अपनी क्रिकेट टीम के कप्तान रोहित शर्मा को कांग्रेस पार्टी की एक प्रवक्ता ने मोटा कह दिया। चैंपियंस ट्रॉफी में भारत-न्यूजीलैंड का मैच दुबई में चल रहा था। बात-बात में जनता के लिए मनोरंजन खोजते अपने मीडिया को देश-व्यापी बहस का मुद्दा मिल गया। फिर क्या था मोटापे पर मीडिया बहस ने बातचीत व बुद्धि का मोटापा दिखाना शुरू कर दिया। तरह-तरह के मोटापे बताए, दिखाए व समझाए जाने लगे।
आजकल अपने मन की बात करने में दूसरे के तन के काज पर उंगली उठाना बेहद आसान हो गया है। हर किसी पर उंगली उठाने का खेल आज सबसे ज्यादा मनोरंजन देता है। सोशल मीडिया इस खेल का सबसे बड़ा मैदान हो गया है। उंगली उठाने का लेना-देना विचार या विवेक से ज्यादा मन के मोटापे से हो गया है। तन बेशक थक जाए मगर मन थकने का नाम ही नहीं लेता।
सोशल मीडिया की मदद से खुद के साधारण को दुनिया भर में सार्वजनिक करने की होड़ लगी है। फिर वो अपने ही मन की कैसी भी बात हो। खबर में बने रहना ही अपने होने का औचित्य हो गया है। आज जब कोई खास बात कर के बच नहीं सकता तो साधारण बात करने वाले का तो बचना मुश्किल ही हो गया है।
अपनी क्रिकेट टीम के कप्तान रोहित शर्मा को कांग्रेस पार्टी की एक प्रवक्ता ने मोटा कह दिया। चैंपियंस ट्रॉफी में भारत-न्यूजीलैंड का मैच दुबई में चल रहा था। बात-बात में जनता के लिए मनोरंजन खोजते अपने मीडिया को देश-व्यापि बहस का मुद्दा मिल गया। फिर क्या था मोटापे पर मीडिया बहस ने बातचीत व बुद्धि का मोटापा दिखाना शुरू कर दिया। तरह-तरह के मोटापे बताए, दिखाए व समझाए जाने लगे।
मीडिया में तन के मोटापे से शुरू हुई बहस फिर बुद्धि के, खेल के, स्वास्थ्य के और सत्ता तक के मोटापे तक पहुंच गयी। और टीवी पर खूब चलाई भी गयी। आखिर बेवजह के प्रवक्ता को माना पड़ा कि रोहित शर्मा को मोटा, थुलथुल बस यूं-ही कह दिया था। सामने टीवी पर मैच चल रहा था और ढीठ पने में ट्वीट आ गया। मनमोह के मतिभ्रम में मोटापे का चालीसा निकल गया।
कुछ दिन पहले ही अपने स्व-चित्रित प्रधानमंत्री ने भी तेजी से फैल रहे मोटापे से देश की जनता को जागरूक करने का बीड़ा उठाया था। जनता से ही सवाल किया था। मन की बात को तन की बहस में ले आए थे। उत्तराखंड में राष्ट्रीय खेलों के उद्घाटन समारोह में देश में बढ़ते मोटापे पर चिंता जताई थी। खाने में ज्यादा तेल से तेजी से फैल रहे मोटापे पर फटकार लगाई थी। हर तरह मोटी होती जनता को ओवरवेट होने के नुकसान समझाए थे।
मीडिया ने मोटापे के मुद्दे को व्यापक व्यवस्था की वैचारिकता का गहन मुद्दा बनाया। बढ़ती महंगाई और घटते रोजगार में भी नेशनल हेल्थ व फिटनेस पर जोर दिए जाने की सलाह दी गयी। इससे जुड़े, जनता के मन में जो भी सवाल थे या रहे, उन्हें खुद ही अपने खाने-पीने में खोजने का जवाब भी मिला। सत्ता के मोटापे पर जनता के सवाल खुद को दुबला करने से ही मिलेंगे।
तो प्रधानमंत्री और कांग्रेस प्रवक्ता भी, बस क्रिकेट कप्तान रोहित शर्मा का और देश की दो-जून तलाशती जनता का ही मोटापा छांटने में लगे हैं। क्या गलत कर रहे हैं? जैसे भी हो, हर तरह से जनता के बीच में छाए रहना है। खबर में बने रहना है। सोशल मीडिया ही नहीं, हर मीडिया में बस कहते-दिखते रहने की मोटी आकांक्षा है। मन के मोटापे से तन का मोटापा मापा जा रहा है। अपन सब जानते हैं कि तन के अलावा, मोटापा तो मन का भी होता है। अपने मन का मोटापा अपने ही विवेक पर भारी पड़ता है। बतकही का बतंगड़ बनाने के माहौल में किसका मोटापा छुपा रह सकता है? वो फिर देश के प्रधानमंत्री हों या देश की क्रिकेट टीम के कप्तान हों।
दुनिया भर में तरह-तरह का मोटापा फैल रहा है। अमेरिका का मोटापा तो उनके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की कथनी-करनी में दिख ही रहा है। रूस के पुतिन के साथ मिल कर ट्रंप भी दुनिया के देशों को पतला करने में लगे हैं। विश्व शांति के लिए बातचीत को मीडिया में बहस के तौर पर दिखाया जाता है। और विश्व युद्ध से बचने की बातों के बीच शस्त्र-उद्योग के धंधे से अपनी अपनी तंदुरुस्ती पाने में लगते हैं। ताकि जनता को उसके तन के मोटापे पर लगा दिया जाए और सत्ता अपने मन के मोटापे का विस्तार करती रहे। क्योंकि जब तक जनता के तन का मोटापा छंटेगा तब तक सत्ता का मोटापा कुछ ही हाथों में सिमट जाएगा।
अब सत्ता में लगे जनसेवकों का और मनोरंजन के मुनाफे में लगी मीडिया का मोटापा जनता के अलावा कौन छांट सकता है? सत्ता के मोटापे से पतली हुई जनता को ही जागना होगा।