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20-03-2025 Vol 19

सबसे सकारात्मक भावना है खुशी!

वैदिक मतानुसार जगत का रचयिता परमात्मा है। जिस पदार्थ से जगत बना है, उसे प्रकृति अथवा प्रधान कहते हैं। और यह जगत जीवात्मा समूह के लाभ के लिए बना है। जगत में मनुष्य प्राणी ही मन और बुद्धि युक्त है, जो आनंद प्राप्त कर सकता है, प्रसन्न रह सकता है। (international happiness day)

किंतु मन और बुद्धि प्रकृति का अंग होने से जड़ हैं। इसलिए ये स्वतः ज्ञानयुक्त नहीं हो सकते। ज्ञान प्राप्त करने वाला कोई अन्य है। ज्ञान देने वाला कोई अन्य स्वयं ज्ञानवान होना चाहिए, तभी वह ज्ञान दे सकता है।

इसलिए सृष्टि के आरंभ में मनुष्य को ज्ञान देने वाला परमात्मा ही हो सकता है। जब सृष्टि बन गई तो इसको स्थिर रखने वाला भी कोई अति महान सामर्थ्यवान होना चाहिए। (international happiness day)

अन्यथा पृथ्वी, सूर्य, नक्षत्र और ग्रह, जो निरंतर जगत में घूमते हैं, जड़ होने के कारण चल न सकते। इसे स्पष्ट है  कि संसार का समन्वय करने वाला भी परमात्मा है। परब्रह्म में प्रकृति, आत्मा और परमात्मा तीनों की गणना होती है। तीनों तत्व अनादि हैं, अक्षर हैं।

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20 मार्च –अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस (international happiness day)

इन तीनों तत्वों में दो चेतन हैं- परमात्मा व जीवात्मा। एक सामर्थ्यवान चेतन है, वह परमात्मा कहलाता है। दोनों का गुण ईक्षण करना है। ईक्षण के अर्थ हैं- कर्म के आरंभ और अंत करने का काल, कर्म की दिशा, कर्म के काल और स्थान का निश्चय करना। ब्रह्मांड तो अनंत है।

इसे आकाश की संज्ञा दी गई है। इस ब्रह्मांड में जगत रचना का स्थान, काल और दिशा निश्चय करने वाला चेतन ज्ञानवान कहलाता है, जो कि परमात्मा है। जगत में परमात्मा के अतिरिक्त दो गौण तत्व हैं- जीवात्मा और प्रकृति।  (international happiness day)

परमात्मा गौण तत्व नहीं हो सकता। कहने का तात्पर्य यह है कि जगत का बनाने वाला गौण तत्व नहीं, अपितु मुख्य ही होगा। जीवात्मा का सामर्थ्य सीमित है और प्रकृति तो जड़ होने से किसी भी निर्मित वस्तु का निमित्त कारण नहीं हो सकती।

वैदिक मतानुसार सीमित सामर्थ्य वाला जीवात्मा परमात्मा से जुष्ट होकर मोक्ष पाता है। परमात्मा तत्व हीन नहीं है। यह महान है और हीन तत्वों-जीवात्मा और प्रकृति पर शासन करता है।

यह परमात्मा अपने आप गमन करता है अर्थात अपने कर्म अपने आप ही करता है, किसी दूसरे का आश्रय नहीं लेता। जगत के सब पदार्थ के व्यवहार में समानता है। (international happiness day)

नक्षत्र और ग्रहों की गति में और पृथ्वी पर पदार्थों के समन्वय तथा प्राणियों के जीवन में एक समान व्यवहार देखा जाता है। इस कारण इन सब का रचयिता एक ही है।

परमात्मा वैसा नहीं है

यदि एक से अधिक होते तो पदार्थों के व्यवहार में भिन्नता होती। परमात्मा ही जगत का रचने वाला, पालन करने वाला और प्रलय करने वाला है। यह मनुष्यों के ज्ञान का स्रोत है। (international happiness day)

यह संसार में संयोग- वियोग करने की सामर्थ्य वाला है। यह ईक्षण करने वाला है। ब्रह्म में अन्य दो तत्व हीन गुण वाले हैं। परमात्मा वैसा नहीं है। स्वयं कार्य करता है और आनंदमय है।

परमात्मा की उपासना अर्थात उसके समीप बैठने से जीवात्मा भी आनंदमय  हो जाता है। ब्रह्म में वर्णित दूसरे तत्व अर्थात जीवात्मा और प्रकृति आनंदमय नहीं।  प्रकृति तो जड़ है।

उसके आनंदमय होने की कोई संभावना नहीं। साथ ही जीवात्मा भी स्वयं  आनंदमय नहीं। वैदिक ग्रंथों के अनुसार और अनुभव से भी यही सिद्ध होता है कि जीवात्मा स्वयं आनंदमय नहीं है। (international happiness day)

वह तो परमात्मा से जुष्ट होता है, तभी आनंदमय होता है। आनंदमय होने अर्थात प्रसन्न रहने पर संसार का समस्त धन- वैभव, ऐश्वर्य स्वतः ही प्राप्त हो जाता है, और किसी बात पर उदास अथवा नाराज हो जाने पर सभी प्राप्त वस्तु छीन गया महसूस होने लगता है।

यह मानव स्वभाव है कि हर व्यक्ति सुख- शांति, प्रसन्नता में जीवन जीना चाहता है। सभी प्रसन्न रहना चाहते हैं। सब खुश रहना चाहते हैं। आनंदित रहना चाहते हैं। सृष्टि का मूलतत्व प्रसन्नता है, जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में समाहित है।

यह मानव प्रवृति है

यही कारण है कि आदिकाल से ही मानव इस बात के लिए प्रयासरत है कि वह सदा प्रसन्न रहे। उसका मन आनंदित रहे। वह आनंदचित रहे। मनुष्य की इस अवस्था को ही धनात्मक मनःस्थिति अथवा आशावादी दृष्टिकोण कहते हैं।

वेदान्त के अनुसार मानव आत्मा का स्वभाव एवं स्वरुप ही सत चित आनंद है। सत चित आनंद धारण किया हुआ आत्मा, जो चेतन का प्रमुख गुण है, स्वभाववश उसे ही महसूस करना चाहता है।(international happiness day)

स्व अथवा आत्मा को पांच स्थितियों -भौतिक- भोजन एवं पानी आदि, ऊर्जा- वायु एवं चेतन, मन- मस्तिष्क एवं भावनायें, बुद्धि- विचार, परम आनंद- आत्मा का स्वभाव की आवश्यकता होती है।

प्रसन्नता स्व अथवा आत्मा का स्वभावगत गुण है। यह चेतना एवं ऊर्जा को बढ़ाता है। इससे आशावादी या धनात्मक ऊर्जा पैदा होती है जो मानव जीवन शक्ति में वृद्धि करती है।

प्रसन्नता सिर्फ बाहरी एवं क्षणिक नहीं है। इसके लिए आनंद- भोजन एवं शरीर के भौतिक तत्वों से संबंधित प्रक्रियाएँ, सम्बद्धता- क्रियाकलापों का निगमन एवं प्रसन्नता प्रदान करने वाले कार्यों का संपादन निहित होता है, सामाजिक व्यवहारिकता एवं रिश्ते- सामाजिक क्रियाकलापों एवं व्यवहारों का निष्पादन एवं रिश्तों का निर्वहन, जीवन की सार्थकता का अहसास, लक्ष्यों की प्राप्ति आदि मनोवैज्ञानिक स्थितियां जिम्मेदार होती हैं।

प्रसन्नता बहुत कठिनता से प्राप्त होती है और लोग कठिनता से प्राप्त होने वाली चीजों के पीछे ही भागते ही हैं। यह मानव प्रवृति है। इसलिए लोग कठिनता से प्राप्त होने वाली प्रसन्नता की खोज में लगे रहते हैं। (international happiness day)

प्रत्येक मनुष्य व्यक्तिगत रूप से जीवन में कुछ लक्ष्य निर्धारित कर जीता है, और मन में यह विश्वास कर लेता है कि इन लक्ष्यों को प्राप्त करके ही वह प्रसन्नता का अथवा आनंद का अनुभव कर सकेगा।

प्रसन्न लोग स्वस्थ होते हैं (international happiness day)

प्रसन्नता मानवों में पाई जाने वाली भावनाओं में सबसे सकारात्मक और सर्वव्यापी भावना है। प्रसन्न लोग स्वस्थ होते हैं। मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य मनुष्य की प्रसन्नता पर निर्भर करता है।

प्रसन्न व्यक्ति ज्यादा उत्पादक होते हैं। प्रसन्नता से युक्त व्यक्ति आशावादी होता है एवं अपने लक्ष्य शीघ्रता से प्राप्त कर लेता है। (international happiness day)

मनुष्य अपनी इच्छाओं की पूर्ति से संतुष्ट होकर, अपने दिन-रात के जीवन की गतिविधियों को अपनी इच्छाओं के अनुकूल पाकर, किसी अचानक लाभ से लाभांवित होकर, किसी जटिल समस्या का समाधान प्राप्त कर, दैनंदिन कार्य के बाद परिजनों अथवा मित्रों की संगत अथवा उनकी किसी कामयाबी से, किसी मनोरंजक कार्यक्रम को दिलचस्प, मनोरंजक अथवा मनमोहक पाने आदि विभिन्न कारणों से प्रसन्नता महसूस कर सकता है।

कुछ लोग स्वभाववश भी सदैव प्रसन्न रहने की कोशिश करते हैं। और जीवन की हर चुनौती को सकारात्मक रूप से स्वीकार करते हैं। हंसी और मुस्कुराहट प्रसन्नता के लक्षण हैं। इसी को खुशी भी कहते हैं। (international happiness day)

प्रसन्न रहने के इसी महत्व को देखते हुए प्रतिवर्ष 20 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 2011 में यह संकल्प लिया गया था कि प्रसन्नता मानव का मूलभूत अधिकार होना चाहिए और हर देश का आर्थिक विकास मानव की प्रसन्नता और उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाने पर आधारित होनी चाहिए।

2013 में पहली बार अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस मनाया

वर्ष 2012 में इसी संकल्प के साथ अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस मनाने की घोषणा की गई। और वर्ष 2013 में पहली बार अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस मनाया गया। (international happiness day)

इस दिवस का मूल संदेश वैश्विक कल्याण को बढ़ावा देना, दया और करुणा के कार्यों को प्रेरित करना है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानव मस्तिष्क में मस्तिष्क के न्यूरॉन्स के मध्य संकेतों का सम्प्रेषण करने के लिए डोपामाइन नामक एक रसायन होता है।

मस्तिष्क में सुख के केंद्र अर्थात प्लेजर सेंटर होते हैं। यह डोपामाइन नामक रसायन उन सुख के केन्द्रों को उत्तेजित करता है, जिससे वह उत्तेजना न्यूरॉन्स के माध्यम से सारे मस्तिष्क में फैल जाती हैं। और मानव को प्रसन्नता का अनुभव होने लगता है। (international happiness day)

मस्तिष्क में न्यूरॉन्स के मध्य संकेतों के सम्प्रेषण से एंडोमार्फिन नामक हार्मोन उत्सर्जित होता है। इस हार्मोन के कारण शरीर अपने आप को ऊर्जावान एवं प्रसन्नचित्त महसूस करता है। इससे सिद्ध है कि प्रसन्न रहने की भावना शरीर में उत्सर्जित हार्मोन पर निर्भर करती है।

अशोक 'प्रवृद्ध'

सनातन धर्मं और वैद-पुराण ग्रंथों के गंभीर अध्ययनकर्ता और लेखक। धर्मं-कर्म, तीज-त्यौहार, लोकपरंपराओं पर लिखने की धुन में नया इंडिया में लगातार बहुत लेखन।

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