गांधी शांति प्रतिष्ठान में जेपी की संस्था सिटीजंस फॉर डेमोक्रेसी अपनी स्वर्ण जयंती मना रही है। आज जेपी नहीं हैं। बस उनकी यादें और उनके दिखाए गए रास्ते हैं। जेपी की बनाई संस्था सिटीजंस फॉर डेमोक्रेसी के 50 साल पूरे होने पर एक आयोजन हुआ था। उसकी रिपोर्ट।
करीब 50 साल पहले जयप्रकाश नारायण ने दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में नागरिक समाज की एक संस्था “सिटीजंस फॉर डेमोक्रेसी” की स्थापना की थी क्योंकि तब उन्हें लोकतंत्र को बचाना था और लोकतंत्र को बचाने के लिए ही उन्होंने आपातकाल का विरोध किया था। उसी गांधी शांति प्रतिष्ठान से वे गिरफ्तार भी हुए थे। देश मे इमरजेंसी लगी लेकिन जेपी ने इंदिरा गांधी की तानाशाही का खुल कर विरोध करते हुए उनकी सत्ता को उखाड़ फेंका था।
उसी गांधी शांति प्रतिष्ठान में जेपी की संस्था सिटीजंस फॉर डेमोक्रेसी अपनी स्वर्ण जयंती मना रही है। आज जेपी नहीं हैं। बस उनकी यादें और उनके दिखाए गए रास्ते हैं।
जहां जेपी लोकतंत्र बचाने के लिए यह संस्था बनाई थी उसी सभागार में उसका दो दिन का कार्यक्रम शुरू हुआ जिसका उद्घाटन उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति मदन लोकुर ने किया। जब जेपी इस संस्था का गठन कर रहे थे तो सभागार के बाहर भी लोग थे और फिर इतनी भीड़ हो गई कि लोग सड़कों पर जमा थे और लाउडस्पीकर से जेपी का भाषण सुन रहे थे। लेकिन उसके 50 साल पूरे होने पर सभागार बड़ी मुश्किल से भर पाया था और हाल के बाहर कोई भीड़ नहीं थी और सड़कों पर भीड़ होने का कोई सवाल ही नहीं।
देश में आपातकाल 50 साल पहले लगा था और उस आपातकाल का विरोध करनेवाली ताकतें अब आज सत्ता में है और उसने एक “अघोषित” आपातकाल लगा रखा है, जिसका नतीजा यह है कि केवल नागरिक समाज ही नहीं, बल्कि पूरा मीडिया भी उस “अघोषित” आपातकाल के साए में जी रहा है और बेकसूर लोग पकड़े जा रहे हैं और उन्हें अदालत से जमानत भी नहीं मिल पा रही है। उस समय मीसा कानून था। आज यूएपीए है।
सिटीजंस फॉर डेमोक्रेसी ने देशवासियों को यह जताने के लिए कि देश इस समय खतरे से गुजर रहा है और लोकतंत्र के लिए यह गहरा संकट है, यह आयोजन किया था, जिसमें मुंबई, पुणे चेन्नई, हैदराबद, पटना आदि जगहों से लोग आए थे। लेकिन दिल्ली के लोगों में हलचल नहीं है। समारोह में आशंका व्यक्त की गई कि अगर देश का यही हाल रहा तो एक दिन यहां भी सैन्य तानाशाही शुरू हो सकती है क्योंकि सेना के अध्यक्षों को चुनाव में टिकट देने और उन्हें जिताने की भी एक नई परंपरा शुरू हो गई है।
सिटीजंस फॉर डेमोक्रेसी की ओर से गांधी शांति प्रतिष्ठान में हुए आयोजन में उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति मदन लोकुर, प्रसिद्ध समाजशास्त्री आनंद कुमार, सिटीजंस फ़ॉर डेमोक्रेसी के अध्यक्ष एसआर हीरेमठ, महासचिव एनडी पंचोली, गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत और प्रमुख पत्रकार मणिमाला आदि ने लोकतंत्र को बचाने का आह्वान किया। लेकिन दिल्ली की जनता उदासीन थी। आखिर इसके क्या कारण है। 50 साल में भारतीय मध्य वर्ग के सरोकारों में बदलाव आ गया है या उसमें भगवा रंग फैल गया है और वह हिंदुत्व की लहर में फंस गया है?
जेएनयू में समाजशास्त्र के प्रोफेसर रहे आनंद कुमार ने कहा, ‘आज से 50 साल पहले मैं इसी सभागार में एक कार्यकर्ता के रूप में बैठा जयप्रकाश नारायण को सुन रहा था जिन्होंने इस संस्था की स्थापना की थी ।मुझे बहुत खुशी हो रही है और गर्व भी महसूस कर रहा है हो रहा है कि आज मैँ सभागार के उसी मंच से लोगों को संबोधित कर रहा हूं’। उन्होंने कहा कि इस समय देश में लोकतंत्र खतरे में है और वह आईसीयू में अंतिम सांस ले रहा है, जिसे बचाने के लिए नागरिक समाज को आगे आने की बहुत जरूरत है। उन्होंने याद दिलाया कि प्रख्यात मानवाधिकार विशेषज्ञ एवम पूर्व न्यायाधीश एमवी तरकुंडे ने आज से 50 साल पहले चुनाव सुधार का एक प्रस्ताव पेश किया था, जिस पर बाद की सरकारों ने अमल नहीं किया लेकिन आज चुनाव सुधार की बेहद जरूरत है क्योंकि यह लोकतंत्र अब पूरी तरह पूंजी के हवाले हो गया है और चुनाव का भी अब बाजारीकरण हो गया है।
उन्होंने कहा कि आजादी के समय राजनीति सेवा भाव का काम था और यही कारण है कि महात्मा गांधी ने सेवाग्राम से अपनी आजादी की लड़ाई शुरू की थी और भारत रत्न से सम्मानित भगवान दास ने भी अपने घर सेवा सदन से आजादी की लडाई शुरू की थी, जबकि 1920 में आज संस्थापक शिव प्रसाद गुप्त ने सेवा आश्रम बनाया था लेकिन आजादी के बाद राजनीति सेवा का काम नहीं रह गया, बल्कि वह सत्ता प्राप्त करने का साधन हो गया। पहले तो कुछ लोग जनता की थोड़ी बहुत सेवा करते थे पर अब उनका असली काम सत्ता को पाना होता है और यह सत्ता चुनाव के जरिए ही हासिल की जाती है, इसलिए चुनाव में सुधारो की बहुत आवश्यकता है। पिछले कुछ चुनावों से ईवीएम के घोटाले के आरोप लगने लगे हैं और अब यह चुनाव भी बहुत पाक साफ नहीं रहा।
इससे पहले न्यायमूर्ति मदन लोकुर ने कहा कि इस समय देश में एक तरह से अघोषित आपातकाल लगा हुआ है जबकि जय प्रकाश नारायण ने घोषित आपातकाल के खिलाफ अपना आंदोलन शुरू किया था लेकिन आज अघोषित आपातकाल के खिलाफ लड़ने की जरूरत है।
उन्होंने राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के ताजा बयान को बिना उद्धरित किए कहा कि अब संवैधानिक नैतिकता का पालन नहीं हो रहा है और विधायिका न्यायपालिका को संचालित कर रही है और यह सत्ता न्यायपालिका को धमकाने के काम में लगी हुई है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि होती है। राज्यपाल जनता के लिए नियुक्त जाता है लेकिन राज्यपाल विधेयकों को दबाकर बैठ जाते हैं।