजीव गांधी ही प्रधानमंत्री रहे। उनमें से किसी ने जाति गणना नहीं कराई तो क्या वे लोग देशद्रोही थे? खुद श्री राहुल गांधी के सांसद बनने और कांग्रेस में नीति निर्धारक बनने के बाद 2011 की जनगणना हुई थी तो क्यों नहीं उन्होंने उसमें जाति की गणना कराई? अगर नहीं कराई तो क्या वे और उनकी पार्टी की तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी और तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह देशद्रोही थे? या जाति गणना का विरोध करना देशद्रोह की श्रेणी में अभी हाल के दिनों में डाला गया है? पहले तो कांग्रेस ने हमेशा जाति गणना का विरोध किया और मंडल आयोग की रिपोर्ट लंबित रखी थी, क्या तब यह देशप्रेम कहलाता था?
श्री राहुल गांधी ने जाति गणना का विरोध करने वालों को देशद्रोही बताने के बाद दूसरी मूर्खतापूर्ण बात यह कही है कि मेरिट यानी योग्यता या प्रतिभा का सिद्धांत दोषपूर्ण है। उन्होंने मेरिट के सिद्धांत को दोषपूर्ण बताते हुए कहा है कि यह सवर्ण मानसिकता से सवर्ण हितों की रक्षा के लिए बनाया गया एक सिद्धांत है। श्री सुखदेव थोराट के साथ बातचीत में ही राहुल गांधी ने यह बात भी कही। आरक्षण समर्थक कुछ अति क्रांतिकारी लोग इस तरह की बातें पहले भी कहते रहे हैं। लेकिन मुख्यधारा के किसी राजनेता ने, जो एक संवैधानिक पद पर बैठा हुआ उसने कभी ऐसी बात नहीं कही थी। मेरिट यानी योग्यता, क्षमता, कार्यकुशलता के प्रति ऐसा अपमान का भाव इससे पहले किसी राजनेता ने नहीं दिखाया है। पुरानी कहावत है कि ‘नया मुल्ला ज्यादा प्याज खाता है’। चूंकि राहुल गांधी आरक्षण की राजनीति के नए मुल्ला हैं, इसलिए ज्यादा प्याज खा रहे हैं। आरक्षण के सबसे बड़े चैंपियन श्री वीपी सिंह, जिन्होंने मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू की या श्री लालू प्रसाद यादव, श्री मुलायम सिंह यादव और श्री शरद यादव की तिकड़ी ने भी कभी आरक्षण का समर्थन करने के लिए योग्यता को कमतर नहीं बताया। चूंकि राहुल गांधी और उनकी पार्टी का इतिहास वंशवाद को बढ़ावा देने और आरक्षण के विरोध का रहा है इसलिए उस दाग को मिटाने के लिए राहुल ऐसी बातें कर रहे हैं।
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे पहले आरक्षण के जो भी चैंपियन रहे हैं वे अपनी योग्यता, क्षमता और परिश्रम के बल पर राजनीति में सफल हुए। वे श्री राहुल गांधी की तरह विशेषाधिकार के दम पर राजनीति में नहीं आए थे और न उसके आधार पर राजनीति में सफल हुए। इसलिए वे मेरिट के महत्व को जानते थे। इसके उलट श्री राहुल गांधी के लिए कभी भी मेरिट का कोई मतलब नहीं रहा क्योंकि स्कूल, कॉलेज की पढ़ाई से लेकर विदेश में पढ़ाई और राजनीति में एंट्री तक सब कुछ उनको इसलिए मिला क्योंकि वे नेहरू गांधी परिवार के सदस्य थे। सिर्फ वे ही नहीं उनके परिवार के ज्यादातर सदस्य कई पीढ़ियों से राजनीति में अपने परिवार के विशेषाधिकार के बल पर ही आगे बढ़े हैं। श्रीमति इंदिरा गांधी इसलिए प्रधानमंत्री बनीं क्योंकि वे पंडित जवाहर लाल नेहरू की पुत्री थीं। श्री राजीव गांधी इसलिए प्रधानमंत्री बने क्योंकि वे श्रीमति इंदिरा गांधी के बेटे थे। श्रीमति सोनिया गांधी इसलिए कांग्रेस अध्यक्ष बनीं क्योंकि वे राजीव गांधी की विधवा थीं। श्री राहुल गांधी इसलिए कांग्रेस अध्यक्ष बने क्योंकि वे श्री राजीव गांधी और श्रीमति सोनिया गांधी के बेटे थे। वे अपनी काबिलियत के दम पर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष नहीं बने हैं, बल्कि अपने एनटाइटाइलमेंट की बदौलत वह महत्वपूर्ण संसदीय पद उनको मिला है। अन्यथा लोकसभा में कांग्रेस के 99 सांसदों में से अनेक ऐसे हैं, जो उनसे ज्यादा अनुभवी और काबिल हैं। श्रीमति प्रियंका गांधी वाड्रा केरल की वायनाड सीट से लोकसभा चुनाव जीत कर आई हैं तो इसलिए नहीं कि वे बहुत काबिल हैं। केरल कांग्रेस में ही अनेक काबिल लोग इधर उधर भटक रहे हैं। लेकिन यह परिवार का विशेषाधिकार है, जिसकी वजह से आज श्रीमति सोनिया गांधी और उनके दोनों बच्चे संसद के सदस्य हैं।
परिवार के विशेषाधिकार की वजह से कांग्रेस अध्यक्ष और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद श्री राहुल गांधी अब मेरिट का अपमान कर रहे हैं और उसे दोषपूर्ण सिद्धांत बता रहे हैं। ऐसा लगता है कि जब वे ऐसी बातें करते हैं तो उनको खुद ही समझ में नहीं आता है कि वे क्या कह रहे हैं। योग्यता के सिद्धांत को बेकार या दोषपूर्ण बता कर असल में श्री राहुल गांधी ने देश के लाखों, करोड़ों ऐसे लोगों का अपमान किया है, जिन्होंने अपनी मेधा और अपने परिश्रम के दम पर सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में अपना नाम बनाया है। राजनीति से लेकर कारोबार और खेल से लेकर फिल्म तक लाखों ऐसे लोग हैं, जो बेहद कमजोर आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमि वाले हैं। उन्होंने अपनी प्रतिभा के दम पर सफलता हासिल की है। उन्होंने अपनी योग्यता के दम पर अपने लिए अवसर बनाए और लाखों लोगों को प्रेरित किया। लेकिन चूंकि नेहरू-गांधी परिवार अपनी योग्यता के दम पर आगे बढ़ने वाले पिछड़े, दलितों का हमेशा अपमान करता रहा है इसलिए श्री राहुल गांधी भी वही काम कर रहे हैं। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर से लेकर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी तक इसी वजह से नेहरू-गांधी परिवार के निशाने पर रहे हैं क्योंकि ये अपनी योग्यता के दम पर सफल हुए। यह श्री राहुल गांधी की बौखलाहट भी हो सकती है। क्योंकि वे देख रहे हैं कि कैसे अपनी 20 साल की राजनीति में उन्होंने और उनसे पहले उनकी मां ने सिर्फ विशेषाधिकार वाले लोगों को आगे बढ़ाया, जबकि दूसरी ओर भाजपा में अपने दम पर राजनीति में मुकाम बनाने वाले नेता आगे बढ़े। बेहद गरीब परिवार से आने वाले श्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं और पंडित जवाहर लाल नेहरू के रिकॉर्ड की बराबरी की है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने पूरी दुनिया में भारत का मान बढ़ाया है। उनके नेतृत्व में तमाम ऐसे लोगों को राजनीति में उच्च स्थान प्राप्त हुआ है, जो अपनी काबिलियत के दम पर आगे बढ़े हैं।
आश्चर्यजनक बात यह है कि श्री राहुल गांधी के बारे में कहा जाता है कि वे इंग्लैंड और अमेरिका में पढ़ाई की। सवाल है क्या हार्वर्ड और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में यह पढ़ाया जाता है कि योग्यता कोई चीज नहीं है? योग्यता की बजाय विशेषाधिकार महत्वपूर्ण है? ध्यान रहे श्री राहुल गांधी को 12वीं कक्षा में सिर्फ 61 फीसदी नंबर आए थे और फिर भी देश के सबसे प्रतिष्ठित कॉलेजों में से एक सेंट स्टीफेंस कॉलेज में उनको दाखिला मिला था तो वह स्पोर्ट्स कोटे से मिला था। उनकी पढ़ाई का ट्रैक रिकॉर्ड कोई अच्छा नहीं रहा है। हो सकता है कि इस वजह से भी वे योग्यता के महत्व को नहीं समझते हों। लेकिन उनको यह तो समझना चाहिए कि आज दुनिया में ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था का समय है। बड़ी बड़ी फैक्टरी चलाने वाले आज दुनिया के सबसे अमीर कारोबारी नहीं हैं, बल्कि अपने ज्ञान, अपनी मेधा और अपने परिश्रम से एपल, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, अमेजन, स्पेसएक्स जैसी कंपनियां खड़ी करने वाले दुनिया के सबसे अमीर और सम्मानित लोग हैं। ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के इस समय में अगर कोई व्यक्ति योग्यता के सिद्धांत को खारिज करता है तो वह वास्तव में देश और समाज को पीछे ले जाने की बात कर रहा है। आरक्षण की बात करना या किसी अन्य किस्म के एफर्मेटिव एक्शन की बात करना अपनी जगह है। वह काम श्री नरेंद्र मोदी से बेहतर किसी ने नहीं किया है। उन्होंने पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया। उन्होंने मेडिकल दाखिले के केंद्रीय कोटा में आरक्षण का प्रावधान किया। उन्होंने गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण की व्यवस्था कराई और साथ ही लैटरल एंट्री के जरिए प्रतिस्पर्धी बाजार में काम कर चुके मेधावी लोगों को भी सरकार में जगह दी। उन्होंने दिखाया कि आरक्षण की गारंटी करने का मतलब मेधा और प्रतिभा का अपमान करना नहीं होता है। दुर्भाग्य से राहुल गांधी यह बात नहीं समझ रहे हैं। वे सत्ता की चाह में इतने बेचैन हैं कि योग्यता का ही अपमान करने लगे। उनको समझना चाहिए कि प्रतिभा, योग्यता, क्षमता और परिश्रम का कोई विकल्प नहीं होता है। (लेखक दिल्ली में सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त विशेष कार्यवाहक अधिकारी हैं।)