इन्टरनेशनल एनर्जी एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2030 तक टेक कंपनियों के डेटासेंटर्स में बिजली की खपत वर्तमान की तुलना में दुगुनी हो जाएगी, जबकि आर्टफिशल इन्टेलिजन्स से जुड़े डेटासेंटर्स में यह मांग चार गुना अधिक होगी| वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर डेटासेंटर्स में बिजली की खपत इतनी होगी जितना आज पूरे जापान की बिजली खपत है| रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में एक डेटासेंटर में जितनी बिजली की खपत है, उससे लगभग एक लाख घरों के बिजली की खपत पूरी की जा सकती है|
वर्ष 2024 में क्लाइमेट एक्शन अगेंस्ट डिसइनफार्मेशन नामक वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों के एक समूह ने दुनिया को सचेत किया था कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बारे में टेक कंपनियों के पर्यावरण सुरक्षा के दावे भ्रामक और गलत हैं और इसके बढ़ते उपयोग के कारण तापमान बृद्धि करने वाली ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में तेजी से बढ़ोत्तरी होगी और साथ ही तापमान बृद्धि के विज्ञान और प्रभाव से सम्बंधित भ्रामक जानकारियों का तेजी से विस्तार होगा| यह चेतावनी, द एआई थ्रेट्स टू क्लाइमेट चेंज, नामक रिपोर्ट के माध्यम से दी गयी गई है| क्लाइमेट एक्शन अगेंस्ट डिसइनफार्मेशन के साथ ग्रीनपीस, फ्रेंड्स ऑफ़ द अर्थ, चेक माय एड्स और केरोस जैसी पर्यावरण सुरक्षा में संलग्न संस्थाएं भी जुड़ी हैं|
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वाली टेक कम्पनियों के साथ ही तमाम सरकारें, अन्तराष्ट्रिय ऊर्जा संस्थान और संयुक्त राष्ट्र भी पर्यावरण संरक्षण के नाम पर इसे बढ़ावा दे रहा है| वैज्ञानिकों का एक वर्ग भी प्रचारित कर रहा है कि पर्यावरण संरक्षण के काम में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बहुत मदद कर सकता है| इससे वनों के काटने की दर, प्रदूषण उत्सर्जन, मौसम की सटीक जानकारी इत्यादि विषयों पर जल्दी और सटीक जानकारी प्राप्त की जा सकती है| इस समय भी अफ्रीका में सूखे का आकलन और ध्रुवों पर बर्फ के पिघलने की दर का अध्ययन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से किया जा रहा है|
गूगल के एआई प्रोग्राम, जिसे पहले बार्ड के नाम से और अब जेमिनी के नाम से जाना जाता है, पर्यावरण संरक्षण में एआई के योगदान की वकालत करता रहा है| जेमिनी की मदद से पर्यावरण के क्षेत्र में अनेक अध्ययन भी किये जा रहे हैं| वर्ष 2023 में गूगल के सस्टेनेबिलिटी विभाग ने प्रचारित किया था कि पर्यावरण संरक्षण में केवल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को बढ़ावा देकर वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन वर्ष 2030 तक 10 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है|
इसके बाद आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़े अनेक वैज्ञानिकों ने गूगल के इस दावे को हास्यास्पद और भ्रामक बताया है| इन वैज्ञानिकों के अनुसार पर्यावरण संरक्षण में एआई के अत्यधिक उपयोग के बाद इससे सम्बंधित डेटा सेंटर्स की संख्या दुगुनी करनी पड़ेगी और इस कारण उर्जा की खपत बढ़ेगी| इस उर्जा के उत्पादन के कारण ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन ऊर्जा संरक्षण की तमाम प्रौद्योगिकी को अपनाने के बाद भी 80 प्रतिशत तक बढ़ जाएगा| अमेरिका में एआई के बढ़ते उपयोग के कारण उर्जा की मांग बढ़ती जा रही है, जिसे पूरा करने के लिए बंद किये जाने वाले कोयले से चलने वाले ताप-बिजली घर अभी तक चलाये जा रहे हैं| एक अध्ययन के अनुसार अगले तीन वर्षों में, यानि 2027 तक, एआई से सम्बंधित डेटा सेंटर्स में बिजली आपूर्ती के कारण ग्रीनहाउस गैसों का जितना उत्सर्जन होगा, उतना उत्सर्जन पूरे नीदरलैंड से उत्पन होता है| एआई से सम्बंधित डेटा सेंटर्स अत्यधिक जटिल होते हैं और इनमें बिजली की खपत अधिक होती है| कम्पूटर द्वारा किसी विषय पर सामान्य तरीके से जानकारी हासिल करने की तुलना में एआई द्वारा उसी जानकारी को हासिल करने में बिजली की खपत 10 प्रतिशत तक बढ़ जाती है|
इन्टरनेशनल एनर्जी एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2030 तक टेक कंपनियों के डेटासेंटर्स में बिजली की खपत वर्तमान की तुलना में दुगुनी हो जाएगी, जबकि आर्टफिशल इन्टेलिजन्स से जुड़े डेटासेंटर्स में यह मांग चार गुना अधिक होगी| वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर डेटासेंटर्स में बिजली की खपत इतनी होगी जितना आज पूरे जापान की बिजली खपत है| रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में एक डेटासेंटर में जितनी बिजली की खपत है, उससे लगभग एक लाख घरों के बिजली की खपत पूरी की जा सकती है| जितने नए डेटासेंटर्स पर काम चल रहा है, उनमें से अनेक ऐसे हैं जिनमें बिजली की खपत वर्तमान की तुलना में 20 गुना अधिक होगी| अमेरिका में स्थिति यहाँ तक पहुँच गई है कि सभी डेटासेंटर्स में बिजली की सम्मिलित खपत वहाँ के सभी स्टील, सिमेन्ट, रसायन और दूसरे उत्पादों के उद्योगों की सम्मिलित बिजली खपत से भी अधिक पहुँच गई है| डेटासेंटर्स में बिजली की कुल खपत में से लगभग 50 प्रतिशत की आपूर्ति नवीनीकृत ऊर्जा स्त्रोतों से की जा रही है, पर शेष आपूर्ति के लिए कोयले से चलने वाले बिजलीघरों से की जा रही है, जो वैश्विक तापमान बृद्धि का मुख्य कारण हैं|
एक गैर सरकारी संस्था, एम्बर, की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2024 में दुनिया में कम कार्बन उत्सर्जन वाली नवीनीकृत और परमाणु ऊर्जा से कुल वैश्विक बिजली उत्पादन में से 41 प्रतिशत का उत्पादन किया गया और नवीनीकृत ऊर्जा का उपयोग तेजी से बढ़ता जा रहा है| लेकिन वर्ष 2024 में ही विद्युत उत्पादन के लिए कोयले के उपयोग में 1.4 प्रतिशत की बृद्धि दर्ज की गई, जिससे कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जन में 1.6 प्रतिशत की बृद्धि आँकी गई है| रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर बिजली उत्पादन में बृद्धि का मुख्य कारण आर्टफिशल इन्टेलिजन्स, डेटासेंटर्स, बिजली से चलने वाले वाहनों की चार्जिंग और हीटपम्पस में बिजली खपत में अप्रत्याशित बृद्धि है|
सोर्स मटीरीयल नामक संस्था और गार्डीयन द्वारा किए गए संयुक्त अध्ययन के अनुसार अमेजन, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट अपने नए डेटासेंटर्स में से अधिकतर दुनिया के उन हिस्सों में स्थापित कर रहे हैं जो पानी की भीषण किल्लत से गुजर रहे हैं| डेटासेंटर्स में शीतकरण संयंत्र के लिए भारी मात्रा में पानी की जरूरत होती है| वर्ष 2023 में माइक्रोसॉफ्ट ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि उनके डेटासेंटर्स में पानी की कुल खपत में से 42 प्रतिशत पानी उन क्षेत्रों से आता है, जहां पानी की कमी है| वर्ष 2023 में ही गूगल ने भी 15 प्रतिशत पानी शुष्क क्षेत्रों से लेने का दावा किया था|
वैज्ञानिकों के अनुसार एआई द्वारा बिजली और पानी की खपत में पारदर्शिता जरूरी है और इससे झूठी और भ्रामक जानकारी के प्रसार का नियंत्रण भी जरूरी है| यह समस्या इसलिए गंभीर है क्योंकि एक्स जैसे प्लेटफोर्म धड़ल्ले से जलवायु परिवर्तन के विज्ञान और प्रभावों पर गलत जानकारियाँ प्रचारित कर रहे हैं| एआई की मदद से डीपफेक विडियो और चित्रों द्वारा बहुत बड़े पैमाने पर भ्रामक जानकारी फैलाई जा सकती है|
समस्या यह है कि तापमान बृद्धि समेत सभी पर्यावरणीय समस्याएं पूंजीवाद की देन हैं और आर्तिशियल इंटेलिजेंस भी पूंजीपतियों की धरोहर है| पूंजीवाद इसे दुनिया के सभी समस्याओं का निदान बताकर पेश कर रहा है, और दुनिया के सरकारें भी इसे बढ़ावा दे रही हैं| ऐसे में वैज्ञानिकों की चेतावनी कौन सुनेगा?