वक्फ विवाद का सबसे बड़ा उदाहरण तमिलनाडु से सामने आया था, जिसमें एक 1500 वर्ष पुराना चोल हिंदू मंदिर और पूरा गांव वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया गया। केरल स्थित मुनंबम में 404 एकड़ भूमि पर भी वक्फ ने दावा किया है, जहां 600 से अधिक परिवार (अधिकांश ईसाई) कई पीढ़ियों से निवासी है। केरल सहित देश की बड़ी चर्च संस्थाओं ने भी नए वक्फ कानून का स्वागत किया है।
वक्फ संशोधन विधेयक (यूएमईईडी), 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की स्वीकृति के बाद कानून बन गया है। राजनीतिक कारणों से विपक्षी दलों, तो निजी स्वार्थ के चलते कई इस्लामी संगठनों का आरोप है कि नया वक्फ कानून ‘मुस्लिम विरोधी’ और ‘संविधान के खिलाफ’ है। इसके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में 10 से अधिक याचिकाएं दायर हुई है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 7 अप्रैल को सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस के एक विधायक ने सदन में इस नए कानून की प्रति फाड़कर अपना रोष जाहिर किया, तो मणिपुर में इसका समर्थन करने पर भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष असगर अली के घर को अराजक तत्वों ने फूंक दिया।
यह स्थिति तब है, जब इसके विरोध को लेकर मुस्लिम समाज ही बंटा हुआ है। यह ठीक है कि नए वक्फ कानून की संवैधानिक-न्यायिक पक्ष का फैसला अदालत में होगा। परंतु इसके अन्य पक्ष भी है, जिसपर ईमानदारी से विचार करना चाहिए।
क्या वक्फ जैसा कानून भारत में किसी और अल्पसंख्यक समूह— बौद्ध, सिख, जैन, ईसाई, पारसी आदि के लिए है? हिंदू और सिख ट्रस्ट जहां सरकारी निगरानी में काम करते हैं, वहीं वक्फ बोर्ड पर कोई नियंत्रण नहीं था, जिससे भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन को बढ़ावा मिला। नया वक्फ कानून इस स्थिति को सुधारता है और कानूनी प्रक्रिया को बल देता है। वक्फ का अर्थ— किसी चल-अचल संपत्ति को स्थायी तौर पर उन कार्यों के लिए दान करना है, जिन्हें इस्लाम में पवित्र और मजहबी माना जाता है। इस्लामी मान्यताओं के अनुसार, अल्लाह ही वक्फ संपत्तियों के मालिक हैं, लेकिन उनका भौतिक प्रबंधन मुतवल्ली और देश में कुल 32 वक्फ बोर्ड करते है। वर्ष 1954 से लेकर वक्फ संपत्तियों के नियंत्रण, कानूनी अड़चन और बेहतर प्रबंधन आदि को लेकर वक्फ अधिनियम में पहले से कई संशोधन हो चुके हैं।
देश में वक्फ का कामकाज पहले ‘वक्फ अधिनियम, 1995’ की छत्रछाया में होता था। इसे तब केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस नीत नरसिम्हा राव सरकार ने कारसेवकों द्वारा 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में औपनिवेशिक बाबरी ढांचा ध्वस्त करने से छिटके मुस्लिम वोटबैंक को लुभाने हेतु 1996 के लोकसभा चुनाव से पहले संशोधित किया था। इसका वांछित लाभ कांग्रेस को नहीं मिला और वह सत्ता से दूर रही। जब केंद्र में कांग्रेस नीत संप्रग सरकार (2004-14) रही, तब उसने विभाजनकारी राजनीति के तहत देश में आए दिन होते इस्लामी आतंकवादी हमले के बीच फर्जी ‘हिंदू/भगवा आतंकवाद’ जुमला गढ़ा और फिर मुस्लिम वोटबैंक को एकजुट रखने के लिए 2014 के लोकसभा चुनाव से छह माह पहले वक्फ अधिनियम (1995) में फिर से संशोधन करके मुस्लिम समाज को वह अधिकार दे दिया, जो देश में बहुसंख्यक हिंदुओं के साथ अन्य अल्पसंख्यक समूहों के पास भी नहीं था। वक्फ निकायों को बिना किसी कानूनी जांच के किसी भी भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित करने का अधिकार मिल गया। इसका भयावह नतीजा यह हुआ कि रातोंरात गैर-मुस्लिमों और कुछ मुस्लिम संप्रदायों के लोगों ने अपने घरों, दुकानों और पूजास्थलों तक को खो दिया। इससे सांप्रदायिक तनाव भी जन्मा।
वक्फ विवाद का सबसे बड़ा उदाहरण तमिलनाडु से सामने आया था, जिसमें एक 1500 वर्ष पुराना चोल हिंदू मंदिर और पूरा गांव वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया गया। केरल स्थित मुनंबम में 404 एकड़ भूमि पर भी वक्फ ने दावा किया है, जहां 600 से अधिक परिवार (अधिकांश ईसाई) कई पीढ़ियों से निवासी है। केरल सहित देश की बड़ी चर्च संस्थाओं ने भी नए वक्फ कानून का स्वागत किया है। वर्षों तक पुराने वक्फ कानून के दुरुपयोग से हज़ारों विवाद हुए, जिसके केंद्र में एक “उपयोग से वक्फ” प्रावधान भी था, जो पहले किसी भी ऐसी जमीन को वक्फ संपत्ति घोषित करने की अनुमति देता था, जिसे मुस्लिम समुदाय ने कुछ समय तक उपयोग किया हो, भले ही उसके पास कोई कानूनी दस्तावेज न हो। उदाहरण के लिए यदि मुस्लिम समाज को किसी सार्वजनिक स्थान, सड़क या पार्क में नमाज पढ़ने या रोजा इफ्तार की अस्थायी अनुमति मिल जाए, तो वक्फ उसे भी अपनी संपत्ति घोषित कर सकता था। नए वक्फ कानून से “एक बार वक्फ, हमेशा के लिए वक्फ” जैसे दानवीय प्रावधानों का अंत हो गया है।
हालिया सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 1913 से 2013 तक वक्फ बोर्ड के पास कुल 18 लाख एकड़ जमीन थी। 2013 से 2025 के बीच कांग्रेस नीत संप्रग सरकार द्वारा वक्फ कानून में संशोधन करने के बाद इसमें 21 लाख एकड़ जमीन और जुड़ गई, जिससे कुल वक्फ भूमि का आंकड़ा बढ़कर 39 लाख एकड़ हो गया। सोचिए, यह भूमि भारत के कुल क्षेत्रफल (812 लाख एकड़) का लगभग 5% है, जो छह बड़े महानगरों— दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद और कोलकाता के कुल क्षेत्रफल (12 लाख एकड़) से भी अधिक है। यदि इसमें पुणे, अहमदाबाद और जयपुर जैसे अतिरिक्त बड़े शहरों को भी शामिल कर लें, तो भी उनका कुल क्षेत्रफल 39 लाख एकड़ से कम होगा। यहां तक, भारत में शीर्ष तीन भूमिधारकों में से दो— सशस्त्र बलों (18 लाख) और रेलवे (12 लाख) की संयुक्त भूमि भी वक्फ निकायों के अधीन जमीन से भी कम है।
जो विकृत समूह अक्सर भाजपा पर कथित ‘मुस्लिम उत्पीड़न’ या ‘मुस्लिम अधिकार छीनने’ का अनर्गल आरोप लगाता है, वह देश में बहुसंख्यक हिंदुओं के और अन्य अल्पसंख्यक समूहों के अधिकारों की अवहेलना पर चुप रहता है। यह ठीक है कि मुस्लिम देश में अल्पसंख्यक है, परंतु सच यह है कि वह भारत का दूसरा बहुसंख्यक समुदाय है, जिसकी आबादी 20 करोड़ से अधिक है और यह दुनिया के कई देशों की जनसंख्या से कहीं ज्यादा है। हिंदू बहुल भारत में आज भी केवल हिंदुओं के बड़े मंदिरों (माता वैष्णो देवी मंदिर, जगन्नाथ मंदिर, तिरुपति बालाजी मंदिर, पद्मनाभस्वामी मंदिर सहित) पर सरकारी नियंत्रण है, जबकि मस्जिदें और चर्च स्वतंत्र रूप से उनके मजहबी संगठनों द्वारा संचालित किए जाते हैं। दरअसल, नया वक्फ कानून से मुस्लिम अधिकारों का हनन नहीं होता, बल्कि इससे मजहबी मामलों में उनके अधिकार अन्य अल्पसंख्यकों के लगभग बराबर हो गए है। जो कानून मुस्लिमों और अन्य अल्पसंख्यक समूहों को बिना भेदभाव किए एक निगाह से देखें, तो वह कैसे ‘मुस्लिम विरोधी’ या ‘इस्लामोफोबिया’ हो सकता है?