rahul gandhi: भारत की राजनीति के सामने अब सबसे अहम् सवाल यह सामने आ रहा है कि क्या अगले एक दशक में भारत में सरकार प्रतिपक्ष विहीन होकर निरंकुश पथ की ओर अग्रसर होगी?
अब धीरे-धीरे यह आशंका इसलिए भी अहम् होती जा रही है, क्योंकि हमारे देश में मुख्य प्रतिपक्ष दल कांग्रेस धीरे-धीरे अपना वजूद और साख दोनों ही खोती जा रही है और जितनी उसकी साख गिर रही है, उसी रफ्तार से मोदी जी की भाजपा की साख बढ़ती जा रही है।
अभी देश में आम चुनावों में चार वर्ष का समय शेष है, जब अभी मुख्य प्रतिपक्षी दल कांग्रेस की यह स्थिति है तो अगले चार सालों में इसकी स्थिति क्या होगी?
यही आज देश की भावी राजनीति के सामने सबसे बड़ा और अहम् सवाल है, क्योंकि देश में राष्ट्रीय स्तर के दो ही राजनीतिक दल है- एक सत्तारूढ़ भाजपा, तो दूसरी कांग्रेस और यदि मुख्य प्रतिपक्षी दल ही ‘मृत्युशैया’ पर हो तो ‘सत्तारूढ़’ के ‘निरंकुश’ होने की संभावनाएं बढ़ जाती है।
also read: युवराज सिंह डब्ल्यूसीएल सीजन 2 में भारत की कप्तानी करेंगे
कुछ अहम् बदलाव भी जरूरी (rahul gandhi)
लोकतंत्र या प्रजातंत्र के मुख्य आधार ही पक्ष व प्रतिपक्ष है, यदि इनमें से एक भी कमजोर होता है तो फिर प्रजातंत्र की मूल भावना खत्म होने की संभावना बलवती हो जाती है और मौजूदा हालातों से ऐसा ही प्रतीत होने लगा है (rahul gandhi)
यदि आज मुख्य प्रतिपक्षी दल कांग्रेस के ये हाल है तो अगले चार सालों में क्या होगा और अब जैसे-जैसे समय आगे बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे कांग्रेस अपने सुधार की क्षमता भी गवाती जा रही है।
आज राजनीतिक पंडित इसीलिए भारत के राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंतित है, मूल समस्या यह है कि कांग्रेस देश के बदलते मानस और राजनीतिक परिदृष्य में हो रहे परिवर्तन को समझ ही नही पा रही है।(rahul gandhi)
यद्यपि इस भयावह मौजूदा परिदृष्य को लेकर स्वयं कांग्रेस भी चिंतित है और अखिल भारतीय कांग्रेस के अगले सत्र पर उसकी नजर भी है और वह यह भी बखूबी समझ रही है कि कांग्रेस को यदि राजनीति में रसूख बनाकर रखना है तो उसमें बुनियादी स्तर पर अब कुछ अहम् बदलाव भी जरूरी है और साथ ही वह यह भी महसूस कर रही है कि जमीनी स्तर से लेकर ऊपर तक कांग्रेस पार्टी में बदलाव व पुर्नगठन ही इस संकट का एकमात्र समाधान है।
पोती ही आज ‘सर्वेसर्वा’ बनी हुई
किंतु भारत के इस सबसे पुराने दल में अहम् संकट यह है कि अब इस दल में कोई बुजूर्ग चिंतक अनुभवी नही रहा और बिना बुजूर्ग वाले सामाजिक परिवार की जो स्थिति होती है, ठीक वही कांग्रेस की स्थिति है (rahul gandhi)
धीरे-धीरे समस्या और गंभीर रूप धारण करती जा रही है, इसी कारण आज देश के राजनीतिक पंडित न तो कोई भविष्यवाणी कर पा रहे है और न मौजूदा संकट से बाहर निकलने का कोई उपाय सुझा पा रहे है और इस प्रकार देश का मुख्य प्रतिपक्षी दल अपनी साख और वजूद दोनों ही खोता जा रहा है।
वैसे यदि वरियता की दृष्टि से देखा जाए तो कांग्रेस और भाजपा में ‘दादी-पोती’ का रिश्ता है, कांग्रेस की उम्र आज सवा सौ साल से ज्यादा है तो भाजपा की पैंतालिस साल। करीब एक शतक पहले जन्म जनसंघ 1980 में भारतीय जनता पार्टी के रूप में अवतरित हुआ था।
जबकि कांग्रेस को एक गैर भारतीय ए.ओ. ह्यूम ने अठारहवीं सदी के अंतिम दिनों में पैदा किया था और भारत की आजादी का श्रेय भी इसी दल को है। (rahul gandhi)
किंतु समय के अनुरूप जैसे देश में बदलाव आए वैसे ही यहां की राजनीतिक भी परिवर्तनशील बनी रही और आज देश में ‘दादी’ का वजूद खत्म हो रहा है और पोती ही आज ‘सर्वेसर्वा’ बनी हुई है।
आज देश इसी स्थिति से गुजर रहा है, किंतु चिंता का फिर विषय वही है कि देश फिर अपने पुराने राजनीतिक इतिहास को दोहराने को अग्रसर है, अब धीरे-धीरे 1975 के ही हालात बनते जा रहे है।
जब सत्तारूढ़ दल को निरंकुशता का मंत्र मिल रहा है और प्रतिपक्ष के वजूद पर कई सवालिया निशान लगे हुए है। ….पर प्रजातंत्र की मूल भावना को जीवित रखने के लिए इन हालातों का बदलना बेहद जरूरी है और अब उसी की प्रतीक्षा है। (rahul gandhi)