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09-03-2025 Vol 19

डॉन क्विक्ज़ोटों तले छटपटाता ज्योतिष विज्ञान

ज्योतिषी की जिह्वा पर सरस्वती तभी तक विराजती हैं, जब तक वह मन-वचन-कर्म से अपने को डॉन क्विक्ज़ोटी राजनीतिक सक्रियतावाद से पूरी तरह दूर रख पाता है। इस ललक में पड़ते ही मैं ने बड़े-बड़े स्वनामधन्य ज्योतिषियों पर से प्रभु-कृपा रातों-रात काफ़ूर होते देखी है। अपनी हुड़क पूरी करने के चक्कर में ज्योतिष शास्त्र पर संदेह खड़े कर रहे मियां मिट्ठुओं को अतुलित बल वाले रामदूत सद्बुद्धि दें!

बचपन में मुझे दादा-दादी के गांव में पढ़ने के लिए भेजा गया था और बाद में भी हर साल गर्मियों की छुट्टियों का ज़्यादातर समय अपने गांव में ही और नाना-नानी के तब नन्हे आकार वाले कस्बे में बीतता था। मेरे सब से बड़े ताऊ जी इलाके के मशहूर आयुर्वेदाचार्य और ज्योतिषाचार्य थे। कोसों दूर तक उन की ख्याति थी। वे आजीवन अविवाहित रहे। चाचा-ताऊओं के उस भरे-पूरे परिवार में मै पहली संतान था, सो, सब अपनी-अपनी विद्याएं विरासत में मुझे देने पर तुल गए। कोई हल चलाने, बुआई करने और खेत से पक्षियों को भगाने का प्रशिक्षण देने में लग गया; कोई गाय-भैसों की देखभाल, चारा काटने और उन के लिए सानी लगाने के तौर-तरीकों में पारंगत करने पर तुल गया; कोई मुझे घुड़सवारी सिखाने और घोड़ों की हुनरमंदी-संवर्धन के लिए उन्हें तरह-तरह के अभ्यास कराने के चरणबद्ध उपक्रमों की षिक्षा देने में भिड़ गया; कोई मुझ से दंड-बैठक लगवाने, मुग्दर घुमाने और ठीक से तेल मालिश कर शरीर को चुस्त बनाए रखने पर पिल गया; कोई मुझे तबला, हारमोनियम और संगीत की तालीम देने में दिन-रात एक करने लगा।

तो अपने बचपन में मैं ने मटकों में आसव बनाए, खल-बत्तों में जड़ी-बूटियां कूटीं, खेत में पानी लगाया, रात में मचान पर रहा, बिजूका तैयार किया, तालाब से मिट्टी ढो कर लाया, उस से घर की दीवारें लीपीं, कड़बा-कुट्टी का गोल पहिया घुमा-घुमा कर चारा काटा, गाय-भैंसों के लिए नांद में सानी तैयार की, सुबह-शाम दूध निकाला, घोड़ों की पीठ से कई-कई बार गिरा, ‘सारेगमपधनि’ पर उंगलियां चलाईं, तबले की एकताल, तीनताल, झपटल और ठेके सीखे, अपने बदन की तेल मालिश कर लंगोट लगा कर पहलवानी भी की। अपने चाचा-ताऊओं की इच्छानुसार इन तमाम अनुष्ठानों को छू-छू कर निकलने में मेरा लड़कपन बीता।

मगर मुझे सब से ज़्यादा आकर्षित किया ज्योतिष विद्या ने। ज्योतिष के अनगिन सिद्धांत मेरे सब से बड़े ताऊ जी को कंठस्थ थे। आज की तरह उन्होंने किसी विश्चविद्यालय या विद्या भवन में पढ़ कर ज्योतिष नहीं सीखा था। वे पारिवारिक श्रुति परंपरा में दीक्षित हुए थे। उन्होंने उसी तरह मुझे भी इस शास्त्र का अध्येता बनाने के भरपूर प्रयास किए। नतीज़तन थोड़ी-बहुत कालगणना मैं सीख गया। ज्योतिषीय सिद्धांतों के परिणाम मानव जीवन पर लागू होते देख मैं तब भी चमत्कृत रहा करता था और आज भी वे मुझे हैरत से भर देते हैं। इसलिए मैं मानता हूं कि ज्योतिष शास्त्र पूरी तरह विज्ञान-सम्मत है। गृह-नक्षत्रों की चाल का मनुष्य की ज़िंदगी पर निश्चित ही असर पड़ता है। इस असर का सही आकलन कर पाना ज्योतिष-अध्येता के अपने अध्ययन, योग्यता, समझ और अंतर्मन की शुद्धता पर निर्भर है।

जैसा संसार के हर क्षेत्र में हुआ है, ज्योतिष की दुनिया का भी भीषण बाज़ारीकरण और घनघोर राजनीतिकरण हो गया है। मैं ज्योतिष विद्या के ऐसे बहुत-से आचार्यों को जानता हूं, जो क्रिकेट मैच में जीत-हार, फ़िल्मों के सफल-असफल होने और चुनाव नतीजों की भविष्यवाणियां कर के खूब पैसे पीट रहे हैं। मैं ऐसी एस्ट्रो-वेबसाइट की अंधेरी गलियों का भी चश्मदीद हूं, जिन में तक़रीबन अशिक्षित ज्योतिषी गले में कंठी-माला डाल कर और माथे पर तरह-तरह के तिलक-छापे लगा कर बैठे हुए हैं और उन के ज़रिए प्रति मिनट शुल्क वसूली का फ़ोन-ज्योतिष धंधा चल रहा है। इन में से 99 प्रतिशत को ज्योतिष का कखग भी नहीं मालूम है।

पांच दशक में देश भर के तरह-तरह के ज्योतिषियों के साथ बातचीत के लंबे-लंबे सत्रों से गुजरने का मौक़ा मुझे मिला है। उन में बहुत नामी-गिरामी ज्योतिषी भी हैं और अनाम भी। मैं ने पाया कि नामी-गिरामियों में कुछ अपने विषय के सचमुच प्रकांड हैं, मगर ज़्यादातर के सिर्फ़ नाम बड़े हैं। अनामों में ज़्यादातर का कालगणना अध्ययन बहुत ही अच्छा है और वे मुंहदेखी भविष्यवाणियां नहीं करते हैं। मेरा अनुभव है कि टीवी के पर्दों पर और अख़बारों के पन्नों पर छाए रहने वाले स्त्री-पुरुष ज्योतिषियों में से इक्कादुक्का को छोड़ कर सब अधजल गगरी हैं। उन्हें ज्योतिष का सतही अध्ययन है। वे अखाड़ेबाज़ ज़्यादा हैं, ज्योतिष के गंभीर साधक कम। उन में से अधिकतर की भविष्यवाणियां सार्वजनिक विषयों को ले कर भी एकदम ग़लत साबित होती रही हैं और व्यक्तिगत मामलों में भी।

पिछले दस बरस में ज्योतिषियों की दुनिया का भी बहुत धारदार राजनीतिक धु्रवीकरण हो गया है। ज्योतिषियों की एक टोली है, जो नरेंद्र भाई मोदी को विश्वगुरु बनाने के लिए कमर कसे हुए है। यह टोली ज्योतिष के सिद्धांतों को अपने हिसाब से तोड़-मरोड़ कर भारत के हिंदू राष्ट्र बनने की मूसलाधार भविष्यवाणियां करने में लगी हुई है। इन तालठोकू ज्योतिषियों ने नरेंद्र भाई के आजीवन प्रधानमंत्री बने रहने का समय-समय पर ऐलान करते रहने के लिए आसमान के सारे सितारों को उन की जन्म कुंडली में अपने-अपने हिसाब से बैठा दिया है। मज़े की बात यह है कि नरेंद्र भाई के जन्म का सही समय तो दूर, उन की असली जन्मतिथि भी किसी ज्योतिषी को मालूम नहीं है। 2024 के आम चुनाव में आप ने भी ऐसे बहुत से ज्योतिषियों को भारतीय जनता पार्टी की सीटें चार सौ पार कराते सुना होगा।

नरेंद्र भाई की हर चुनाव से पहले सड़क-दिखाई की भविष्यवाणी करने वाले ज्योतिषियों का भी एक उतना ही दमदार जत्था है। इस प्रतिपक्षी समूह के आचार्यगण आए दिन नरेंद्र भाई के ख़िलाफ़ ‘ये गए, वो गए’ का हल्ला मचाते रहते हैं। वे प्रधानमंत्री के नज़दीकी अहम मंत्रियों-सहयोगियों-उद्योगपतियों को हर दूसरे-तीसरे महीने जानलेवा बीमारियों की चपेट में ले आते हैं। हर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में वे भाजपा के सफाए की भविष्यवाणियों का अंबार लगा देते हैं। बरसो-बरस से मैं ज्योतिष विद्या के इन महामंडलेश्वरों को ग़लत साबित होते देख रहा हूं। चुनाव नतीजे आने के बाद अपनी कालगणनाओं की विफलता को वे मायावी-रचना के कुतर्की घूंघट से ढंकने की कोशिशों में लग जाते हैं। ऐसे बहुत-से आचार्यों को मैं जानता हूं, जो स्वीकार करते हैं कि उन के पास राजनीतिकों में से बहुत कम की ही असली जन्म कुंडलियां हैं, जो यह भी मानते हैं कि ज्योतिषीय गणना कर के किसी राजनीतिक दल को चुनावों में मिलने वाली सीटों की तादाद बताना संभव नहीं है, मगर फिर भी हर चुनाव में अपनी यह कलाबाज़ी दिखाने से वे बाज़ नहीं आते हैं।

2024 के आम चुनाव के पहले मैं ने भी कई ज्योतिषियों से नतीजों को ले कर औपचारिक-अनौपचारिक बातचीत की। कुछ आचार्यों ने कहा कि मोदी को 2019 में हुए चुनाव से ज़्यादा सीटें मिलेंगी। कुछ ने कहा कि उन के दोबारा प्रधानमंत्री बनने का कोई योग ही नहीं है। चंद ज्योतिषियों ने मेरे साथ बैठ कर भारतवर्ष, कांग्रेस, भाजपा, नरेंद्र भाई, राहुल गांधी, मतदान की तारीखों और चुनाव परिणाम की घोषणा वाले दिन की कुंडलियों का बहुत विस्तार से अध्ययन करने के बाद कहा कि सरकार बनाने के लिए स्पष्ट बहुमत नरेंद्र भाई को नहीं मिलेगा, मगर भाजपा ही सब से बड़ा राजनीतिक दल होगी और प्रधानमंत्री फिर नरेंद्र भाई ही बनेंगे। वही हुआ। इसलिए मैं मानता हूं कि ज्योतिषी की जिह्वा पर सरस्वती तभी तक विराजती हैं, जब तक वह मन-वचन-कर्म से अपने को डॉन क्विक्ज़ोटी राजनीतिक सक्रियतावाद से पूरी तरह दूर रख पाता है। इस ललक में पड़ते ही मैं ने बड़े-बड़े स्वनामधन्य ज्योतिषियों पर से प्रभु-कृपा रातों-रात काफ़ूर होते देखी है। अपनी हुड़क पूरी करने के चक्कर में ज्योतिष शास्त्र पर संदेह खड़े कर रहे मियां मिट्ठुओं को अतुलित बल वाले रामदूत सद्बुद्धि दें!

पंकज शर्मा

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स में संवाददाता, विशेष संवाददाता का सन् 1980 से 2006 का लंबा अनुभव। पांच वर्ष सीबीएफसी-सदस्य। प्रिंट और ब्रॉडकास्ट में विविध अनुभव और फिलहाल संपादक, न्यूज व्यूज इंडिया और स्वतंत्र पत्रकारिता। नया इंडिया के नियमित लेखक।

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