दिल्ली ने जनादेश दे दिया। 27 साल के बाद दिल्ली के मतदाताओं ने भारतीय जनता पार्टी को सरकार बनाने का जनादेश दिया है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के नागरिकों को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल में से किसी एक को चुनना था और उन्होंने चुनने में कोई गलती नहीं की। यह पहला अवसर था, जब प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के लोगों से इस तरह वोट मांगा था। उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान कहा कि लोग उन्हें वोट दें। वे दिल्ली को संवारेंगे। तभी चुनाव परिणामों की व्याख्या और विश्लेषण में किसी प्रकार का भ्रम रखने की जरुरत नहीं है। इस बात को आंकड़ों की दृष्टि से भी समझ सकते हैं। दिल्ली में पिछले साल लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने जीत की हैट्रिक लगाई। उसने लगातार तीन चुनावों में सभी सात सीटें जीतने का रिकॉर्ड बनाया।
तीनों चुनावों में भाजपा को 50 फीसदी से अधिक वोट मिलता रहा। लेकिन विधानसभा चुनाव में उसमें से 13 से 14 फीसदी वोट आम आदमी पार्टी को चला जाता था। यानी जो लोग लोकसभा में भाजपा को और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को वोट देते थे उसमें से कुछ लोग विधानसभा में आम आदमी पार्टी के साथ चले जाते थे। इस बार उन्होंने विधानसभा चुनाव में भी भाजपा का ही साथ देने का निर्णय किया, क्योंकि श्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि वे दिल्ली को संभालेंगे और संवारेंगे।
मतदाताओं का यह वर्ग विकास की आकांक्षा वाला वर्ग है। उसे लगता था कि दिल्ली में श्री अरविंद केजरीवाल नए तरह की राजनीति का वादा करके आए हैं तो वे उसके अनुरूप कार्य करेंगे। परंतु पिछले 10 साल से दिल्ली के लोगों ने देखा कि श्री अरविंद केजरीवाल ने काम करने की बजाय अपना एकमात्र लक्ष्य केंद्र सरकार से झगड़ा करना बना लिया। उन्होंने आम आदमी पार्टी और अपनी सरकार दोनों के एजेंडे को एक कर दिया। पार्टी का एजेंडा हो सकता है अखिल भारतीय विस्तार का लेकिन सरकार तो दिल्ली के लोगों के लिए थी। लेकिन उन्होंने पार्टी के विस्तार के लिए सरकार और कामकाज को दांव पर लगा दिया। वे पिछले 10 साल से एक ही बात दोहराते रहे कि उप राज्यपाल उन्हें काम नहीं करने दे रहे हैं और उप राज्यपाल केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह के इशारे पर काम कर रहे हैं।
श्री अरविंद केजरीवाल की बनवाई इस धारणा का सर्वाधिक नुकसान उनको ही हुआ। दिल्ली के मतदाताओं के मन में धीरे धीरे यह बात पैठती गई कि अगर फिर से आम आदमी पार्टी की सरकार चुनते हैं तो फिर कोई काम नहीं होगा और यही सुनने को मिलेगा कि केंद्र सरकार काम नहीं करने दे रही है। इसलिए क्यों न डबल इंजन की सरकार को मौका दिया जाए। करीब 14 प्रतिशत मतदाताओं को इस सोच पर अमल करने के रास्ते में कोई वैचारिक बाधा नहीं थी क्योंकि वे लोकसभा चुनाव में भाजपा को वोट करते थे। यानी विचार के स्तर पर वे भाजपा विरोधी नहीं थे। वैसे मतदाता सहज रूप से विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ चले गए। इस विश्लेषण की पुष्टि वोट प्रतिशत से भी होती है। आम आदमी पार्टी का वोट पिछली बार के मुकाबले 10 फीसदी कम हुआ है और भाजपा का वोट पिछली बार से नौ फीसदी बढ़ा है। इससे स्पष्ट है कि विकास के लिए आकांक्षी वर्ग और लोकसभा में श्री नरेंद्र मोदी के नाम पर मतदान करने वाला समूह भाजपा के साथ जुड़ा है और जीत सुनिश्चित की है।
असल में श्री अरविंद केजरीवाल ने लगातार तीन चुनाव में मिले जनादेश की पूरी तरह से गलत व्याख्या कर ली थी। उनको लग रहा था कि वे दिल्ली की आबादी के एक बड़े समूह को मुफ्त में कुछ वस्तुएं और सेवाएं देकर अनंतकाल तक उनका वोट प्राप्त कर सकते हैं। वे समझते रहे कि उनको सिर्फ इसलिए वोट मिल रहा है क्योंकि वे वस्तुएं और सेवाएं मुफ्त में दे रहे हैं। परंतु यह धारणा पूरी तरह से सही नहीं थी। दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी है और वहां लोग बुनियादी सुविधाओं के विकास की भी आकांक्षा रखते थे।
उनको पीने के साफ पानी, सांस लेने के लिए साफ हवा, चलने के लिए खुली सड़कें, कारोबार व रोजगार के अवसर, नौकरियों की उपलब्धता, कूड़े के पहाड़ों से मुक्ति, सड़कों पर जलजलाव से छुटकारा आदि भी चाहिए था। परंतु अफसोस की बात है कि श्री केजरीवाल ने 10 साल के अपने शासन में इनमें से कोई भी काम नही किया। उनको यह पुरानी कहावत याद रखनी चाहिए थी कि, ‘आप सभी लोगों को थोड़े समय के लिए मूर्ख बना सकते हैं, थोड़े से लोगों को हर समय मूर्ख बना सकते हैं परंतु सभी लोगों को सभी समय मूर्ख नहीं बना सकते हैं’।
दशकों बाद पहली बार दिल्ली में ऐसा हुआ कि पिछले साल बरसात के मौसम में लुटियन की दिल्ली सहित हर इलाके में पानी भर गया। दिल्ली के नालों का पानी राजधानी की सड़कों पर बहता रहा। सड़कें कई दिन तक नाली के पानी से बजबजाती रही थीं। इसका कारण यह था कि बरसात से पहले अनिवार्य रूप से नालों की सफाई होनी चाहिए थी, जो नहीं हुई, जबकि दिल्ली सरकार और नगर निगम दोनों आम आदमी पार्टी के नियंत्रण में हैं। दिल्ली के लोग 10 साल से सुन रहे थे कि दिल्ली के चारों कोनों पर कुतुबमीनार के आकार के कूड़े के जो पहाड़ हैं उनका निष्पादन होगा। लेकिन भलस्वां से लेकर गाजीपुर तक कहीं भी कूड़े के पहाड़ कम नहीं हुए। उलटे दिल्ली की सड़कें कूड़े का ढेर बन गईं। वोट बैंक और तुष्टिकरण की राजनीति के तहत सड़कों पर अवैध रूप से अतिक्रमण होने दिया गया। एक तरफ नई सड़कें नहीं बन रही थीं तो दूसरी ओर सड़कों पर अतिक्रमण बढ़ता गया, जिसका नतीजा यह हुआ कि दिल्ली ट्रैफिक की अव्यवस्था की राजधानी बन गई। दिल्ली को दमघोंटू वायु प्रदूषण से मुक्ति दिलाने के लिए कोई ठोस प्रयास पिछले 10 साल में नहीं किया गया। हर साल सर्दियां शुरू होने के साथ ही वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी एक्यूआई के खराब होने का सिलसिला शुरू हो जाता है और दिल्ली के लोगों को इससे राहत दिलाने की बजाय आम आदमी पार्टी की सरकार पड़ोसी राज्यों पर ठीकरा फोड़ना शुरू कर देती थी।
घरों में खराब पानी आ रहा है तो हरियाणा जिम्मेदार है। दिल्ली की हवा खराब हुई तो उत्तर प्रदेश और हरियाणा जिम्मेदार हैं। दिल्ली में ट्रैफिक की अव्यवस्था हुई तो एनसीआर के शहर जिम्मेदार हैं। दिल्ली में स्वास्थ्य सेवाएं बिगड़ीं तो यह आरोप कि दूसरे शहरों से आकर लोग दिल्ली के अस्पतालों में भर रहे हैं। यह सब सुनते सुनते लोग उबे हुए थे। उन्हें जवाबदेही लेने वाली सरकार की जरुरत थी। वे दूसरे पर आरोप लगाने और भाग जाने वाली सरकार नहीं चाहते थे। उन्होंने देखा था कि किस तरह से श्री अरविंद केजरीवाल दूसरी पार्टियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते रहे और खुद भ्रष्टाचार के आरोप में जेल गए।
वे जिन नेताओं को भ्रष्ट बताते रहे उनके साथ ही तालमेल करके राजनीति की। वे सादगी और आम आदमी की तरह होने का दावा करते रहे और लोगों ने देखा कि कैसे अपने रहने के लिए जो घर चुना उसकी साज सज्जा पर 50 करोड़ रुपए खर्च कर दिए। जब ईमानदारी और आम आदमी के पैमाने पर उनकी पोल खुल गई तो वे यह भय दिखाने लगे कि भाजपा आ गई तो लोक कल्याण की सारी योजनाएं बंद कर देगी। परंतु लोक कल्याण की योजनाओं के मामले में भी भाजपा और श्री नरेंद्र मोदी का रिकॉर्ड किसी भी दूसरे नेता से बहुत बेहतर है। इसलिए आम आदमी पार्टी का कोई भी दांव इस बार काम नहीं आया।
राजधानी दिल्ली का चुनाव परिणाम एक तरफ अगर आम आदमी पार्टी और श्री अरविंद केजरीवाल की विफलता का परिणाम है तो दूसरी ओर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी व केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह के संकल्प, उनकी रणनीति और भारतीय जनता पार्टी के प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं की मेहनत का भी परिणाम है। भाजपा ने इस बार जीतने के संकल्प के साथ चुनाव लड़ा। उसने दिल्ली में आप की ओर जाने वाले वोट को तोड़ने के साथ साथ अपने वोट को जोड़े रहने वाले फैसले भी किए। केंद्रीय कर्मचारियों के लिए आठवें वेतन आयोग की घोषणा की गई और बजट में 12 लाख तक की आमदनी को कर मुक्त करने का फैसला हुआ। इससे मध्य वर्ग पूरी तरह से भाजपा के साथ एकजुट हुआ। दिल्ली में आप की और विशेष कर नई दिल्ली सीट पर श्री अरविंद केजरीवाल की पराजय का यह एक बड़ा कारण बना।
दिल्ली में भाजपा की विजय ने इस धारणा को निर्णायक रूप से ध्वस्त कर दिया है कि लोकसभा चुनान के बाद उसकी राजनीति का अवसान आ रहा है। कह सकते हैं कि लोकसभा चुनाव में सीटों के नुकसान के बाद भाजपा ने नए सिरे से अपनी शक्ति का संचय किया है और नए संकल्प के साथ विजय की ओर प्रस्थान किया है। इसका असर इसी वर्ष के अंत में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में दिखेगा और अगले साल पश्चिम बंगाल के चुनाव में भी दिखेगा। श्री अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी का हारना बिहार से लेकर पश्चिम बंगाल और देश के दूसरे हिस्सों के क्षत्रपों के लिए भी खतरे की घंटी है। अब सबका राजनीतिक अस्तित्व खतरे में है।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि वे दिल्ली के संवारेंगे तो वे निश्चित रूप से इसमें सफल होंगे। उन पर तो यह दोहा पूरी तरह चरितार्थ होता है कि ‘राम काजु कीन्हे बिनु मोहि कहां विश्राम’। दिल्ली की अद्भुत जीत पूरी तरह से उनकी देन है। उनके मार्गदर्शन में नई सरकार को गठन के साथ ही राजधानी में लंबित बुनियादी ढांचे के विकास के काम को आरंभ करना चाहिए। यमुना की सफाई और वायु प्रदूषण को दूर करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। सड़कों में सुधार और अतिक्रमण हटाने दिल्ली की बेहतरी और नागरिकों की सुरक्षा के लिए भी आवश्यक है। सीवर लाइन में बदलाव और सफाई भी सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए क्योंकि दिल्ली राजधानी है और इसे विश्वस्तरीय शहर होना चाहिए। फिलहाल सीवर लाइन का काम कई विभागों के बीच बंटा हुआ है, जिसकी वजह से न तो इन्हें बदलने का काम हो रहा है और न इनकी समय से सफाई हो पा रही है।
इसका एकीकृत प्रबंधन होना चाहिए और अगले 50 या सौ साल की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए नई सीवर लाइन डाली जानी चाहिए। बिजली की व्यवस्था को बेहतर करने और दिल्ली के लोगों को सस्ती विद्युत आपूर्ति के लिए विद्युत विक्रय और वितरण का काम एक ही कंपनी के हाथ में देने की बजाय उसका विभाजन करना चाहिए। इसके साथ ही वैचारिक मुद्दों को भी प्राथमिकता मिलनी चाहिए। इसकी शुरुआत नेहरू पार्क, लोधी गार्डेन, अकबर रोड, बाबर रोड, हुमायूं रोड, शाहजहां रोड आदि के नाम तुरंत बदल कर देशभक्तों और शहीदों के नाम पर इन सड़कों का नामकरण होना चाहिए। इससे आम नागरिकों में देशभक्ति और आत्मविश्वास का संचार होगा। (लेखक दिल्ली में सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त विशेष कार्यवाहक अधिकारी हैं।)