जापान और अमेरिका जैसे विकसित देश शिक्षा पर अपने सकल घरेलू उत्पाद के छह प्रतिशत से ज्यादा खर्च कर रहे हैंI केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 31 जनवरी 2023 को संसद में आर्थिक समीक्षा 2022-23 को प्रस्तुत करते हुए बताया था कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का उद्देश्य 2030 तक समावेशी और समान गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित करना है और सभी के लिए आजीवन सीखते रहने के अवसरों को बढ़ावा देना हैI
शिक्षा समाज का आधार होती हैI किसी भी राष्ट्र के विकास की संकल्पना को शिक्षा के बगैर पूरा नहीं किया जा सकता हैI राष्ट्र के सामाजिक, आर्थिक विकास में ठोस शिक्षा व्यवस्था का महत्वपूर्ण योगदान होता हैI विगत कुछ दशकों में हमारे देश की जो प्रगति है, उसमें शिक्षा का केंद्रीय योगदान हैI सम्प्रति केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने देश को विकसित अर्थव्यवस्था बनाने के संकल्प को पूरा करने के अंतर्गत उच्च शिक्षा में सकल नामांकन उत्पाद को 2030 तक वर्तमान के 27 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा हैI
निःसंदेह यह लक्ष्य भारत के विकसित अर्थव्यवस्था को एक नई ऊंचाई देगाI कोई भी देश एक दिन में विकास के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता हैI भारत का 2047 तक विकसित देश बनने का संकल्प सिर्फ एक कोरी कल्पना नहीं है, बल्कि उसके पीछे ठोस, दूरदर्शी और ईमानदार प्रयास शामिल हैI भारत की नई शिक्षा नीति 2020 का उद्देश्य शिक्षा प्रणाली में बुनियादी परिवर्तन लाकर शैक्षणिक व्यवस्था को गुणवत्तापूर्ण, अनुसंधानपरक एवं रोजारोन्मुख बनाना हैI भारतीय शिक्षा पद्धति पर बार-बार प्रहार किया जाता है कि यह शिक्षा पद्धति मौलिक नहीं है, बल्कि मैकाले की शिक्षा पद्धति का ही संशोधित संस्करण हैI एक हद तक यह आरोप सत्य के सन्निकट हैI पहली बार राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से देश के दिमाग को आकर देने की कोशिश शरू हुई हैI यह प्रयास स्तुत्य हैI किसी भी देश की शिक्षा पद्धति उस देश की भाषा और संस्कृति के समन्वय पर आधारित होना जरूरी होता हैI
भारतीय संविधान ने देश के छह से 14 वर्ष की उम्र के सभी बच्चो को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का मूल अधिकार दिया हैI शिक्षा जैसे संवेदनशील विषय को संविधान की समवर्ती सूची में इसलिए स्थान दिया गया है ताकि बेहतर शिक्षा व्यवस्था हेतु केंद्र और राज्य अपने स्तरों पर त्वरित निर्णय लें सके, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित न होI
भारत में शिक्षा पर व्यय अन्य देशों की तुलना में कमतर रहा हैI यही कारण है कि हमारे राज्यों के सकल घरेलु उत्पाद का 2.5 से 3.2 प्रतिशत तक ही शिक्षा पर खर्च होता है। 1964 में कोठारी आयोग ने सरकार से शिक्षा पर खर्च की बढ़ोतरी की अनुशंसा की थीI कोठारी आयोग ने सकल घरेलू उत्पाद का छह प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करने की अनुशंसा की थीI आजादी के अमृत वर्ष के बीत जाने के बाद भी शिक्षा का बजट सकल घरेलू उत्पाद के 3.5 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो पाया हैI
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षा बजट को सकल घरेलू उत्पाद के छह प्रतिशत करने की बात की गई हैI यह बेहतर शिक्षा व्यवस्था के लिए एक उम्मीद भरा प्रयास हैI दुनिया के अन्य देशों की तुलना में भारत का शिक्षा पर खर्च संतोषप्रद नहीं हैI शिक्षा पर खर्च के मामले में भारत का दुनिया में 135वां स्थान हैI
हमारे यहां गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अभाव को युवा सबसे बड़ी चुनौती मानते हैंI इस तथ्य से कतई इनकार नहीं किया जा सकता है कि शिक्षा पर खर्च हमारी प्राथमिकता नहीं रही हैI बेहतर शिक्षा व्यवस्था के लिए आर्थिक संरक्षण बेहद जरुरी होता है। शिक्षा व्यवस्था में मात्रात्मक विस्तार गुणवत्ता, और समानता में सुधार, विविधता की मजबूत करने और शैक्षणिक विकास के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं के लिए बड़ी धनराशि की जरुरत होती हैI जापान और अमेरिका जैसे विकसित देश शिक्षा पर अपने सकल घरेलू उत्पाद के छह प्रतिशत से ज्यादा खर्च कर रहे हैंI केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 31 जनवरी 2023 को संसद में आर्थिक समीक्षा 2022-23 को प्रस्तुत करते हुए बताया था कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का उद्देश्य 2030 तक समावेशी और समान गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित करना है और सभी के लिए आजीवन सीखते रहने के अवसरों को बढ़ावा देना हैI
सबको शिक्षा, अच्छी शिक्षा की तर्ज पर अधिक से अधिक लोगों को शिक्षित करने का लक्ष्य ही विकसित अर्थव्यवस्था बनाने में हमारी मदद करेगाI आज भाषाई दक्षता के साथ अनुसंधान और कौशल विकास पर आधारित शिक्षा की जरुरत हैI सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता ही विकसित भारत की बुनियाद रखेगीI निरंतर महंगी होती जा रही शिक्षा सिर्फ आर्थिक संपन्न वर्ग के लिए सुलभ होती जा रही हैI आज भी समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग उच्च शिक्षा से अछूता ही रह रहा हैI
शिक्षा के बुनियादी ढांचे को मजबूत और वैज्ञानिक बनाने की दिशा में कई महत्वपूर्ण प्रयोग किए जा रहे हैंI अध्यापन विज्ञान पर ध्यान देने के साथ-साथ स्कूलों के बुनियादी ढांचे को सुविधापरक एवं डिजिटलीकरण, छात्र-शिक्षक अनुपात में परिलक्षित शिक्षकों की उपलब्धता, स्मार्ट कक्षाओं, आईसीटी प्रयोगशालाओं, शैक्षिक सॉफ्टवेयर और शिक्षण के लिए ई-सामग्री की उपलब्धता आदि सकारात्मक पहल हैI
भारत जैसे विकासशील देश में शिक्षा का बुनियादी संकट सुयोग्य शिक्षकों का अभाव भी हैI हमारे देश में अन्य देशों की तुलना में शिक्षकों को सुविधा, वेतन, सम्मान तुलनात्मक रूप से कम है। यही कारण है की सुयोग्य शिक्षकों की प्राथमिकता सरकारी संस्थान न होकर प्राइवेट संस्थान होते हैंI यही पीढ़ी के अंदर शिक्षा के प्रति लगाव का अर्थ सिर्फ अर्थोपार्जन हैI हमें इस सोच से भी मुक्त होने की जरुरत है कि शिक्षा डिग्री का पर्याय है। यह समझना होगा कि शिक्षा ज्ञान का पर्याय है।
शिक्षा से संदर्भित सभी क्षेत्रों को रोजगारोन्मुख बनाने की दिशा में पहल जरूरी है। शिक्षा आत्मनिर्भरता का द्योतक हैI विकसित भारत बनाने की दिशा में हम सब अग्रसर हैं। देश की 50 प्रतिशत आबादी की उम्र 25 वर्ष से कम हैI हमारा देश युवाओं का देश है इसलिए हमारी चुनौतियां भी अलग हैंI स्त्री व वयस्क शिक्षा की दिशा में भी हम अभी न्यूनतम स्तर पर हैंI गावों व शहरों में रहनेवाली महिलाओ के बीच शिक्षा का जो अंतर है, वह भी एक बड़ी चुनौती हैI किसान-मजदूर को शिक्षित करना भी हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। निरक्षरता के अभिशाप से मुक्त होकर ही हम प्रगति और ठोस अर्थव्यवस्था को साकार बना सकते हैंI
शिक्षा मनुष्य के विकास और प्रगति की एक अनिवार्य शर्त हैI यह हमारे सामाजिक जीवन में ज्ञान, नैतिकता, समझ, समर्पण और दक्षता की भावना को विकसित करती है। शिक्षा मानवीय सम्पदा को व्यापक और विस्तृत आकार देती है और सभी क्षेत्रों में समृद्धि और आत्मनिर्भरता का मार्ग प्रशस्त करती हैI (लेखक दौलत राम कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं)