Sunday

09-03-2025 Vol 19

मेडिकल बीमा कंपनियों ने खुद मोल लिया है जन आक्रोश

स्वास्थ्य बीमा उद्योग तीन D के सिद्धांत से चल रहा है। ये D हैः Delay, Deny और Deposeबीमा कारोबार में Depose का तात्पर्य उन तिकड़मी तौर-तरीकों से होता है, जो बीमा कंपनियां क्लेम देने से इनकार करने के लिए अपनाती हैं। तो इन तीन शब्दों का अर्थ है- क्लेम निपटारे में अधिकतम देर करना, क्लेम देने से इनकार करना, और इनकार के लिए तरह-तरह के तिकड़मी तरीके अपानना। इसके बीमा कंपनियां मजबूत लीगल टीम रखती हैं और उस पर बड़ी रकम खर्च करती हैं। जाहिर है, ये रकम भी प्रीमियम में ही वसूली जाती है।

अमेरिका में मेडिक्लेम क्षेत्र की संभवतः सबसे बड़ी कंपनी यूनाइटेड हेल्थ केयर (यूएचसी) के सीईओ ब्रायन थॉम्पसन की चार दिसंबर की सुबह जब न्यूयॉर्क में एक होटल के बाहर गोली मार कर हत्या कर दी गई, तब इसका शायद ही किसी को अंदाजा होगा कि ये घटना अमेरिकी समाज में दूरगामी महत्त्व की तीखी बहस छेड़ देगी। देखते-देखते चर्चा अमेरिका से बाहर फैलते हुए अलग-अलग देशों तक पहुंच गई। मसलन, भारत में भी प्राइवेट स्वास्थ्य बीमा का पूरा तंत्र गहन परीक्षण के केंद्र में आया है

(https://www.deccanherald.com//opinion/lessons-for-india-from-a-failing-us-model-3321900)।

क्या थॉम्पसन को अपनी कंपनी की नीतियों की कीमत चुकानी पड़ी? और उससे भी बड़ा सवाल यह उठा है कि आखिर स्वास्थ्य बीमा कंपनियां क्यों इतने व्यापक जन आक्रोश के केंद्र में हैं? भारत में यह गुस्सा अभी उस हद तक दिखाई नहीं देता है, तो उसकी वजह संभवतः यही है कि यहां स्वास्थ्य बीमा के कवरेज में आने वाली आबादी की संख्या बहुत कम है। (https://www.forbes.com/advisor/in/health-insurance/health-insurance-statistics/) वैसे, यहां असंतोष कम नहीं है।

अमेरिका में थॉम्पसन की हत्या सोशल मीडिया पर हंगामाखेज खबर बन गई। देखते-देखते उस चर्चा में लाखों लोग भाग लेने लगे। जिस बात ने ध्यान खींचा, वो यह है कि बड़ी संख्या में लोग हत्या को सही कदम बताने लगे। इस ओर ध्यान खींचा गया कि थॉम्पसन को जो गोली लगी, उस पर delay, deny और depose लिखा हुआ था।

अभी पुलिस ने हत्या के आरोपी की पहचान नहीं की थी, तभी उस अज्ञात व्यक्ति की नायक जैसी छवि बना दी गई। कहा गया कि थॉम्पसन की कंपनी ने जो किया, उसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। सैकड़ों लोग अपनी कथा बताने लगे कि कैसे इस कंपनी ने भारी प्रीमियम चुकाने के बावजूद ऐन वक्त पर उन्हें कवरेज देने से मना कर दिया। (https://www.npr.org/sections/shots-health-news/2024/12/06/nx-s1-5217736/brian-thompson-unitedhealthcare-ceo-social-media)

बाद में न्यूयॉर्क पुलिस ने लुइगी मैनजियोनी नाम के एक नौजवान को थॉम्पसन की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया। तब मैनजियोनी के पक्ष में सोशल मीडिया अभियान छिड़ गए।

(https://jacobin.com/2024/12/thompson-unitedhealthcare-working-class-hero) लोगों ने उनका केस लड़ने के लिए चंदा इकट्ठा करना शुरू किया। इस कोष में 15 दिसंबर तक एक लाख डॉलर इकट्ठा हो चुके थे।

आरोप है कि यूएचसी क्लेम की जांच परख के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल करती है, जिसकी प्रोग्रामिंग इस तरह की गई है कि ज्यादातर दावों को ठुकरा दिया जाता है। अमेरिका में हेल्थ केयर लगभग पूरी तरह प्राइवेट सेक्टर के हाथ में है। तो अस्पताल से लेकर दवा उद्योग तक, स्वास्थ्यकर्मियों से लेकर बीमा उद्योग तक सबका प्रमुख उद्देश्य अधिक से अधिक मुनाफा कमाना है। इस क्रम में प्रीमियम महंगा होते गए हैं, जबकि बीमा कंपनियों क्लेम को ठुकरा देने के लिए तरह-तरह के तरीके अपनाती हैँ।

वे कैसे तरीके अपनाती हैं, उसकी एक ताजा मिसाल सामने है। अमेरिका में एक और प्रमुख बीमा कंपनी एंथम ब्लू क्रॉस ब्लू है। इस कंपनी ने बीते नवंबर में बीमाधारी उपभोक्ताओं को सूचित किया कि अब वह सर्जरी के दौरान एनेसथीसिया (बेहोश करने की प्रक्रिया) पर आए पूरे खर्च का भुगतान नहीं करेगी। कंपनी एक सूची जारी करेगी, जिसमें पहले से तय होगा कि किसी ऑपरेशन के लिए एनेसथीसिया चार्ज के रूप में कितना भुगतान होगा।

एंथम की इस घोषणा पर स्वास्थ्य विशेषज्ञ सकते में रह गए। उनके मुताबिक एनेसथीसिया पर कितना खर्च आएगा और एक सर्जरी के दौरान कितनी बार इसका इंजेक्शन देना होगा, यह मरीज की अवस्था पर निर्भर करता है। सर्जरी के प्रकार से इसे तय करने का मतलब बहुत से मरीजों के खर्च के एक बड़े हिस्से के भुगतान से बचना है।

थॉम्पसन की हत्या के बाद मचे शोर के बीच एंथम ने अपने इस निर्णय पर फिलहाल रोक लगाने का एलान किया। एंथम के इस फैसले का श्रेय लेने की होड़ राजनेताओं में भी देखने को मिली है। न्यूयॉर्क की गवर्नर कैथी होचुल ने दावा किया कि उनके हस्तक्षेप के कारण एंथम ने कदम वापस खींचे। वैसे खबर है कि कनेक्टिकट राज्य के प्रशासन ने भी दखल दिया था। (https://www.nbcnews.com/health/health-care/anthem-blue-cross-blue-shield-time-limits-anesthesia-surgery-rcna183035)

इस घटनाक्रम ने इस तथ्य पर रोशनी डाली है कि स्वास्थ्य बीमा उद्योग तीन D के सिद्धांत से चल रहा है। ये D हैः Delay, Deny और Depose। बीमा कारोबार में Depose का तात्पर्य उन तिकड़मी तौर-तरीकों से होता है, जो बीमा कंपनियां क्लेम देने से इनकार करने के लिए अपनाती हैं। तो इन तीन शब्दों का अर्थ है- क्लेम निपटारे में अधिकतम देर करना, क्लेम देने से इनकार करना, और इनकार के लिए तरह-तरह के तिकड़मी तरीके अपानना। इसके बीमा कंपनियां मजबूत लीगल टीम रखती हैं और उस पर बड़ी रकम खर्च करती हैं। जाहिर है, ये रकम भी प्रीमियम में ही वसूली जाती है।

नव-उदारवादी दौर में सब सारी सेवाओं का निजीकरण सरकारों की प्राथमिकता है, तो स्वास्थ्य देखभाल की व्यवस्थाएं प्राइवेट कंपनियों के हाथ पहुंचती चली गई हैं। अगर सरकारी अस्पताल हैं भी, तो इस नीति के तहत उन्हें उपेक्षित किया गया है। प्राइवेट अस्पताल मुनाफा कमाने वाले किसी अन्य व्यापारिक कारोबार की तरह चलते हैं। चूंकि ज्यादातर सरकारी बीमा कंपनियों का भी निजीकरण हो गया है या वे उपेक्षित अवस्था में हैं, तो महंगे प्राइवेट अस्पतालों में इलाज के लिए लोग अधिक से अधिक प्राइवेट बीमा कंपनियों पर निर्भर होते गए हैँ।

चुनावी लोकतंत्र वाले देशों में राजनीतिक दलों को वोट लेने के लिए अक्सर जनता के उन हिस्सों के पास भी जाना पड़ता है, जो बीमा प्रीमियम चुकाने में सक्षम नहीं होते। भारतीय आबादी का तो बहुसंख्यक हिस्सा इसी श्रेणी में आता है। उन लोगों के लिए सरकारें बीमा योजना घोषित करती हैं। मगर ध्यान देने की बात यह है कि ये बीमा भी अक्सर प्राइवेट कंपनियां ही करती हैं। प्रीमियम पूरी तरह या आंशिक रूप से सरकारें चुकाती हैं। इस मूल बिंदु में जाकर देखें, तो साफ होगा कि ये सारे स्कीम करदाताओं के टैक्स से इकट्ठा सार्वजनिक धन को प्राइवेट सेक्टर के हाथों ट्रांसफर करने की योजनाएं हैं।

भारत में तो इसमें बड़े घपले भी सामने आए हैं। कई राज्यों से ऐसी खबरें आईं, जब अस्पतालों और बीमा कंपनियों ने आपसी मिलीभगत से साधारण से इलाज में भी सरकारी बीमा कवरेज की पूरी रकम मरीजों से वसूल ली। उसके बाद मरीजों को अगले वर्ष तक बिना कवरेज के छोड़ दिया गया।

अमेरिका में जहां नव-उदारवादी दौर में राज्य ने अपनी सामाजिक भूमिका लगभग पूरी तरह खत्म कर ली है, वहां निजीकरण की ये योजनाएं चरम अवस्था में पहुंच चुकी हैं। 2016 और 2020 में डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवारी की होड़ में उतरे, खुद को डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट कहने वाले बर्नी सैंडर्स ने सरकारी कोष से संचालित यूनिवर्सल हेल्थ केयर का सिस्टम लागू करने को अपना प्रमुख एजेंडा बनाया था। उन्हें इस पर इतना बड़ा समर्थन मिला कि 2016 तो वे उम्मीदवार चुन ही लिए गए थे- यह तो डेमोक्रेटिक पार्टी ऐस्टबैलिशमेंट की हेरफेर थी, जिसके तहत उन्हें उम्मीदवार ना बनने दिया गया। उनकी जगह ऐस्टबैलिशमेंट का चेहरा हिलेरी क्लिंटन को प्रत्याशी बनाया गया, जो सैंडर्स परिघटना से डेमोक्रेटिक पार्टी का नया समर्थक बने बहुत बड़े तबके का भरोसा जीतने में नाकाम रहीं।

सैंडर्स की कोशिश को 2020 में ऐस्टैबलिशमेंट ने फिर नाकाम कर दिया। उसके बाद से यूनिवर्सल हेल्थ केयर का मुद्दा पृष्ठभूमि में चला गया। बीमा आधारित निजी हेल्थ केयर सिस्टम के अत्याचार से पीड़ित लोगों के लिए ये हताशा की वजह बना हो, तो इसे आसानी से समझा जा सकता है। जब देश की राजनीतिक प्रक्रिया से राहत मिलने की कोई उम्मीद नहीं रही, तो थॉम्पसन जैसे बड़े बीमा अधिकारी को निशाना बनाने जैसा कदम, जैसाकि आरोप है, उनमें से एक नौजवान ने उठा लिया। बड़ी संख्या में लोगों को इस परपीड़क आनंद मिला- संभवतः इसीलिए कि उनके मन में आया होगा कि इसके अलावा उपाय क्या है?

इस बीच डॉनल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति निर्वाचित हो चुके हैं। सामाजिक सेवाओं और मानव विकास योजनाओं पर खर्च में कटौती उनका घोषित प्रमुख कार्यक्रम है। वे खुद को anarcho-capitalist (अराजक पूंजीवादी) कहने वाले अर्जेंटीना के राष्ट्रपति हैवियर मिलेय की खुली जुबान तारीफ करते हैं और उनके रास्ते को आदर्श मानते हैं। मिलेय ने जिस तरह का कार्यक्रम लागू किया है, उसे supernova capitalism भी कहा गया है। वैसे ट्रंप हों या मिलेय ये असल में libertarian हैं। liberalism और libertarianism में फर्क यह है कि liberal समूह अर्थव्यवस्था में राज्य के किसी दखल के विरोधी होते हैं, लेकिन सामाजिक एवं सांस्कृतिक मामलों में लिबरल मूल्यों की स्थापना के लिए वे राज्य के दखल की पैरोकारी करते हैं। libertarian सीमाओं की सुरक्षा और पुलिस व्यवस्था के अलावा किसी अन्य काम में राज्य की भूमिका नहीं मानते। इसीलिए मिलेय मानव अंगों के कारोबार पर भी रोक लगाने के विरोधी हैं।

मिलेय नवंबर 2023 में राष्ट्रपति बने थे। तब से वे अर्जेंटीना की सूरत बिगाड़ते चले गए हैं। ट्रेड यूनियन गैर कानूनी करार दिए गए हैं, पूंजीपतियों के मुनाफे पर से हर तरह का लगाम हटा दिया गया है, देश से बाहर धन ले जाने की पूरी छूट दी गई है और सामाजिक क्षेत्र के बजट में भारी कटौती की गई है। मिलेय ने 13 मंत्रालयों को बंद कर दिया और उनमें काम करने वाले 30 हजार कर्मचारियों को एक झटके में बर्खास्त कर दिया। शिक्षा, स्वास्थ्य, वैज्ञानिक अनुसंधान और पेंशन योजनाओं को या तो रोक दिया गया है या उनके बजट में भारी कटौती की गई है। इन्फ्रास्ट्रक्चर के बजट में 74 फीसदी, शिक्षा बजट में 52 फीसदी, और स्वास्थ्य देखभाल खर्च में 28 प्रतिशत की कटौती की गई है।

उसी राह पर चलने का इरादा दिखा रहे डॉनल्ड ट्रंप फिर से राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। ट्रंप ने जानी-मानी पत्रिका टाइम को दिए एक इंटरव्यू कहा कि उनका इरादा शिक्षा को पूरी तरह राज्यों के पाले में डाल देने का है। जब पत्रिका की ओर से पूछा गया कि क्या इसका मतलब शिक्षा विभाग को बंद कर देना है, तो ट्रंप का जवाब- “वॉशिंगटन में शिक्षा विभाग को लगभग पूरी तरह बंद करना।” (https://time.com/7201565/person-of-the-year-2024-donald-trump-transcript/)

कुछ बीमा योजनाओं को चलाने के अलावा स्वास्थ्य देखभाल चूंकि अमेरिका में सरकार की जिम्मेदारी ही नहीं है, तो उसे बंद करने की जहमत ट्रंप को नहीं उठानी पड़ेगी। मगर पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के शासनकाल में लागू हुए ‘ओबामा केयर’ नाम से चर्चित बीमा योजना को बंद करने और बुजुर्ग लोगों के लिए चलने वाली मेडिकेयर जैसी योजनाओं में कटौती करने की बात ट्रंप सार्वजनिक रूप से कहते रहे हैं।

ये सारी चर्चा हमने थॉम्पसन की हत्या और उस पर जनता के एक बड़े हिस्से  में दिखी विद्रोही प्रतिक्रिया की पृष्ठभूमि समझने के लिए की। किसी की भी हत्या अस्वीकार्य होनी चाहिए। यह दुख का विषय है। मगर हताश जन समूह ऐसी अस्वीकार्य हरकत पर भी खुशी जताते दिखें, तो उनकी बनी मानसिकता को भी जरूर समझा जाना चाहिए। तभी ऐसी घटनाओं को रोका जा सकेगा।

प्रकरण का सार यह है कि पूंजीवाद के नव-उदारवादी दौर का अत्याचार अब असह्य सीमा तक पहुंचने लगा है। इस दौर में मेहनतकश तबकों और आम जन की बढ़ती चली गईं मुसीबतों से ध्यान हटाने के लिए व्यवस्था के कर्ता-धर्ताओं ने जन समूहों की अलग-अलग पहचान की सियासत पर जोर देकर और फिर उन समूहों के बीच नफरत फैलाने का तरीका अपनाया। लेकिन पानी जब सिर के ऊपर से गुजरने लगता है, तो ऐसे तरीके काम नहीं आते। जिन्हें सर्जरी की तारीख तय करने के दौरान बीमा क्लेम पास होने के ऊहापोह से गुजरना पड़ता है, या अन्य कारणों से जिनके पेट पर लात पड़ती है, उन्हें जाति-धर्म-नस्ल की पहचान और दूसरे समूहों के लिए नफरत लेकर जीने के लिए कब तक भरमाया जा सकता है!

अमेरिका नव-उदारवाद का केंद्र है। वहां यह प्रयोग सबसे पहले आजमाया गया। 1981 में जब रोनॉल्ड रेगन राष्ट्रपति बने, तो इस पर आक्रामक ढंग से अमल किया गया। ये आक्रामकता अब लोगों की जान लेने लगी है। तो उस पर आक्रामक प्रतिक्रिया सामने आने लगी है। अभी यह आक्रोश और विद्रोही मानस बनने तक सीमित है। बर्नी सैंडर्स से मिली हताशा के बाद अभी तक इसका कोई संगठित राजनीतिक स्वरूप अभी सामने नहीं आया है। लेकिन इतिहास का तजुर्बा है कि जब ऐसे हालात व्यापकता ग्रहण करते हैं, तो उसका ठोस, संगठित राजनीतिक रूप भी स्वाभाविक परिघटना के रूप में उभरता है।

भारत में बेलगाम नव-उदारवाद के साथ libertarianism या supernova capitalism की तरफ देश को ले जा रहे राजनीतिक वर्ग के लिए अमेरिका में जो हो रहा है, वह एक पूर्व चेतावनी है। उसे अभी संभल जाना चाहिए, ताकि यह देश उस तरह की उथल-पुथल से बच सके। इस चेतावनी को नजरअंदाज सिर्फ एक बड़ा खतरा मोल लेते हुए ही किया जा सकता है।

सत्येन्द्र रंजन

वरिष्ठ पत्रकार। जनसत्ता में संपादकीय जिम्मेवारी सहित टीवी चैनल आदि का कोई साढ़े तीन दशक का अनुभव। विभिन्न विश्वविद्यालयों में पत्रकारिता के शिक्षण और नया इंडिया में नियमित लेखन।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *