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24-04-2025 Vol 19

वैदिकजी के संग का हर समय, हर प्रंसग लाजवाब होता था!

वे मतभिन्नता को स्वतंत्र अभिव्यक्ति का महत्‍वपूर्ण अंग मानते थे और वाणी से इतने उदार थे कि दूसरों की दिल खोलकर प्रशंसा करते थे। वे नए ढंग और कलेवर से अपने दिल की गहराइयों से सराबोर बात रखने की कला में अत्यंत माहिर थे।…वे हिंदीवादी नहीं, बल्कि  हिंदी के साथ-साथ भारतीय भाषाओं के जीती-जागती लौ थे। भारतीय भाषाओं के विकास के लिए निरंतर आंदोलित रहे। वे उन लोगों से अलग थे, जो पदों की पहचान से जाने-पहचाने जाते हैं, बल्कि वे खुद की शख्सियत के रूप में रौशन करते गए और अपने-आप में एक संस्था की तरह जिए।…हरदिल अजीज, हंसमुख व्‍यक्‍तित्‍व के धनी और हाजिर-जवाबी में वे बहुत ही बेजोड़ और विलक्षण थे।

जन्मदिन विशेष

राजेन्द्र प्रसाद

डॉ. वेदप्रताप वैदिक की याद अमिट है। उनसे मेरा परिचय पीटीआई-भाषा में उनके संपादक रहते हुआ था। तीस साल पहले एक छोटी सी मुलाकात। फिर पता नहीं चला कि वह मुलाकात उनसे जिंदगी-भर के रिश्‍तों में कब तब्‍दील हो गई। मैं जब भी उनके निवास के पास से गुजरता था तो मिलने की कसक सदा बनी रहती।उनसे मिलना और उनके साथ समय गुजारना यादगार अनुभव होता था। जो कल था, वो आज नहीं और आज है, वह कल नहीं रहेगा, लेकिन नाम की गंध सदैव महकनी चाहिए।

वे प्रखर पत्रकार के साथ कुशल वक्‍ता, प्रखर चिंतक, कूटनीति विशेषज्ञ, अंतर्बोधि रणनीतिज्ञ और विराट हृदयी थे। सरलता, वाकपटुता, सहजता और प्रसन्नचित्त स्वभाव उनके व्यक्तित्व को चार चांद लगाती थी। बात को सार रूप और प्रभावोत्तेजक ढंग से लोगों तक परोसने की कला और कहीं से शुरू कर प्रसंग को रूचिपूर्ण बनाकर कहीं और लक्षित कर विवेचना सौंदर्य का प्रकाश उनकी प्रतिभा को सदा आलोकित व दमदार बनाती रही। उनकी मान्यता थी कि भटकने की नहीं, जागने की जरूरत है और तोड़ने की नहीं, जोड़ने की जरूरत है।

डा. वेदप्रताप वैदिक का जन्म 30 दिसंबर, 1944 को इंदौर (म.प्र.) में हुआ। वे मतभिन्नता को स्वतंत्र अभिव्यक्ति का महत्‍वपूर्ण अंग मानते थे और वाणी से इतने उदार थे कि दूसरों की दिल खोलकर प्रशंसा करते थे। वे नए ढंग और कलेवर से अपने दिल की गहराइयों से सराबोर बात रखने की कला में अत्यंत माहिर थे। जुझारू व धुन के इतने पक्के कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएचडी डिग्री की हिंदी माध्यम से मान्यता दिलवाकर ही चैन से बैठे। एक नया इतिहास रचा और पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। वे हिंदीवादी नहीं, बल्कि  हिंदी के साथ-साथ भारतीय भाषाओं के जीती-जागती लौ थे। भारतीय भाषाओं के विकास के लिए निरंतर आंदोलित रहे। वे उन लोगों से अलग थे, जो पदों की पहचान से जाने-पहचाने जाते हैं, बल्कि वे खुद की शख्सियत के रूप में रौशन करते गए और अपने-आप में एक संस्था की तरह जिए।

निस्संदेह एक व्यक्ति नहीं, बल्कि फलती-फूलती विचारधारा के सृजक, वाहक और मजबूत योद्धा थे, जो गंगा की तरह विभिन्न नदियों और धाराओं को अपनेपन से समाहित कर जीवन के संघर्षों की तपिष से अथाह सागर में 14 मार्च, 2023 को विलीन हो गई। वे अपनी ऐसी अमिट और विषिष्ट छाप छोड़ गए, जो प्रेरणापुंज है और विभिन्न धाराओं का सम्मान करने वाला जीवंत मन-मस्तिष्क भी। जीवन में सामाजिकता की बात भले ही कुछ लोगों को अटपटी लगे, किंतु क्या यह सच नहीं है कि मन, वचन तथा कर्म से आज के युग में अकाल-सा है? समाज से ही चिंतन का बीजारोपण, पोषण और फल होता है। उनकी आंखों समाज के चरित्र की टीस दिखती थी। यकीनन समाज में गिरते चरित्र की उथल-पुथल से मन की आंखें भीग जाती हैं। चरित्र की दृढ़ता व्‍यक्तित्व की साख को बचाती और संवारती है। सिद्धांतहीनता का कोई गन्तव्य और मन्तव्य नहीं होता।

निस्‍सन्‍देह वे हिंदी पत्रकारिता को सुदृढ़ व संपन्‍न बनाने के संकल्प के साथ जीवन-समर में कूदे और उसका प्रकटीकरण व परिस्थितियों के मुताबिक नवीनीकरण भी अपने ढंग से किया। उन्‍होंने बुद्धिबल से अपनी रुचि को नई एवं दमदार परिभाषा से गुंजायमान किया। यथार्थ में स्‍वयं को पहचानने और समर्थवान बनाने की जरूरत है। उनकी मान्‍यता थी कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के समान खबरपालिका यानी सही पत्रिकारिता की सक्रियता राष्ट्रोत्थान के यज्ञ के लिए बहुत आवश्यक है, जो इन तीनों अंगों पर बारीकी से नजर रखकर उन्हें सही मार्ग पर चलने में मदद कर सकती है। जिस प्रकार ‘वसुधैव कुटुंबकम़़्‘ के भारतीय चिंतन का संबंध किसी वर्ग से नहीं, अपितु पूरी धरा से है, उसी प्रकार समाज की परिधि में जीवन का केवल एक अंग नहीं, बल्कि समग्र जीवन आता है।

वे कई वर्षों तक पीटीआई-भाषा के संस्थापक-संपादक से पहले नवभारत टाइमस के संपादक(विचारक) रहे। दिल्ली के राष्ट्रीय समाचार-पत्रों के अलावा प्रांतीय और विदेश के लगभग 200 समाचार-पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति पर अपनी लेखनी का जौहर दिखाते रहे। भारतीय संस्थाओं, विश्वविद्यालय के अलावा विदेशों के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में उनके व्याख्यानों से लाभान्वित हुए। अकाशवाणी एवं टीवी पर अनेक परिचर्चाओं में उनकी उल्लेखनीय हिस्सेदारी रही। कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मान भी उनको मिले। उनका वाणी-कौशल इतना प्रबल, प्रभावी व ओजपूर्ण और संवाद का ढंग इतना निराला कि कड़क और खरी बात सहजता से कहकर विशेष बनने की कला को परवान चढ़ाना तो कोई उनसे सीखे। हरदिल अजीज, हंसमुख व्‍यक्‍तित्‍व के धनी और हाजिर-जवाबी में वे बहुत ही बेजोड़ और विलक्षण थे। वे जिंदगी के हरेक तरह के पड़ाव से गुजरे, खट्टे-मीठे अनुभव उनका सदा पीछा करते रहे, लेकिन उसका उपयोग उन्‍होंने अपने व्‍यक्‍तित्‍व की आभा को चेतन और समृद्ध करने में किया। वे पाखंडी लाबादा ओढ़ने में कतई आस्‍था नहीं रखते थे और स्‍पष्‍टवादिता उनकी वाणी का देदीप्‍यमान ध्‍वज थी।

मौलिकता से पत्रकारिता उनकी कर्मभूमि बनी तो विशेषकर हिंदी को समृद्ध करने, उसको इस्‍तेमाल करने और हिंदी को देश की पहचान बनाने के साथ-साथ समस्‍त भारतीय भाषाओं के सम्‍मान की खातिर मिश्रित स्वर उनके कथनी व करनी में निर्बाध झलकते थे। उनके अनुसार पत्रकार अपने विचार कई कोणों से समाज और देश के सामने परोसता है और देश उनके विचारों को पढ़ने-गढ़ने और राय बनाने का काम करता है। यदि पत्रकार अपने दूरगामी दृष्टिकोण  व विचार प्रतिभा से समाज व देशहित से जोड़कर चलता है तो उसका निरपेक्ष व बेबाक होना लाजिमी है, जो सही दिशा में ले जा सकता है। पत्रकारिता और समाज-सेवा के मिलन को वे शुभ मानते हुए कहते थे, ‘जब कोई पत्रकार सेवा करेगा तो वह अधिक कारगर होगी। सच्‍चे पत्रकार का हृदय मानवीय संवेदनाओं से युक्‍त रहना चाहिए।’ उनमें देश के भविष्य की चिंता व तस्‍वीर रचती-बसती और खनकती थी। तेजी से बदलते सामाजिक-आर्थिक परिवेश में उनकी खिन्नता का दर्द समझा जा सकता है।

राष्‍ट्रीय और सामाजिक कार्यों में जुड़े रहकर सक्रियता से काम करना तो और भी दुर्लभ कार्य है। उनका कृतित्‍व प्रासंगिक, महत्‍वकारी और अर्थपूर्ण होने के साथ-साथ जीवन की उथल-पुथल से जोड़ता है। उनके मिले-जुले व्‍यक्तित्व की खनक उनकी कार्यशैली में अनुभूत होती रही। उनके विचार उनके चिंतन-सागर की हिलोरे हैं और समय के साथ चलते हुए कुछ हद तक उससे आगे निकलने की दूरगामी कोशिश करते मालूम होते हैं। उनकी जीवन-शैली में परंपरागत मान्‍यताओं, सामाजिक और वैचारिक उथल-पुथल के भी दर्शन होते हैं। उन्‍होंने कई पड़ावों को जीते हुए खुद को चाकचैबंद और बुलंद किया। बदली परिस्‍थितियों की झलक और अंदाज उनमें सदा प्रतिबिंबित होते रहे। कहीं-कहीं उन्‍होंने सामाजिक विषयों में हर्ष-विषाद, विडंबना, रुढ़िवाद आदि पर कटाक्ष पर सहज भाव से ध्‍वनित कर कई बार यक्षप्रश्‍न भी खड़े किए। सामाजिक, सांस्‍कृतिक, धार्मिक कार्यों से जुड़े सरोकार उनकी वैचारिकता में भिन्‍न-भिन्‍न तरीके से झलकते रहे। उनके टूटते-बनते कई महत्‍वपूर्ण विचार बिखरे-निखरे से दिखते हैं। सामाजिक जीवन की विसंगतियां और विशेषताएं उनके मर्म को यथार्थ का आइना दिखाती हैं और बिखरी हुई आभा को समेटती हैं।

मातृभाषा व स्‍वभाषा को वे प्रगति का आधार और जड़ से जुड़े रहने का संस्‍कार बताते हुए ‘देश में चले, देशी भाषा’ का नारा भी सदा रौशन करते रहे। देश-विदेश में सरकारी संस्‍थाओं के साथ-साथ सामाजिक मंचों के माध्‍यम से उसके उत्‍थान के लिए अनवरत प्रयास किए। संस्कृति, नैतिकता, साहित्य, शिक्षा, पुरातन गौरव और मातृभाषा समृद्धि पर उन्होंने तथ्यपरक और मजबूत मंतव्य अनेकों मंचों पर व्यक्त किए। नैतिकता को रेखांकित करते हुए उन्होंने बड़ी बात कही कि इंसान का संस्कार और ज्ञान किसी बड़े नाम व धन से भी कहीं अधिक बड़ा व प्रबल होता है। हम केवल अपने लिए न जिएं, बल्‍कि औरों के लिए भी जिएं। उनके मुखारविंद से व्‍यक्‍त बातें कई बार सूक्तियों की तरह झलकती थी। डॉ. वैदिक सब के है और सब उनके रहेंगे। उनके दिखाए मार्ग, विचार और सोच-विचार का ढंग हमें निरंतर उदार और सहजता की प्रेरणा देता रहेगा। वे भारतभूमि की माटी के सच्चे और बिरले सपूत थे और एक ऐसी लौ का हिस्‍सा थे, जो न केवल दूसरों को रौशन करती थी, बल्‍कि खुद को समयोचित निखारने-तराशने-संवारने में भी तल्‍लीन रहती थी। आज के उथल-पुथल के दौर में समाज में उनके जैसा व्यक्तित्व का धनी होना असंभव तो नहीं, मुश्किल जरूर है। उनके धारदार व दुविधारहित चिंतन की राह से सज्जित अभिव्यक्ति की बेबाक-बेलाग शैली, जीने का अंदाज और मानवीय मूल्यों से परिपूरित आभा सदा गुलजार रहेगी।

Naya India

Naya India, A Hindi newspaper in India, was first printed on 16th May 2010. The beginning was independent – and produly continues to be- with no allegiance to any political party or corporate house. Started by Hari Shankar Vyas, a pioneering Journalist with more that 30 years experience, NAYA INDIA abides to the core principle of free and nonpartisan Journalism.

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