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09-04-2025 Vol 19

जल और उर्वरता की पूजा का दिन

पद्मनाभ द्वादशी को अत्यधिक शुभ माना जाता है। इस दिन नया व्यवसाय, नया कार्य आरम्भ करना अत्यंत शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो भी कार्य इस दिन आरम्भ किया जाता है, उसका परिणाम उम्मीद से कहीं अधिक अच्छा होता हैं। इस दिन यात्रा प्रारम्भ करना भी शुभफल दायक रहता है। इस वर्ष 2023 में पद्मनाभ द्वादशी का व्रत एवं पूजन 26 अक्टूबर दिन बृहस्पतिवार के दिन किया जाएगा। बृहस्पतिवार भगवान विष्णु का दिन है, और उनके पूजन के लिए यह दिन शुभ माना गया है।

26 अक्टूबर-पद्मनाभ द्वादशी

चातुर्मास में भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग की शय्या पर शयन करते हैं। विष्णु की इस विश्राम अवस्था को पद्मनाभ कहा जाता है। इसलिए चातुर्मास के अंतकाल में आने वाली आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को पद्मनाभ द्वादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु जागृतावस्था प्राप्त करने हेतु अंगडाई लेते हैं, तथा पद्मासीन ब्रह्या ओंकार (ॐ) ध्वनि का उच्चारण करते हैं। आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन पद्मनाभ द्वादशी का व्रत एवं पूजन किए जाने की पौराणिक परिपाटी है। इस दिन  भगवान विष्णु के अनन्त पद्मनाभ स्वरूप की अराधना की जाती है। मान्यता है कि पद्मनाभ द्वादशी के दिन भगवान श्रीहरि के पद्मनाभ स्वरूप के विशेष पूजन से निर्धन भक्त को धनवान एवं नि:संतानों को संतान सुख के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है।

पद्मनाभ द्वादशी को अत्यधिक शुभ माना जाता है। इस दिन नया व्यवसाय, नया कार्य आरम्भ करना अत्यंत शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो भी कार्य इस दिन आरम्भ किया जाता है, उसका परिणाम उम्मीद से कहीं अधिक अच्छा होता हैं। इस दिन यात्रा प्रारम्भ करना भी शुभफल दायक रहता है। इस वर्ष 2023 में पद्मनाभ द्वादशी का व्रत एवं पूजन 26 अक्टूबर दिन बृहस्पतिवार के दिन किया जाएगा। बृहस्पतिवार भगवान विष्णु का दिन है, और उनके पूजन के लिए यह दिन शुभ माना गया है। इस दिन भगवान विष्णु व केले के वृक्ष के पूजन का विशेष महत्व माना गया है। इस वर्ष 2023 में 26 अक्टूबर दिन बृहस्पतिवार के दिन पद्मनाभ द्वादशी का व्रत पड़ रहा है। इसलिए इस वर्ष इस व्रत का प्रभाव और महत्ता बढ़ गई है। माना जा रहा है कि भक्तों पर दुगुनी कृपा बरसेगी। वराह पुराण 49/1-8 को उद्धृत करते हुए कृत्यकल्पतरु, हेमाद्रि, कृत्यरत्नाकर आदि ग्रंथों में कहा गया है कि आश्विन शुक्ल पक्ष की द्वादशी पर एक घट स्थापित करके उसमें पद्मनाभ विष्णु की एक स्वर्ण अथवा अन्य किसी धातु से निर्मित प्रतिमा डाल देनी चाहिए। चन्दन लेप, पुष्पों आदि से उस प्रतिमा की पूजा की जाती है। दूसरे दिन किसी ब्राह्मण को दान दिया जाता है। वराह पुराण के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जो भक्त पद्मनाभ द्वादशी व्रत का पालन करते हैं, वे जीवन भर सुख- समृद्धि प्राप्त करते हैं और मोक्ष प्राप्त करते हैं।

पौराणिक मान्यतानुसार पद्म अर्थात कमल में आसीन विष्णु स्वरूप की पूजा जल पर विष्णु के निवास के साथ- साथ निर्माण और जन्म में उनकी भूमिका से जुड़ा हुआ है। विष्णु पुराण के अनुसार आदिकाल में विष्णु की नाभि से खिले कमल में ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई। पद्म पुराण के अनुसार ब्रह्मा विष्णु को निर्देश देते हैं कि वे ब्रह्मांड और शेष सृष्टि का निर्माण कार्य प्रारंभ करें। अशुद्ध समुद्र तल के नीचे से सूर्य की ओर उठने के कारण कमल को धर्म, लौकिक नियम व पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। समुद्र मन्थन के समय लक्ष्मी विष्णु को अपनी सनातन अभिन्न शक्ति के रूप में चुनते हुए उनके गले में कमल की माला फेंकती हैं। और कमल के मुख वाले के रूप में भी उनकी प्रशंसा की जाती है। गजेन्द्र मोक्ष की कथा में अपने भक्त हाथी गजेंद्र को मगरमच्छ से बचाने के लिए आने पर गजेन्द्र विष्णु को प्रसाद के रूप में एक कमल रखता है। कृष्ण के क्षेत्र गोलोक को भी कमल के रूप में चित्रित किया गया है।

पौराणिक वर्णनों में विष्णु को अपने निचले बाएँ हाथ में कमल पकड़े हुए चित्रित किया गया है, जबकि उनकी पत्नी लक्ष्मी अपने दाहिने हाथ में एक कमल रखती हैं। उसे कमल पुष्प पर ही आसीन दिखाया गया है। शिव पुराण और रामायण में अंकित कथा के अनुसार विष्णु के द्वारा एक हजार आठ कमल पुष्प से शिव की विशेषताओं का गुणगान करते हुए पूजन किए जाने से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें सुदर्शन चक्र प्रदान किया था। पद्मनाभ विष्णु और पद्मासना लक्ष्मी का यह प्रतीक जल और उर्वरता का प्रतिनिधित्व करता है। कमल धारण करने वाले विष्णु को पद्मनाभ अर्थात कमल नाभि वाला, पुंडरीकाक्ष अर्थात कमल नेत्र, और पद्मपाणि अर्थात कमल हाथ कहा गया है। देवता के सिर से निकलते हुए कमल के साथ नरसिंह, विष्णु के हाथों में शंख और कमल जल के साथ एक उर्वरक देवता के रूप में उन्हें चित्रित करता है। लौकिक प्रतीक के रूप में यह उनकी सर्वमान्यता है।

इसी कारण भारतीय परंपरा में शंख और कमल को सबसे शुभ प्रतीकों में शामिल किया गया है। और इन प्रतीकों को घरेलू भवन के प्रवेश द्वार के दोनों ओर चित्रित किया जाता है। कमल पृथ्वी का प्रतीक है, और इसमें सम्पूर्ण ब्रह्मांड समाहित है। इसलिए यह ब्रह्मांड के दिव्य संरक्षक के प्रतीक के रूप में विशेष रूप से उपयुक्त है। विष्णुधर्मोत्तर पुराण के अनुसार विष्णु की नाभि से निकलने वाला कमल पृथ्वी का प्रतीक है, जबकि डंठल ब्रह्मांडीय पर्वत, मेरु, ब्रह्मांड की धुरी का प्रतिनिधित्व करता है। विष्णु के हाथ में यह जल का और लक्ष्मी के हाथ में धन का प्रतीक है। भूदेवी स्वयं कमल पर खड़ी हैं। यही कारण है कि वैष्णव जन पद्म को विष्णु या नारायण की एक विशेषता के रूप में चित्रित करते हुए कमल के चरणों, कमल की आंखों, कमल की नाभि,और कमल के गले का महिमागान करते नहीं थकते हैं। कमल से विष्णु के संबंध और विशेषता को समर्पित एक पृथक पुराण ही वर्तमान में प्रचलित है। पद्म पुराण नाम से प्रसिद्ध इस पुराण में  विष्णु की स्तुति गान की गई है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार पद्मनाभ द्वादशी के दिन भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप की पूजा-अर्चना किये जाने का विधान है। यह व्रत पापांकुशी एकादशी के अगले दिन आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को किया जाता है। पद्मनाभ स्वरूप में भगवान विष्णु शेषनाग पर लेटे हुए हैं, इसलिए पूजन हेतु भगवान विष्णु की शेषनाग पर विश्राम करती हुई तस्वीर या प्रतिमा रखना आवश्यक है। इस दिन भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप की यथाविधि पूजन से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी दोनों प्रसन्न होते हैं, और भक्त को उनकी कृपा प्राप्त होती है। पद्मनाभ द्वादशी का व्रत एवं पूजन करने से माता लक्ष्मी की कृपा से अपार धन की प्राप्ति होती हैं।

सुख-समृद्धि, यश और बल में वृद्धि होती है। मनोकामना सिद्ध होती है। समस्त सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। तथा आध्यात्मिक शांति और उन्नति प्राप्त होती है। व्यक्ति का समाज में यश और बल में वृद्धि और समस्त सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती हैं। मान्यता के अनुसार पापांकुशा एकादशी और पद्मनाभ द्वादशी का व्रत करने एवं भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप के पूजन करने से जातक जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करता है। पद्मनाभ द्वादशी का पूजा मंत्र है- ॐ पद्मनाभाय नम:। मान्यता है कि विधि-विधान के साथ इस व्रत का पालन करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते है, उनकी कृपा से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती हैं।

अशोक 'प्रवृद्ध'

सनातन धर्मं और वैद-पुराण ग्रंथों के गंभीर अध्ययनकर्ता और लेखक। धर्मं-कर्म, तीज-त्यौहार, लोकपरंपराओं पर लिखने की धुन में नया इंडिया में लगातार बहुत लेखन।

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