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01-03-2025 Vol 19

नफरत को हराना हो पहला चुनावी मकसद!

प्रधानमंत्री मोदी बहुत से सवालों से घिरने लगे हैं। उनके पास बचाव का एक ही रास्ता है। हिन्दू-मुसलमान! उसमें फंसने से सब को बचना चाहिए!…सबसे बड़ी बात नफरत और विभाजन की राजनीति खत्म करने की है। इसीराजनीति के तहत मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाई गई और उनके विरोध के नामपर दलित, पिछड़ों, आदिवासियों को इकट्ठा किया गया। …ऐसे में जब मुख्य उद्देश्य इन विधानसभाओं को जीतकर 2024 के लिए बड़ीताकत बनना है तो इस बहस से बचना चाहिए कि किस वर्ग को कितने टिकट दिए।

कांग्रेस में मुसलमानों के जो नेता हुए हैं क्या उन्होंने मुसलमानों केविकास, शिक्षा के लिए के लिए कुछ किया है? यह सवाल इसलिए कि होने जा रहेविधानसभा चुनावों में कुछ मुसलमान नेताओं, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा यह कहा जा रहा है कि कांग्रेस ने मुसलमानों को कमटिकट दिए। खासतौर पर मध्य प्रदेश के बारे में। यहां दो टिकट मुसलमानों कोदिए गए हैं।

पहली बात यह कि पांच राज्यों के यह विधानसभा चुनाव किसी खास वर्ग चाहे वहमुसलमान या पिछड़ा हो जिसकी आजकल बहुत चर्चा है को प्रतिनिधित्व देने केलिए नहीं है। अगर नफरत, सामाजिक न्याय विरोधी यथास्थितिवादी ताकतें हारींतो मुसलमान, पिछड़ा, दलित, आदिवासी, महिलाएं वापस देश की मुख्यधारा मेंशामिल होंगे और उनके साथ अपनाया जा रहा सौतेला व्यवहार खत्म होगा।

इस समय सबसे बड़ी बात नफरत और विभाजन की राजनीति खत्म करने की है। इसीराजनीति के तहत मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाई गई और उनके विरोध के नामपर दलित, पिछड़ों, आदिवासियों को इकट्ठा किया गया। लेकिन आग नियंत्रण मेंतो रहती नहीं! फिर नफरत और विभाजन की आग कैसे रहती तो वह मुसलमान से आगेबढ़कर दलित आदिवासी पिछड़ा और महिलाओं सबको जलाने लगी। मनुवाद जो भाजपॉ संघ का असली संविधान है उसके तहत मुसलमानों के लिए तो फिर भी जगह है मगरदलित आदिवासी पिछड़ा महिलाओं को तो अपने निर्धारित दायरे में ही रहनाहोगा।

तो ऐसे में जब मुख्य उद्देश्य इन विधानसभाओं को जीतकर 2024 के लिए बड़ीताकत बनना है तो इस बहस से बचना चाहिए कि किस वर्ग को कितने टिकट दिए।भाजपा से तो पूछ नहीं सकते! वह पिछले साढ़े 9 सालों में कई बार यह जवाबदे चुकी है कि हमें मुसलमानों के वोट चाहिए ही नहीं। देश में पहली बारऐसा है कि लोकसभा राज्यसभा कहीं भी सत्तारुढ़ दल का एक भी सदस्य मुसलमाननहीं है। भाजपा में जो दो मुसलमान नेता थे और जिन्होंने किसी भी भाजपानेता से कम पार्टी की सेवा नहीं की थी उन मुख्तार अब्बास नकवी और शाहनवाजहुसैन को बुरी तरह किनारे धकेल दिया गया है।

सवाल सारे कांग्रेस से ही हैं। और होना भी चाहिए। तीन राज्यों मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ और राजस्थान में वही उस भाजपा के मुकाबले है जो खुलकरमुसलमानों के खिलाफ नफरत का माहौल बना रही है। तेलंगाना में भी वही है जोवहां सत्तारुढ़ बीआरएस से मुकाबला कर रही है। वहां भाजपा ने अपने विधायकटी राजा सिंह जिन्हें पैगम्बर के खिलाफ अपमानजनक बयान देने के लिएसस्पेंड कर दिया था उनको वापस लेकर विधानसभा का टिकट भी दे दिया है।

उद्देश्य साफ है। तेलंगाना से हिन्दु-मुसलमान की राजनीति को फिर हवादेना। राजा को वापस लाने का मतलब साफ है कि वहां भाजपा साम्प्रदायिकमाहौल बनाएगी। और उसको औवेसी आगे बढ़ाएंगे। राहुल गांधी तेलंगाना में कहचुके हैं कि भाजपा और औवेसी बीआरएस के सहयोगी हैं। सही है अगर वहांकांग्रेस को हराना है तो तीनों को मिलकर काम करना होगा। और इसमें भाजपाऔर औवेसी की महत्वपूर्ण भूमिका होगी कि वे कितना धार्मिक उत्तेजना कामाहौल बनाते हैं।

यही वह प्वाइंट है जहां से हम आगे बात कर सकते हैं। धर्म की राजनीति मेंमुसलमानों को सोचना चाहिए के वे कहां खड़े हैं? इन विधानसभा चुनावों मेंऔर वैसे हर चुनाव में लोकसभा में भी जीत हार बहुसंख्यक वर्ग के वोट ही तयकरते हैं। अल्पसंख्यक कहीं भी किसी पार्टी को नहीं जिता सकते। और फिर तोयह चुनाव भी सामान्य नहीं है। 2024 का सेमिफाइनल। अगर कांग्रेस इन पांचराज्यों में जीत गई तो लोकसभा में वह पूरी ताकत से जाएगी। 2014 और 19 कीतरह आधे अधूरे मन से नहीं। कांग्रेस के जीतने से ही विपक्षी दलों केगठबंधन इन्डिया में जान आएगी। नहीं तो अभी जिस तरह सपा के साथ बेमतलबविवाद हो गया वैसे हर पार्टी के साथ होंगे।

लेकिन अगर कांग्रेस जीत गई तो विपक्षी दल छोटे मोटे विवादों में न उलझकर2024 जीतने में अपनी पूरी ताकत लगा देंगे।

आज के समय में मुसलमानों के लिए सबसे बड़ी बात है नफरत की राजनीति काखत्म होना। समाज में जिस तरह नफरत फैला दी गई है उसका नुकसान हो तो हरसमुदाय को रहा है मगर मुख्य टारगेट मुसलमान थे तो उन्हें हर क्षेत्र मेंइसका नुकसान उठाना पड़ रहा है। क्या कोई कल्पना कर सकता था कि ट्रेन मेंसुरक्षा के लिए तैनात रेल्वे का सिपाही नाम पूछकर मुसलमानों को मारेगा?स्कूल में एक बच्चे को दूसरे बच्चों से इसलिए पिटवाया जाएगा कि वहमुसलमान है? लोकसभा में भाजपा सांसद बिधुडी धार्मिक पहचान की गालियांदेगा? घटनाएं बहुत सारी हैं। लेकिन एक अंतिम और कि खुद प्रधानमंत्रीश्मशान कब्रिस्तान दीवाली ईद का जिक्र धार्मिक भेदभाव बढाने के लिएकरेंगे यह कोई सोच सकता था? और वे ही यह भी कहेंगे उस भारत में जहां पचासों तरह की संस्कृति है खानपान है भाषा है और पहनावा है वहां किकपड़ों से भी पहचाना जा सकता है!  किसको ? मुसलमान को। किस लिए? लिंचिंगके लिए?

ऐसे खराब समय में मुसलमान को कितने टिकट दिए जैसी बातों को रोकना चाहिए।इसका फायदा दोनों लेते हैं। औवेसी और भाजपा। राजस्थान में कांग्रेसमुसलमानों को मध्य प्रदेश की अपेक्षाकृत ज्यादा टिकट दे रही है तो औवेसीवहां चुनाव लड़ने आ गए हैं। वे भी उन सारी जगहों पर टिकट दे रहे हैं जहांकांग्रेस ने मुसलमानों को दिए हैं। इसको समझाने की ज्यादा जरूरत नहीं। सबजानते हैं कि इससे फायदा भाजपा को होगा। अभी मध्य प्रदेश के नगर निकायचुनावों में औवेसी ने खूब उम्मीदवार लड़ाए और भाजपा को जिताया।

मुसलमानों को एक बात और समझ लेना चाहिए कि दूसरी पार्टियों आप, सपा केलड़ने से भाजपा को इतना फायदा नहीं होता है जितना औवेसी के लड़ने से। बाकी पार्टियां दूसरे समुदायों के वोट भी लेती हैं। जो भाजपा से भी कटकरजाते हैं। मगर औवेसी अकेले मुसलमानों के लेते हैं। जो भाजपा चाहती हीनहीं है। उत्तेजना का माहौल बनाने के लिए कहने लगी है कि हमें चाहिए हीनहीं। तो मुसलमान वोट जितना बंटता है भाजपा को फायदा होता है। जबकि बाकीदल कहीं कांग्रेस को नुकसान पहुंचाते हैं तो कहीं भाजपा को भी।

समय ऐसा है कि मुसलमान को खुद को मुद्दा बनाना ही नहीं चाहिए। फिलिस्तीनके मामले में उसने देखा कि भारत सरकार फिलिस्तिन एक स्वतंत्र और स्वयंभूराष्ट्र बने इसका लिखकर समर्थन कर रही है। गाजा में राहत सामग्री भेज रहीहै। तमाम राजनितिक नेता दिल्ली स्थित फिलिस्तीन के दूतावास में जाकर उनकेसाथ एकजुटता प्रदर्शित कर रहे हैं। इजराइल के दूतावास पर प्रदर्शन हो रहेहैं। लेकिन अगर कोई मुसलमान सोशल मीडिया पर भी फिलिस्तीन का समर्थन कर देतो उसके खिलाफ कार्रवाई होने लगती है।

इसी राजनीति को खत्म करना है। भारत का अधिकांश हिन्दू इस नफरत और विभाजनकी राजनीति के खिलाफ खड़ा हो गया है। दो युवा अग्निवीर की शहादत ने फिरयह सवाल तेज कर दिया है कि यह स्कीम लाई ही क्यों गई थी? सेना में दोकेडर कर दिए। अग्निवीर कम ट्रेनिंग वाले लड़के हैं। छह महीने की ट्रेनिंगवाला पूर्ण कालिक सेना का मुकाबला कैसे कर सकता है? बड़े बड़े पूर्वसैनिक अधिकारी पूछ रहे हैं कि आखिर यह स्कीम लाई क्यों? पैसे बचाने केलिए? राहुल का आरोप है कि अंबानी ने 32 हजार करोड़ रुपए जनता की जेब सेनिकाल लिए। और इधर कम तनखा पर सैनिकों को रखा जाकर देश की सुरक्षा सेखिलवाड़ किया जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी बहुत से सवालों से घिरने लगे हैं। उनके पास बचाव का एकही रास्ता है। हिन्दू-मुसलमान! उसमें फंसने से सब को बचना चाहिए!

शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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