गुरुचरण सिंह के इसी तप-तपस्या में पले-पके अनगिनत महान व राष्ट्रीय गौरव के क्रिकेट खिलाड़ी जन्मदिन उत्सव मैच में आए व खेले। और सम्मान में जुटे। भारतीय क्रिकेट के महानायक कपिल देव को जब उनके विश्वकप 1983 विजयी टीम के साथी कीर्ति आजाद ने गुरुचरण सर के जन्मदिन उत्सव मैच का बताया, तो तुरंत, सम्मान में आने के लिए तैयार हो गए।
गुरु जीवन का उत्सव मैच
संदीप जोशी
संतकवि देवनाथ ने लिखा है- गुरुजी जहां भी बैठता हूं वहां आपकी ही छाया रहती है। और गुरु में ही मेरा मालिक/साहिब नजर आता है। गहरे-ऊंचे पेड़ों की उस शीतल छाया में ही मुझे मेरा ईश्वर दिखता है। कुम्हार के घर से ठोक-पीट कर, तप-ताप से बना कलश सतगुरु की भेंट चढ़ाया है। जो तन-मन को समझने का ताला है या शब्द-शास्त्र समझने की कुंजी है, उसे सतगुरु ने ही खोल कर बताया है।
जीव-नगर में जो लाभ-हानि का हाट या बाजार है, उसमें सौदा किए जाने के लिए सतगुरु ने तैयार किया है। दोनों हाथ जोड़ कर केसर का तिलक गुरु पर चढ़ाया है। माता-पिता के बाद गुरु में ही अपने मालिक या ईश्वर को देखते हैं। या देख सकते हैं।
संतकवि देवनाथ के लिखे को महान पंडित कुमार गंधर्व ने जैसा गाया, उसने ही किसी भी गुरु को विश्वगुरु का दर्जा दिलाने का रास्ता दिखाया है। क्रिकेट के नब्बे वर्षीय द्रोणाचार्य कोच, पद्मश्री गुरुचरण सिंह का जीवन ऐसा ही रहा है।
गुरुचरण सिंह के तो नाम में ही गुरु है। नाम तो उनके माता-पिता ने ही रखा होगा लेकिन अपने कर-कमलों के प्रयास और प्रयोजन से ही गुरुचरण सिंह ने गुरु-तत्व कमाया। दिए गए नाम से जैसी असाधारण सिद्धि पायी वैसी कोई विरला ही पाता है। क्रिकेट कोचिंग के द्रोणाचार्य गुरुचरण सिंह के जीवन का नब्बे वां जन्मदिन उत्सव से भरे क्रिकेट मैच में मना। क्रिकेट खेल की टीवी मीडिया के सभी प्रसिद्ध रिपोर्टर पूरे सम्मान में क्रिकेट मैच खेलने आए। सभी आने वाले, मैच खेलने वालों ने माना कि माता-पिता जीवन देते हैं तो गुरु जीवन जीने के गुण सिखाता है।
विभाजन से पहले और आज के पश्चिम पाकिस्तान के गंडाकास में गुरुचरण सर का जन्म सन् 1935 में हुआ। रावलपिंडी में पढ़ाई-खिलाई चल रही थी तभी विभाजन से बचते-बचाते पूरा परिवार पटियाला आ गया। आगे की पढ़ाई, और क्रिकेट का खेलना वहीं हुआ। पटियाला महाराजा यादवेन्द्र सिंह क्रिकेट के शौकीन थे और युवा गुरुचरण मेहनत व प्रतिभा के धनी। यादवेन्द्र सिंह के क्रिकेट प्रेम की सेवा करते हुए गुरुचरण सर का क्रिकेट खेलना भी चला। पटियाला और फिर दक्षिण पंजाब से रणजी ट्रॉफी खेलने का मौका मिला। फिर सोलह साल रणजी खेलने के दौरान, भारतीय रेल में नौकरी लगी।
विभाजन से उभरे संघर्ष में भरे-पूरे परिवार का पालन-पोषण शुरू हुआ। पटियाला में ही खुले राष्ट्रीय खेल संस्थान से क्रिकेट कोच हुए। वहीं उनके साथी बने, पहले क्रिकेट द्रोणाचार्य देश प्रेम आजाद जिनने महान कपिल देव को तराशा। सन् 1969 में राष्ट्रीय खेल प्राधिकरण के तहत इंडिया गेट, नई दिल्ली के सामने नेशनल स्टेडियम में क्रिकेट कोच हुए। सन् 1996 में नौकरी से अलग होने के बाद भी क्रिकेट खेल की सेवा में जुटे रहे। नेशनल स्टेडियम में क्रिकेट कोच होते हुए ही गुरुचरण सर के गुरु-चरण जमे, और गुरु-तत्व पनपा।
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गुरुचरण सर के रहते हुए क्रिकेट सीखने वाले युवा खिलाड़ियों को जीवन जीने के तप-ताप के लिए शीतल छाया मिली। कुम्हार की तरह ठोक-पीट कर उन्होंने ही प्रतिभा को ढाला और कड़े संघर्ष के लिए तैयार किया। तन-मन से खुद की प्रतिभा को जानने-समझने का ताला खोला। क्रिकेट के शास्त्र से युवा प्रतिभाओं को अवगत कराया। क्रिकेट की शब्दावली से प्रतिभा को निखारा। और लाभ-हानि के बाजार में सौदा करने के लिए तैयार किया।
गुरुचरण सिंह के इसी तप-तपस्या में पले-पके अनगिनत महान व राष्ट्रीय गौरव के क्रिकेट खिलाड़ी जन्मदिन उत्सव मैच में आए व खेले। और सम्मान में जुटे। भारतीय क्रिकेट के महानायक कपिल देव को जब उनके विश्वकप 1983 विजयी टीम के साथी कीर्ति आजाद ने गुरुचरण सर के जन्मदिन उत्सव मैच का बताया, तो तुरंत, सम्मान में आने के लिए तैयार हो गए। महान कपिल देव के अलावा विश्व विजयी टीम के साथी मदनलाल भी सम्मान में खड़े रहे। कीर्ति आजाद ने ही अपने अलावा गुरुचरण सर से क्रिकेट सीखे सभी बारह राष्ट्रीय खिलाड़ियों को बुलाया। जिनमें मनिंदर सिंह, विवेक राजदान, गुरुशरण सिंह और कई राज्यों से रणजी खेले अनेक खिलाड़ी शामिल रहे।
अनेक क्रिकेट खिलाड़ियों को नौकरी के द्वारा जीने के आयाम देने वाले गुरुचरण सर ने जीवन खूब जतन से जिया। क्रिकेट खेल सीखाने की गुरु-शिष्य परंपरा को भी धन्य-धान्य किया।
Pic Credit: ANI