बसंत पंचमी के दिन से प्रतिवर्ष ब्रज में होली की शुरुआत हो जाती है और इसका समापन रंगनाथ मंदिर में होली खेलकर किया जाता है। …भगवान श्रीकृष्ण के नंदगांव और राधा रानी के गांव बरसाने में मुख्य रूप से लट्ठमार होली की परंपरा अत्यंत प्राचीन काल से चली आ रही है। लट्ठमार होली से पहले यहां फूलों की होली और रंगों की होली खेली जाती है, जिसका एक विशेष महत्व माना जाता है।
होलिकोत्सव का पर्व सम्पूर्ण भारत में हर्षोल्लास व धूमधाम के साथ मनाए जाने की अत्यंत प्राचीन, वृहत, भव्य व पौराणिक परिपाटी है, लेकिन वृन्दावन और मथुरा की होली की बात ही निराली है। यहां यह होली लट्ठ अर्थात लाठियों के सहारे खेली जाती है, इसलिए इसका नाम लट्ठ अथवा लठमार होली है। मथुरा, वृन्दावन आदि क्षेत्रों में खेली जाने वाली इस अनोखी और परंपरागत होली- लठमार (लट्ठमार) होली का अपना अलग ही विशिष्ट महत्त्व है। लट्ठमार होली भारत का एक प्रमुख त्योहार है। यह राधा और श्रीकृष्ण के निवास स्थान के रूप में प्रसिद्ध क्रमशः बरसाना और नंदगांव में विशेष रूप से मनाया जाता है। विश्वप्रसिद्ध बरसाना की लट्ठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है। इस दिन नंदगांव के ग्वाल- बाल बरसाना होली खेलने आते हैं और अगले दिन फाल्गुन शुक्ल दशमी को ठीक इसके विपरीत बरसाना के ग्वाल -बाल होली खेलने नंदगांव जाते हैं।
इस दौरान इन ग्वालों को होरियारे और ग्वालिनों को हुरियारिन के नाम से सम्बोधित किया जाता है। परंपरा के अनुसार फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को बरसाने में मनाई जाने वाली लट्ठमार होली के दिन नंदगांव के ग्वाल बालों के बरसाना होली खेलने आने के अवसर पर बरसाने की महिलाओं के हाथ में लट्ठ (लाठी) रहता है, और नंदगांव के पुरुष (गोप) राधा के मन्दिर लाडलीजी पर ध्वज अर्थात झंडा फहराने की कोशिश करते हैं, उन्हें बरसाना की महिलाओं के लट्ठ से बचना होता है। मान्यता है कि इस दिन सभी महिलाओं में राधा की आत्मा बसती है और पुरुष भी हंस- हंस कर लाठियां खाते हैं, लट्ठ की मार सहते हैं। आपसी वार्तालाप के लिए श्रीकृष्ण और राधा के बीच वार्तालाप पर आधारित होरी गाई जाती है। महिलाएं पुरुषों को लट्ठ मारती हैं, लेकिन गोपों को किसी भी तरह का प्रतिरोध करने की इजाजत नहीं होती है।
उन्हें सिर्फ गुलाल छिड़क कर बरसाने की इन महिलाओं को चकमा देना होता है। अगर वे पकड़े जाते हैं, तो उनकी जमकर पिटाई होती है या स्त्रियों के वस्त्र पहनाकर और महिलाओं के सदृश्य श्रृंगार इत्यादि करके उन्हें नृत्य करवाया जाता है, सरेआम नचाया जाता है। अगले दिन फाल्गुन शुक्ल दशमी को बरसाना के ग्वाल बाल होली खेलने नंदगांव जाते हैं। वहां भी यही प्रक्रिया दुहराई जाती है। इस वर्ष 2025 में 8 मार्च दिन शनिवार फाल्गुन शुक्ल नवमी को बरसाना में लट्ठमार होली, 9 मार्च दिन रविवार फाल्गुन शुक्ल दशमी को नंदगांव में लट्ठमार होली मनाई जाएगी। 10 मार्च दिन सोमवार फाल्गुन शुक्ल एकादशी को आमलकी रंगभरी एकादशी के दिन मथुरा में लट्ठमार होली मनाई जाएगी।
पौराणिक मान्यतानुसार द्वापर युग में होली खेलने आए श्रीकृष्ण को बरसाना की गोपियों ने नर्तन, नृत्य कराया था, नचाया था। यह भी मान्यता है कि द्वापर युग में होली पर रंग खेलने की परंपरा राधा व श्रीकृष्ण द्वारा ही प्रारंभ की गई थी। दो सप्ताह तक चलने वाली इस लट्ठमार होली का माहौल बहुत मस्ती भरा होता है। सम्पूर्ण वातावरण उल्लासमय होता है। इस खुशनुमा अवसर पर सिर्फ प्राकृतिक रंग-गुलाल का प्रयोग किए जाने के कारण माहौल बहुत ही सुगंधित रहता है। अगले दिन यही प्रक्रिया नंदगांव में पुनः दोहराई जाती है। वहां की गोपियां, बरसाना के गोपों की जमकर धुलाई करती है। अपनी लाठी के मार से रंग व गुलाल के माध्यम से बचते बरसाना के ग्वालों का स्वागत करती हैं। और फिर विगत दिन की भांति ही लट्ठमार होली नंदगांव में खेली जाती है।
लट्ठमार होली की उत्पत्ति के विषय में पौराणिक कथाएं मूलतः राधा- श्रीकृष्ण के प्रेम -प्रसंगों पर आधारित हैं। कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण अपने मित्रों के साथ नंदगांव से अपनी प्रेमिका राधा और उनकी सखियों पर रंगों का छिड़काव करने के लिए बरसाना आते हैं। लेकिन श्रीकृष्ण और उनके मित्रों के बरसाना में प्रवेश करते हैं, वहां राधा और उनकी सखियां उनका लाठियों से स्वागत करती हैं। अपनी लट्ठों से उन्हें तंगोंतबाह कर देती हैं। इसके बचाव में श्रीकृष्ण व उनके मित्रों के भागमभाग व विभिन्न करतब व नर्तन के बीच फिर लट्ठमार होली शुरू जाती है। मान्यता है कि इसी हास्य विनोद का अनुसरण करते हुए प्रतिवर्ष होली के अवसर पर नंदगांव के ग्वाल -बाल बरसाना आते हैं, और बरसाने की महिलाओं द्वारा रंग और लाठी से उनका स्वागत किया जाता है।
नंदगांव के पुरुषों पर बरसाना की महिलाओं द्वारा रंगों का छिड़काव किए जाने का यह उत्सव, चंचलता से लाठियां चलाना, नृत्य करना आदि अत्यंत मनमोहक होता है, और देखते ही बनता है। यह त्योहार लगभग एक सप्ताह तक चलता है और चैत्र कृष्ण पंचमी रंग पंचमी के दिन समाप्त हो जाता है। इस वर्ष 2025 में19 मार्च दिन बुधवार को रंगपंचमी है। लट्ठमार होली ब्रज क्षेत्र में अत्यंत प्रसिद्ध त्योहार है। होली आरंभ होते ही सबसे पहले ब्रज रंगों में डूबता है। और यहां की लोकप्रिय बरसाना की लट्ठमार होली की तैयारियां भी शुरू हो जाती हैं। बरसाना राधा का जन्मस्थान है। इसलिए मथुरा के पास स्थित बरसाना में होली अपने रंग में कुछ दिनों पहले ही रंगनी शुरू हो जाती है। मथुरा, बरसाना और नंदगांव के समीपस्थ क्षेत्रों में होली का उत्सव बसंत पंचमी से ही शुरु हो जाता है। और यह उत्सव लगभग 40 दिनों का होता है, जो रंग पंचमी के दिन तक चलता है। मथुरा के आस-पास के गांव में मनाई जाने वाली विश्वप्रसिद्ध होली को देखने के लिए देश- विदेशों से भारी संख्या में लोग मथुरा आते हैं।
बसंत पंचमी के दिन से प्रतिवर्ष ब्रज में होली की शुरुआत हो जाती है और इसका समापन रंगनाथ मंदिर में होली खेलकर किया जाता है। होलाष्टक से ब्रज के मंदिरों में होली खेलना शुरू हो जाता है, जिसकी शुरुआत बरसाने की लड्डू मार होली से होती है। इसके बाद लट्ठमार होली होती है। भगवान श्रीकृष्ण के नंदगांव और राधा रानी के गांव बरसाने में मुख्य रूप से लट्ठमार होली की परंपरा अत्यंत प्राचीन काल से चली आ रही है। लट्ठमार होली से पहले यहां फूलों की होली और रंगों की होली खेली जाती है, जिसका एक विशेष महत्व माना जाता है। वस्तुतः लट्ठमार होली दो दिन खेली जाती है। एक दिन बरसाने में और एक दिन नंदगांव में खेली जाती हैं, जिसमें बरसाने और नंदगांव के युवक और युवतियां भाग लेती हैं। एक दिन बरसाने में नंदगांव के युवक जाते हैं और बरसाने की हुरियारिन उन पर लट्ठ बरसाती हैं और दूसरे दिन बरसाने के युवक नंदगांव पहुंचकर लट्ठमार होली की परंपरा को निभाते हैं।