modi mahakumbh speech : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इलाहाबाद यानि प्रयागराज में केंद्र और प्रदेश द्वारा प्रायोजित कुम्भ मेले की तुलना प्रथम स्वतंत्रता संग्राम यानि 1857 की क्रांति से की! इतना ही नहीं उन्होंने अतिश्योक्ति अलंकार का प्रयोग करते हुए उन्होंने कुम्भ आयोजन को राज्य भागीरथ के गंगा अवतरण के समान बताया दिया।
वे इतने पर ही नहीं रुके सतयुग से कलयुग आते तक उन्होंने कुम्भ को “दांडी मार्च” जैसे आंदोलन के संरूप बताया दिया। उन्होंने कुम्भ को देश के इतिहास की हर उस घटना के समानार्थी बना दिया, जिसकी तुलना नहीं की जा सकती।
परंतु महात्मा गांधी के नेत्रत्व की आजादी की लड़ाई की तुलना एक सरकारी आयोजन, जिस पर सरकारों ने 7000 करोड़ से ज्यादा खर्च करने का दावा किया जा रहा हो उसकी तुलना गंगा अवतरण से अथवा 1857 की क्रांति से करना नितांत अनुचित हैं।
गंगा अवतरण एक धार्मिक आख्यान है, करोड़ों वेदिक धर्म मानने वालों के लिए गंगा नदी को देवी समान माना है। उनके सानिध्य मंे सनातन धर्मी अपने अंतिम समय की कामना करता हैं। (modi mahakumbh speech)
हाँ कुम्भ में हुई भगदड़ों में मारे गए लोगों की सरकारी संख्या मे और सार्वजनिक जीवन में लोगों के मानस में मरने वालों की संख्या में जमीन आसमान का अंतर हैं। मौत की दहाई की संख्या को लोग हजारों मंे मान रहे हैं।
भगदड़ के बाद ट्रकों में जिस प्रकार जमीन से लोगों के कपड़ों और जूते के ढेर उठाए गए वे सरकारी दावे को झुठलाते हैं। प्रधानमंत्री ने कुम्भ को देश की एकता बताया वे भूल गए कि 1857 की क्रांति का निशान रोटी और कमल था। कमल हिन्दुओं के लिए पवित्र था तो रोटी गैर हिन्दुओं के लिए, लेकिन लड़ाई मे कुर्बानी दोनों ने बराबरी मे दी थी। ((modi mahakumbh speech))
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कुम्भ ने सारे देश की जनता को एक कर दिया (modi mahakumbh speech)
प्रधानमंत्री जी ने यह भी कहा कि कुम्भ ने सारे देश की जनता को एक कर दिया। अब यहां भी सही नहीं हैं। क्यूंकि कुम्भ मात्र सनातनी धर्मियों का स्नान का अवसर था।
अब पुण्य – और पाप तो भगवाधारी सन्यासी जाने -माने परंतु इस तीर्थ यात्रा में लोगों को कठिनाई और परेशानी उतनी ही हुई थी जितनी – आजादी के पहले लोगों को होती थी। (modi mahakumbh speech
ट्रेनों मे भीड़ और बदइंतजामी के समाचार कुछ तो सरकारी मीडिया मंे भी दिखाए गए, बाकी सोशल मीडिया में तो कुम्भ का नारकीय वर्णन ही दिखाई पड़ रहा था। अब सत्य के अनेक रूप तो नहीं होते बस उसे देखने की नजर अलग होती हैं।
कुम्भ मेला एक धर्मिक आयोजन है जिसका खर्च और बंदोबस्त राज्य और केंद्र सरकार करती हैं। ऐसे सरकारी आयोजन गज़ेटिएर में और विभागीय बजट का हिस्सा तो होते हैं, परंतु इनसे कोई क्रांतिकारी परिवर्तन की उम्मीद तो करना ही नहीं चहिए।
अब ऐसे विहंगम आयोजन में जहां सरकारी दस्तावेज़ों में कुम्भ मेले में भीड़ के नियंत्रण के लिए सैकड़ों ड्रोण खरीदे गए हो, और उसके बाद एक नहीं तीन-तीन बार मेले में भगदड़ हुई ! (modi mahakumbh speech
भगदड़ में मारे गये लोगों को PM ने श्रद्धांजलि नहीं दी
हाँ इतना ही नहीं सरकारी दावों के अनुसार पानी के नीचे काम करने वाले सैकड़ों कैमरे भी खरीदे गए थे। अब इतने कैमरों की आँख के होते हुए भी त्रिवेणी संगम में नदी के जल की शुद्धता के बारे में कोई रिपोर्ट नहीं जारी हुई।
हालांकि भारत सरकार की केन्द्रीय प्रयोगशाला ने अपनी जांच में नदी के जल को इतना दूषित -प्रदूषित बताया कि वह पानी पीने की तो दूर नहाने लायक भी नहीं हैं। (modi mahakumbh speech)
अब चूंकि जांच एजेंसी केंद्र सरकार की ही है, इसलिए उसके दावे को नकारा नहीं जा सकता। कानूनी तौर से भी इस रिपोर्ट को अंतिम ही माना जाएगा। परंतु हमारे प्रधानमंत्री जी ने कुम्भ का जल अमेरिकी सचिव तुलसी गेबार्ड को भी भेंट मंे दिया।
अब चलते – चलते संसद मंे प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद लोकसभा मे प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने जहां विपक्ष को चर्चा मे मौका नहीं दिए जाने की शिकायत की वहीं उन्होंने भगदड़ में मारे गये लोगों को प्रधानमंत्री द्वारा श्रद्धांजलि नहीं दिए जाने की शिकायत भी की।
हालांकि हिन्दू राष्ट्र के समर्थक नवोदित धर्म प्रचारक बागेश्वर बाबा के अनुसार तो कुम्भ में मारे गए लोगों को तो मोक्ष मिलेगा, क्यूंकि वे गंगा के तट पर प्राण दिए हैं ! (modi mahakumbh speech)