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08-04-2025 Vol 19

‘इंडिया’ के तब राहुल एक छत्र नेता!

मोदी जी ने जब चुनाव प्रचार के दौरान मध्य प्रदेश में कहा कि कांग्रेस तो सरकार में आने के लिए लोगों से सोने का महल बनवाने का वादा भी कर सकती हैतो लोगों में यह चर्चा शुरू हो गई कि कांग्रेस ने वादा क्या किया, बनवा ही दिए थे।मोदी जी का हर अस्त्र इन दिनों राहुल की तरफ जा रहा है। पूरी भाजपा, मीडिया सबको राहुल फोबिया हो गया है।

“ ले तेरी हिम्मत की चर्चा गैर की महफिल में है! “

इन दिनों कुछ इस ही तरह हो रहा है। जिसे पप्पू कहकर खारिज करने की कोशिशकी थी वही आज राहुल पूरी भाजपा, मीडिया, प्रधानमंत्री मोदी सबकी चर्चाओं में है। गैर की महफिल में है! 56 इंच की छाती और लाल आंखों की बात नहींहो रही है। राहुल किस तरह लोगों के दिलों में छाता चला जा रहा है यहचिंता है।

जिस मीडिया को इतना पाला पोसा वह बिल्कुल निकम्मा साबित हो रहा है। राहुलको गिरा नहीं पा रहा है। खाली उसे नहीं दिखाने से काम थोड़े चलेगा! उसकीछवि खराब करनी होगी। पप्पू बनाने में कितना पैसा खर्च किया! हजारों करोड़रुपया। सब खा गए। किस को नहीं दिया? कुछ तो कांग्रेसी भी ले गए। मगरराहुल तो नहीं टूटा। उसकी छवि तो दिनों दिन और निखरती जा रही है। अगर यहपांच राज्यों का चुनाव जीत गया तो ‘इंडिया’ का एक छत्र नेता हो जाएगा।

गैर की महफिल में दिन रात यही चर्चा है। गैर मतलब दूसरा पक्ष। विपक्षी।यह उसी गजल का मिसरा ( पंक्ति) है जो फांसी के लिए जाते हुए अमर शहीदरामप्रसाद बिस्मिल की जबान पर थी। बिस्मिल अजीमाबादी की यह गजल और खासतौर से उसकी यह पंक्तियां “सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है “

दूसरा मिसरा भी लिखें क्या? वह तो सबको याद होगा।  “ देखना है जोर कितनाबाजुए कातिल में है। “

राहुल ने जिस दिन से कहा डरो मत उस दिन से हवा बदल गई। कहा तो मुख्य रूपसे मीडिया वालों के लिए था। उनकी तरफ हाथ उठाकर। ताल कटोरा  में कांग्रेसके एक कार्यक्रम में। सामने मीडिया का स्टेंन्ड था। राहुल ने उनकी तरफइशारा करके कहा था “डरो मत! “  हम थे वहां।

खैर, मीडिया ने तो डरना छोड़ा नहीं। बहुत चिन्ताजनक स्थिति बना दी है।सोचिए कल को अगर कोई और सत्ता इससे भी ज्यादा डराएगी तो यह उसके सामने भीनतमस्तक होंगे। जैसे मायावती अपनी झूठी प्लेट आईएएस अफसर को पकड़ाती थीं।

वैसी ही ताकत अगर अब सत्ता में आई तो मीडिया की वर्तमान स्थिति के अनुरूपउसे क्या समझेगी?  किस तरह उससे पेश आएगी?

क्या यह मीडिया प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ कहलाने के अधिकार रखता है? यहकहने से काम नहीं चलेगा कि बाकी स्तंभ भी ढह गए हैं। याद रहे बाकी तीनस्तंभ संविधान प्रदत्त हैं। यह चौथा स्तंभ अपने काम से जनता की आवाजउठाने के कारण लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहलाया। जनता का दिया हुआ खिताब।जो सबसे बड़ा होता है। मगर मीडिया इस सम्मान को संभाल नहीं पाया। आंख लालभी नहीं हुई जरा सी उठी और यह दंडवत हो गया।

आगे कोई भी आ सकता है। प्रजातंत्र है। जिसकी जितनी हिस्सेदारी उसकी उतनीभागीदारी। मतलब सरकार। परिवर्तन का चक्का तेज गति से घूम रहा है। जातिजनगणना और उसके बाद आर्थिक स्थिति, नौकरियां, जमीन में हिस्सेदारी सबसवाल सतह पर आ गए हैं। अगले चुनाव इन्हीं मुद्दों पर होंगे। इन पांचराज्यों के चुनाव में भी असर दिखने लगा है। और इसके बाद होने वाले 2024के लोकसभा चुनाव पूरी तरह नए मुद्दों पर जाएंगे। यह मीडिया जो हिन्दूमुसलमान करता रहता है वह अगर पहले की तरह निष्पक्ष, निर्भय और स्वतंत्रनहीं हुआ तो सबसे ज्यादा मुश्किलों का सामना उसे ही करना पड़ेगा।

यह कहने से काम नहीं चलेगा कि बाकी इन्स्टिट्यूशन क्या कर रहे हैं! जैसेसत्तर साल में क्या हुआ कहना अब बेअसर होने लगा है। वैसे ही दूसरों परॉ ऊंगली उठाने से मीडिया को अब करेक्टर सर्टिफिकेट नहीं मिल जाएगा। मोदी जी जो कह रहे हैं उसका असर खतम होने लगा है। लोग आखिर कब तक दूसरेकी बुराई सुनेंगे। ठीक है उसने कुछ नहीं किया। मगर किसी दूसरे पर तोदोषारोपण नहीं किया?  आपने तो कुछ किया भी नहीं और इल्जाम दूसरों परलगाते ही रहे।

मोदी जी ने जब चुनाव प्रचार के दौरान मध्य प्रदेश में कहा कि कांग्रेस तोसरकार में आने के लिए लोगों से सोने का महल बनवाने का वादा भी कर सकती हैतो लोगों में यह चर्चा शुरू हो गई कि कांग्रेस ने वादा क्या किया, बनवाही दिए थे। नेहरू ने आईआईटी, आईआईएम, एम्स, दूसरे उच्च शिक्षण संस्थान,बड़े बांध, नहरें भिलाई दूसरे पब्लिक सेक्टर, इन्दिरा गांधी ने हरितक्रान्ति, जनता के लिए प्राइवेट बैंकों का दरवाजा खोलना उनका

राष्ट्रीयकरण करके, राजीव गांधी का कम्प्यूटर लाना ये सोने के महल ही तोथे।

यह बदलती हवा का परिचायक है। और यही राहुल इम्पेक्ट है। मोदी जी का हरअस्त्र इन दिनों राहुल की तरफ जा रहा है। पूरी भाजपा, मीडिया सबको राहुलफोबिया हो गया है। राहुल एक बात कहते हैं वह मीडिया दिखता नहीं, बतातानहीं। मगर जब प्रधानमंत्री सहित भाजपा वाले उसके दस जवाब देते हैं। औरमीडिया भी उसमें अपने जवाब मिलाकर उसे और बढ़ा देता है तो लोगों को पताचल जाता है कि यह किस बात के जवाब हैं। राहुल ने क्या कहा था।

राहुल ने डरो मत का अव्हान करने के बाद मैं अकेला ही चलूंगा का उद्घोषकिया। अपनी भारत जोड़ो यात्रा के लिए। कांग्रेसी भी तो कम नहीं! आएंगे यानहीं आएंगे! किसे मालूम! मगर राहुल ने समझ लिया था कि दूरदृष्टि, दृढ़निश्चय, पक्का इरादा, कड़ी मेहनत जो इन्दिरा गांधी कहती थीं उसे कह और दोतो संकल्प और मजबूत हो जाता है। इसलिए राहुल ने सार्वजनिक रूप से डरो मतऔर फिर कोई आए या न आए मैं अकेला ही चलुंगा कह कर अपने इरादे जग जाहिर करदिए थे। और हवा वहीं से बदलना शुरु हुई। कांग्रेसी तो साथ आए ही वही जिन्होंने 2019 में पार्टी अध्यक्ष से इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया था।और उससे भी चैन नहीं पड़ा तो अध्यक्ष सोनिया गांधी को राहुल के खिलाफ खतलिखा। 23 लोगों का एक गुट बना। जम्मू जाकर एक अलग सम्मेलन किया। मगरराहुल को पहचानने में गलती कर दी। वह अलग ही मिट्टी का बना हुआ था।

यात्रा पर निकल पड़ा। और फिर तो नया इतिहास बन गया। लोग साथ आते गएकारवां बनता गया। कांग्रेस ने हिमाचल जीता। कर्नाटक जीता। विपक्षी एकताहुई। इन्डिया गठबंधन बना। तीनों मीटिंगों पटना, बेंगलुरु, मुम्बई मेंराहुल छाए रहे। जो ममता बनर्जी कहती थीं कि ये तो बार बार विदेश चले जातेहैं वे बेंगलुरु में बोल रही थीं अवर फेवरेट राहुल। हमारे प्रिय राहुल।केजरिवाल और अखिलेश यादव की भी समझ में आया कि बिना विपक्षी एकता के मोदीसे नहीं लड़ा जा सकता। और अगर इस बार 2024 में मोदी से नहीं लड़ा गया तोफिर कोई लड़ने काबिल ही नहीं बचेगा।

राहुल की हिम्मत। अपने पराए सबकी आलोचनाओं, विरोध के बावजूद डटे रहना औरजनता के प्रति समर्पण ने सारी कहानी बदल दी। और अब इन पांच राज्यों केचुनाव नतीजे इस कहानी को सब तरफ फैला देंगे। जीत की सुगंध बहुत तेज होती।उसे किसी वाहक की जरूरत नहीं। मीडिया रोकता रहे। मगर सफलता की कहानी छुपती नहीं। अमेरिका के राष्ट्रपति जान कैनेडी ने कहा था सक्सेस हेस मेनीफादर। सफलता को हजार बाप होते है।

अब राहुल सफल हैं। कांग्रेस से लेकर दूसरे विपक्षी दलों तक सामाजिक संगठनऔर लेखकों तक सब जगह राहुल की सफलता की कहानी है। चर्चा तो भाजपा औरमीडिया में भी है। मगर वहां डर ज्यादा है। जिस दिन डर खतम होगा वहां भीविस्फोट होगा। बस देखना यह है कि वहां डर लोकसभा चुनाव से पहले खत्म होताहै या चुनाव के नतीजे आने के बाद।

शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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