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14-04-2025 Vol 19

तहव्वुर हुसैन राणा को भारत लाना बड़ी जीत

एटीएस के प्रमुख हेमंत करकरे, इनकाउंटर स्पेशलिस्ट विजय सालसकर और अतिरिक्त पुलिस आयुक्त अशोक कामटे सहित इस हमले में मारे गए 166 लोगों को तभी न्याय मिलेगा, जब तहव्वुर हुसैन राणा जल्दी से जल्दी फांसी के फंदे पर लटकेगा। इसके बाद डेविड कोलमैन हेडली उर्फ दाउद सैयद गिलानी की बारी होगी और फिर हाफिज सईद की भी बारी आएगी।  

भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता पर सबसे बड़ा हमला 26 नवंबर 2008 को देश की वित्तीय राजधानी मुंबई पर हुआ था। तब केंद्र में कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार थी और महाराष्ट्र में भी कांग्रेस की सरकार थी। उसके बाद छह साल तक केंद्र और महाराष्ट्र दोनों जगह कांग्रेस की सरकार रही। लेकिन उसने मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले के दोषियों को पकड़ कर सजा दिलाने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया। पहले तो काफी समय तक कांग्रेस के नेता देश के हिंदू और राष्ट्रवादी संगठनों को ही इसके लिए जिम्मेदार ठहराते रहे थे। उसी समय ‘हिंदू आतंकवाद’ का जुमला खुलेआम कांग्रेस नेताओं की ओर से बोला जाने लगा था। लेकिन अब उस हमले के मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक तहव्वुर हुसैन राणा को माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों और सरकार की पहल से भारत लाया गया है तो विडम्बना देखिए कि कांग्रेस के नेता इसका भी श्रेय लेने सामने आ गए हैं। वास्तविकता यह है कि कांग्रेस ने पाकिस्तानी मूल के आतंकवादी तहव्वुर हुसैन राणा को भारत लाने का कोई प्रयास नहीं किया, उलटे उसने तुष्टिकरण की राजनीति के तहत इस पर परदा डालने का प्रयास किया।

मुंबई हमले के साजिशकर्ता तहव्वुर हुसैन राणा को भारत लाना प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की सरकार की बड़ी जीत है। यह एक महान कूटनीतिक उपलब्धि है, जिससे न सिर्फ मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले में मारे गए लोगों के परिजनों को न्याय मिलेगा, बल्कि आतंकवाद पर अंकुश लगाने के प्रयासों को भी सफलता मिलेगी। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने फरवरी में अमेरिका के अपने दौरे में यही तर्क राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सामने रखा था। उसके बाद प्रधानमंत्री श्री मोदी ने जब राष्ट्रपति के साथ साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस की तो उसमें उन्होंने अपील किया कि अगर आतंकवाद पर नियंत्रण करना है और आतंकवादियों को समाप्त करना है तो मुंबई हमले के आरोपी को भारत प्रत्यर्पित किया जाना चाहिए। राष्ट्रपति ट्रंप इससे सहमत हुए और तब राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए ने नए सिरे से पहल की। एनआईए ने तहव्वुर हुसैन राणा के प्रत्यर्पण का प्रयास तेज किया और उसकी अपील पर सुनवाई के बाद अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने उसे भारत भेजने का फैसला किया।

तहव्वुर हुसैन राणा ने प्रत्यर्पण को अटकाने के बहुत प्रयास किए लेकिन एनआईए के जांबाज अधिकारियों और उनके वकीलों ने उसके हर प्रयास को विफल किया। इसमें प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप की केमिस्ट्री भी काम आई तो भारत की खुफिया एजेंसी रॉ के प्रयास भी काम आए। तब जाकर पाकिस्तानी मूल के कनाडाई नागरिक तहव्वुर हुसैन राणा के प्रत्यर्पण का रास्ता साफ हुआ। इतने प्रयास के बाद जब राणा को भारत लाया गया तो कांग्रेस के एक  वरिष्ठ नेता, जो देश के गृह मंत्री भी रह चुके हैं और उनके गृह मंत्री रहते दो मुख्य साजिशकर्ताओं डेविड कोलमैन हेडली, जिसका असली नाम दाउद सैयद गिलानी है और तहव्वुर हुसैन राणा को भारत लाने का कोई प्रयास नहीं हुआ, वे आगे आए और कहा कि केंद्र की भाजपा सरकार राणा के प्रत्यर्पण का श्रेय न ले। ऐसा नहीं है कि उनको हकीकत नहीं पता है। उन्होंने जानते बूझते लोगों को गुमराह करने के लिए ऐसी बात कही है ताकि कांग्रेस सरकार के गुनाहों पर परदा डाला जा सके।

वास्तविकता यह है कि कांग्रेस की तत्कालीन सरकार के समय 2011 में एनआईए ने मुंबई हमले के मामले में आरोपपत्र दाखिल किया था, जिसमें राणा और हेडली को आरोपी बनाया गया था। लेकिन इससे आगे कोई प्रयास नहीं किया। एनआईए की जांच से पता चला था कि तहव्वुर हुसैन राणा आतंकवादी संगठन लश्कर ए तैयबा से जुड़ा हुआ है और उसने मुंबई हमले के मुख्य साजिशकर्ता डेविड कोलमैन हेडली को कई तरह की मदद मुहैया कराई थी। राणा ने ही हेडली को मुंबई में ‘फर्स्ट वर्ल्ड’ नाम से ऑफिस खोलने में मदद की थी। इसी ऑफिस से उसकी आतंकवादी गतिविधियां चलती थीं। हैरान करने वाली बात यह है कि लश्कर ए तैयबा का आतंकवादी होने की वजह से राणा को 2009 में ही अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआई ने गिरफ्तार कर लिया था लेकिन भारत में आरोपपत्र में उसका नाम दो साल बाद आया। भारत सरकार को पता था कि राणा अमेरिका में एफबीआई की हिरासत में है, भारत सरकार को आतंकवादी हमले में उसकी भूमिका की भी जानकारी थी और इसलिए आरोपपत्र में उसका नाम शामिल हए लेकिन उसके प्रत्यर्पण की मांग भारत सरकार ने नहीं की। अमेरिका में राणा 2011 में जेल से छूट गया लेकिन भारत सरकार ने उसकी रिहाई का भी विरोध नहीं किया।

जब 2014 के चुनाव में बुरी तरह हार कर कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई तब मुंबई हमले में मारे गए लोगों को न्याय दिलाने का असली प्रयास शुरू हुआ। तहव्वुर हुसैन राणा को भारत लाने के लिए कूटनीतिक चैनल से पहली बार 2019 में प्रयास किया गया। इसके बाद 2020 में भारत सरकार ने अमेरिका से राणा को अस्थायी रूप से गिरफ्तार करने की मांग की। 2021 में भारत ने आधिकारिक रूप से उसके प्रत्यर्पण की मांग की और अमेरिका के न्याय विभाग को एक नोटिस भेजा। जून 2021 में अमेरिका की संघीय अदालत में राणा के प्रत्यर्पण पर सुनवाई शुरू हुई। राणा ने अमेरिकी कानून प्रक्रिया के तमाम उपायों को आजमाया और प्रत्यर्पण रोकने का प्रयास किया। लेकिन पिछले साल यानी 2024 के नवंबर में निचली अदालत ने उसकी अपील खारिज कर दी। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा। जनवरी में डोनाल्ड ट्रंप के दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद यह उम्मीद जगी कि आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई की अपनी प्रतिबद्धता में वे भारत की अपील पर ध्यान देंगे। फिर फरवरी 2025 में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी अमेरिका के दौरे पर गए और राणा के प्रत्यर्पण को वैश्विक आतंकवाद के खात्मे के लिए जरूरी बताया। अंत में सुप्रीम कोर्ट से राणा की दूसरी अपील भी खारिज हुई और एनआईए व रॉ की टीम जबरदस्त गोपनीयता और भारी सुरक्षा बंदोबस्त के बीच उसको भारत लेकर आई। राष्ट्रीय जांच एजेंसी, एनआईए उसको हिरासत में लेकर पूछताछ कर रही है। एनआईए की पूछताछ से पाकिस्तान और आतंकी हाफिज सईद की भूमिका के और भी पहलू सामने आएंगे।

लश्कर ए तैयबा से जुड़े पाकिस्तानी मूल के तहव्वुर हुसैन राणा को मुंबई में मासूमों की हत्या का कोई अफसोस नहीं है। उसने घटना के बाद कहा था कि भारतीय लोग इसी के लायक हैं। इससे भारत और भारतीयों को लिए उसके मन में बैठी नफरत को दिखती है। उसने मुंबई हमले में शामिल पाकिस्तान के 10 आतंकवादियों के लिए पाकिस्तान के सबसे बड़े वीरता पुरस्कार ‘निशान ए हैदर’ की मांग की थी। इससे पूरे मामले में उसकी भूमिका अपने आप समझ में आती है। उधर अमेरिकी सरकार को भी मुंबई हमले में राणा की संलिप्तता के प्रत्यक्ष प्रमाण मिले हैं। अमेरिकी सरकार ने कहा है कि मुख्य साजिशकर्ता हेडली ने राणा को आदेश दिया था कि वह मुंबई ‘फर्स्ट वर्ल्ड’ नाम से फर्जी ऑफिस खोलने की कहानी को असली दिखाने वाले दस्तावेज तैयार करे। अमेरिका ने यह भी माना है कि राणा ने ही हेडली को भारत आने का वीजा हासिल करने के तरीके बताए थे। ये सारी बातें ईमेल और दूसरे दस्तावेजों से प्रमाणित हैं।

भारत की जांच एजेंसी एनआईए के पास मुंबई हमले में तहव्वुर हुसैन राणा की संलिप्तता साबित करने के अनेक अकाट्य सबूत हैं। इसलिए राणा को दोषी ठहराया जाना और उसे अपने अपराध की सबसे बड़ी सजा मिलना महज वक्त की बात है। यह सही है कि भारत सरकार ने प्रत्यर्पण संधि के तहत राणा के खिलाफ निष्पक्ष न्यायिक प्रक्रिया का वादा किया है और कानूनी दस्तावेजों पर दस्तखत किए हैं लेकिन यह सही नहीं है कि भारत ने प्रत्यर्पण संधि के तहत यह वादा किया है कि राणा को फांसी की सजा नहीं हो सकती है। भारत ने प्रत्यर्पण संधि की शर्तों के मुताबिक राणा की निष्पक्ष सुनवाई शुरू की है। देश के बेहतरीन लॉ कॉलेज से पढ़े बेहद जहीन वकील अदालत में उसका पक्ष रखने के लिए नियुक्त हुए हैं। जांच पूरी तरह निष्पक्ष होगी, कानूनी प्रक्रिया भी पूरी तरह से निष्पक्ष होगी और सबूतों के आधार पर राणा को फांसी की सजा होगी। इस बारे में किसी को संदेह नहीं होना चाहिए। केंद्र में अब माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की सरकार है, जो देश के दुश्मनों को कभी माफ नहीं करती है।

यह कांग्रेस की सरकार नहीं है, जिसने मुंबई पर हमला करने वाले आतंकवदियों में शामिल अजमल कसाब को फांसी के तख्ते पर पहुंचाने में चार साल लगा दिए। मुंबई पुलिस के असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर तुकाराम ओम्बले ने कसाब को पकड़ा था। उस महावीर ने अंधाधुंध गोलियां चला रहे कसाब की ऑटोमेटिक राइफल की नाल पकड़ ली और उसकी पांच गोलियां अपने सीने पर खाई थी। उस महावीर पुलिस अधिकारी की शहादत ने कसाब की गिरफ्तारी कराई, जिससे भारत की आत्मा पर हुए उस सबसे बड़े आतंकवादी हमले में पाकिस्तान की संलिप्तता का पता चला। एटीएस के प्रमुख हेमंत करकरे, इनकाउंटर स्पेशलिस्ट विजय सालसकर और अतिरिक्त पुलिस आयुक्त अशोक कामटे सहित इस हमले में मारे गए 166 लोगों को तभी न्याय मिलेगा, जब तहव्वुर हुसैन राणा जल्दी से जल्दी फांसी के फंदे पर लटकेगा। इसके बाद डेविड कोलमैन हेडली उर्फ दाउद सैयद गिलानी की बारी होगी और फिर हाफिज सईद की भी बारी आएगी।  (लेखक दिल्ली में सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त विशेष कार्यवाहक अधिकारी हैं।)

एस. सुनील

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