भोपाल। प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2023 के लिए भाजपा और कांग्रेस के साथ-साथ बसपा, आप और जयश के भी उम्मीदवार मैदान में आ रहे हैं। जिस तरह का माहौल है और प्रत्याशियों द्वारा तगड़ा मैनेजमेंट किया जा रहा है उसके बीच मतदाता अभी तो दिग्भ्रमित जैसी स्थिति में पहुंच रहा है। चुनाव आते-आते ध्रुवीकरण की प्रक्रिया चलती रहेगी।
दरअसल, प्रदेश के इतिहास में इस बार विधानसभा चुनाव बेहद कठिन माना जा रहा है क्योंकि अब मतदाता प्रतिक्रिया देने से बच रहा है। खासकर दिग्गज प्रत्याशियों के क्षेत्र में मतदाता बोलने की बजाय हाथ जोड़कर हमें कुछ नहीं पता की प्रतिक्रिया दे देता है। कहीं अंडर करंट की बात हो रही है तो कहीं तीसरे विकल्प की तलाश चल रही है। कही-कही वे सब दावेदार आपस में लामबंद हो रहे हैं जिन्हें किसी कारणवश टिकट नहीं मिल पाया है और अपनी भड़ास निकालने के लिए एक – दूसरे को चुनाव लड़ने के लिए उकसा रहे हैं जबकि स्वयं चुनाव लड़ने से बच रहे हैं। जिस तरह का महंगा खर्चीला चुनाव अभियान हो गया है उससे हर कोई चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा क्योंकि प्रदेश में आमतौर पर भाजपा और कांग्रेस के बीच ही मतदाता झूलता रहा है। बहुत कम मौकों पर निर्दलीय या किसी अन्य दल को मौका मिला है। इस कारण दोनों प्रमुख दलों के असंतुष्ट अपने-अपने दल को सबक सिखाने के लिए एक तीसरा उम्मीदवार खड़ा करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। इसके लिए बसपा, जयस, सपा और आम आदमी पार्टी भी बेहतर विकल्प माने जा रहे हैं। इन असंतुष्टो के समर्थक भी अपने-अपने आका को चुनाव लड़ने के लिए उकसा रहे हैं। जिससे कि उन्हें भी काम मिल सके क्योंकि प्रमुख दलों से टिकट न मिलने के कारण उनके समर्थकों की पूछ पर काम हो गई है और यहां अपने आका के लड़ने पर वे ही सर्व सर्वा रहेंगे और चुनावी लाभ अर्जित कर पाएंगे।
बहरहाल, जिस तरह से भाजपा और कांग्रेस के बीच प्रदेश में दिन प्रतिदिन मुकाबला बेहद कड़ा होता जा रहा है। उसके बाद से तीसरे मोर्चे के दल और निर्दलीयों के लिए अपना स्थान बनाना और भी चुनौती पूर्ण होता जा रहा है। माहौल और मैनेजमेंट का महा मुकाबला प्रदेश की राजनीति में शुरू हो गया है। भाजपा और कांग्रेस के दिग्गज उम्मीदवारों के चुनाव में कितनी व्यवस्थाएं जुटी हुई है। यह अन्य के लिए असंभव जैसा है। केडर बेस राजनीतिक दल के उम्मीदवार इसके बावजूद खंदक की लड़ाई लड़ रहे हैं। एक-एक बूथ को जीतने के लिए कड़ी मशक्कत हो रही है।
कुल मिलाकर नाम वापसी की तारीख 2 नवंबर के बाद ही प्रदेश की विधानसभा क्षेत्र की अंतिम स्थिति स्पष्ट हो पाएगी कि किस विधानसभा क्षेत्र में कितने उम्मीदवार शेष हैं और कहां-कहां निर्दलीय तीसरी मोर्चे के घटक दल चुनौती पेश कर रहे हैं। फिलहाल भाजपा और कांग्रेस के वार रूम असंतुष्टों को मनाने के लिए सक्रिय हो गए हैं। राष्ट्रीय नेतृत्व भी असंतुष्टों से बात कर रहा है और दोनों दल कोशिश कर रहे हैं कि उनके प्रत्याशी के खिलाफ उनके ही दल के बागी खड़े ना हो लेकिन जिस तरह से असंतुष्टों के समर्थक उन्हें उकसा रहे हैं। उससे नेताओं को मनाने में पसीना आ रहा है और माहौल और मैनेजमेंट के इस मुकाबले में फिलहाल मतदाता मूल रहने में ही अपनी समझदारी समझ रहा है।