आशुतोष ने वरदान दिया कि अब यह बिना शरीर के ही सबको प्रभावित करेगा। इस प्रकार कामदेव अनंग हुए।कामदेव के अनंग होने का दिन चैत्र शुक्ल त्रयोदशी था। इसलिए इस दिन को अनंग त्रयोदशी के नाम से जाना जाता है और इस दिन कामदेव की पूजा-अर्चना की जाती है। कामदेव मंत्र – ऊँ कामदेवाय विद्महे, रति प्रियायै धीमहि, तन्नो अनंग प्रचोदयात्। का जाप किया जाता है। कामदेव मंत्र का जाप प्रेम, आकर्षण, प्रेम संबंधों को सुदृढ़ करने, वैवाहिक जीवन में सुख-शांति लाने, मनचाहे जीवनसाथी की प्राप्ति और संबंधों में सामंजस्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
10 अप्रैल- अनंग त्रयोदशी
भारतीय संस्कृति में मनु महाराज द्वारा प्रतिपादित पुरुषार्थचतुष्टय अर्थात धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष के आधार पर विवेकशील मनुष्यों के द्वारा विविध लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु जीवन व्यतीत करने की वृहत, गरिमामयी व श्रेष्ठ परंपरा रही है। यहां धर्म अर्थात सनातन वैदिक सत्य के मार्ग पर चलते हुए धर्मानुकूल आय अर्थात अर्थ अर्जित करने की परंपरा रही है, क्योंकि वर्तमान धार्मिक परिप्रेक्ष्य में यज्ञ- हवन, पूजा- पाठ, आराधना- उपासना, तीर्थाटन- देशाटन, दान-दक्षिणा आदि का निष्पादन रुपए- पैसे के अभाव में संभव नहीं हो पाने कारण अर्थ के बिना धर्म की राह पर चलना असंभवप्राय हो गया है। यही कारण है कि साधु- संत भी प्रवचन, दान, आश्रम आदि के माध्यम से अर्थोपार्जन में लगे रहते हैं। धर्म व अर्थ की भांति काम भी जीवन का आवश्यक व महत्वपूर्ण अंग है। कहा जाता है कि काम के बाण से कोई बच नहीं सकता। तथा काम की संतुष्टि और सत्य ज्ञान की प्राप्ति के बिना जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति भी संभव नहीं।
यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में काम को भी देवता की भांति पूजा जाता है। यहां काम के देवता कामदेव के नाम से पूजित, उपासित व पौराणिक ग्रंथों में महिमामंडित हैं। यहां कामदेव को प्रेम और आकर्षण का देवता माना जाता है। कामदेव भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के पुत्र हैं। इनके जन्म को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। कुछ स्थानों पर इन्हें दैव जगत में ब्रह्मा के संकल्प का पुत्र बताया गया है, तो कहीं और सृष्टि में धर्म की पत्नी श्रद्वा से इनका आविर्भाव होना बताया गया है। उन्हें भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का अवतार भी कहा गया है। कामदेव के आध्यात्मिक रूप को उनके अनुयायियों द्वारा श्रीकृष्ण भी माना जाता है।
मान्यता है कि स्वयं भगवान विष्णु रमा-वैकुण्ठ में भगवती लक्ष्मी द्वारा कामदेव रूप में आराधित होते हैं। ये इन्दीवराभ चतुर्भुज शंख, पद्म, धनुष और बाण धारण करते हैं। मानसिक क्षेत्र में काम संकल्प से ही व्यक्त होता है। संकल्प के पुत्र हैं- काम और काम के छोटे भाई क्रोध। काम यदि पिता संकल्प के कार्य में असफल हों, तो क्रोध उपस्थित होता है। कामदेव योगियों के आराध्य हैं। ये तुष्ट होकर मन को निष्काम बना देते हैं। यही कारण है कि कवि, भावुक, कलाकार और विषयी इनकी आराधना सौन्दर्य की प्राप्ति के लिए करते हैं। इन पुष्पायुध के पंचबाण प्रख्यात हैं। नीलकमल, मल्लिका, आम्रमौर, चम्पक और शिरीष कुसुम इनके बाण हैं। ये सौन्दर्य, सौकुमार्य और सम्मोहन के अधिष्ठाता हैं।
सृष्टिकर्ता ब्रह्मा तक को उत्पन्न होते ही इन्होंने क्षुब्ध कर दिया। ये तोते के रथ पर मकर अर्थात मछली के चिह्न से अंकित लाल ध्वजा लगाकर विचरण करते हैं। कामदेव का स्वरूप युवा और आकर्षक है। उनके अन्य नाम -रागवृंत, अनंग, कंदर्प, मनमथ, मनसिजा, मदन, रतिकांत, पुष्पवान, पुष्पधंव, समरहरि, चित्तहर, विष्णुनन्दन, लक्ष्मीनन्दन, मनोज आदि भी काफी प्रसिद्ध नाम हैं। कामदेव का विवाह देवी रति से हुआ था। रति भी प्रेम और आकर्षण की देवी हैं। देवी रति के द्वारा इनका पुत्रवत अर्थात पुत्र की भांति पालन करने के बाद इनसे विवाह कर लेने की कथा भी पौराणिक ग्रंथों में कही गई है। कामदेव इतने शक्तिशाली हैं कि उनके लिए किसी प्रकार के कवच की कल्पना नहीं की गई है।
पौराणिक ग्रंथों में कामदेव के धनुष को प्रकृति के सबसे ज्यादा मजबूत उपादानों में से एक कहा गया है। यह धनुष मनुष्य के काम में स्थिर-चंचलता जैसे विरोधाभासी अलंकारों से युक्त है। इसीलिए इसका एक कोना स्थिरता का और दूसरा कोना चंचलता का प्रतीक होता है। वसंत कामदेव का मित्र है। इसलिए कामदेव का धनुष पुष्प निर्मित है। इस धनुष की कमान स्वर विहीन होती है। कामदेव के कमान से तीर छोड़ने पर उसकी आवाज नहीं होती। इसका अर्थ यह है कि काम में शालीनता जरूरी है। तीर कामदेव का सबसे महत्वपूर्ण शस्त्र है। यह किसी को बेधने के पूर्व न तो आवाज करता है और न ही शिकार को संभलने का मौका देता है। इस तीर के तीन दिशाओं में तीन कोने होते हैं, जो क्रमश: तीन लोकों के प्रतीक माने गए हैं। इनमें एक कोना ब्रह्म के अधीन है, जो निर्माण का प्रतीक है। यह सृष्टि के निर्माण में सहायक होता है। दूसरा कोना विष्णु के अधीन है, जो ओंकार या उदर पूर्ति अर्थात पेट भरने के लिए होता है। यह मनुष्य को कर्म करने की प्रेरणा देता है। कामदेव के तीर का तीसरा कोना महेश के अधीन होता है, जो मकार या मोक्ष का प्रतीक है। यह मनुष्य को मुक्ति का मार्ग बताता है।
अर्थात काम न सिर्फ सृष्टि के निर्माण के लिए जरूरी है, बल्कि मनुष्य को कर्म का मार्ग बताने और अंत में मोक्ष प्रदान करने का मार्ग भी सुझाता है। कामदेव के धनुष का लक्ष्य विपरीत लिंगी होता है। इसी विपरीत लिंगी आकर्षण से बंधकर पूरी सृष्टि संचालित होती है। कामदेव का एक लक्ष्य स्वयं काम हैं, जिन्हें पुरुष माना गया है, जबकि दूसरा रति हैं, जो स्त्री रूप में जानी जाती हैं। कवच सुरक्षा का प्रतीक है। कामदेव का रूप इतना बलशाली है कि यदि इसकी सुरक्षा नहीं की गई तो विप्लव ला सकता है। इसीलिए यह कवच कामदेव की सुरक्षा से निबद्ध है। अर्थात सुरक्षित काम प्राकृतिक व्यवहार के लिए आवश्यक माना गया है, ताकि सामाजिक बुराइयों और भयंकर बीमारियों को दूर रखा जा सके।
पौराणिक ग्रंथों में कामदेव के नयन, भौं और माथे का विस्तृत वर्णन अंकित है। उनके नयनों को बाण अथवा तीर की संज्ञा दी गई है। शारीरिक रूप से नयनों का प्रतीकार्थ ठीक उनके शस्त्र तीर की भांति माना गया है। उनकी भवों को कमान का संज्ञा दी गई है। ये शांत होती हैं, लेकिन इशारों में ही अपनी बात कह जाती हैं। इन्हें किसी संग अथवा सहारे की भी आवश्यकता नहीं होती। कामदेव का माथा धनुष के समान है, जो अपने भीतर चंचलता समेटे होता है लेकिन यह पूरी तरह स्थिर होता है। माथा पूरे शरीर का सर्वोच्च हिस्सा है, यह दिशा निर्देश देता है। हाथी को कामदेव का वाहन माना गया है। पौराणिक ग्रंथों में कामदेव को तोते पर बैठे हुए भी बताया गया है। प्रकृति में हाथी एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो चारों दिशाओं में स्वच्छंद विचरण करता है। मादक चाल से चलने वाला हाथी तीन दिशाओं में देख सकता है और पीछे की तरफ हल्की सी भी आहट आने पर संभल सकता है। हाथी का अपनी कानों से हर तरफ का आवाज सुन सकने और अपनी सूंड से चारों दिशाओं में वार कर सकने की भांति ही कामदेव का चरित्र भी है। ये स्वच्छंद रूप से चारों दिशाओं में भ्रमण करते हैं, किसी भी दिशा में तीर छोड़ने को तत्पर रहते हैं। कामदेव किसी भी प्रकार के स्वर को शीघ्र ही भांपने की शक्ति भी रखते हैं।
काम के अनंग होने के संबंध में एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार देवतागण तारकासुर से पीड़ित थे। और भगवान शंकर उस समय समाधिस्थ थे। शिव की अनुपस्थिति में तारकासुर से देवताओं को त्राण दिलाना सिर्फ शिवपुत्र से ही शक्य था। इसलिए देवताओं ने शिव को समाधि से बाहर लाने के लिए कामदेव से विनती की कि वह शिव को समाधि से बाहर लाकर शिव व पार्वती में प्रेम उत्पन्न कर दे, क्योंकि तारकासुर को यह वरदान प्राप्त था कि उसे केवल शिव व पार्वती का पुत्र ही वध कर सकता है। देवताओं की प्रार्थना पर काम व रति शिव को समाधि से बाहर लाने के लिए कैलाश पर्वत पर गए और अपनी कोशिश शुरू की। कामदेव का बाण लगने से शिव का ध्यान भंग हो गया। इससे मन्मथ पुरारि के मन में क्षोभ करने में सफल तो हो गए, पर दूसरे ही क्षण प्रलयंकर की तृतीय नेत्रज्वाला ने इन्हें भस्म कर दिया। यह देख कामपत्नी रति ने रुदन- क्रंदन शुरू कर दिया। रति ने क्रोधवश पार्वती को श्राप दिया कि पार्वती के पेट से कोई भी पु्त्र जन्म नही लेगा। यह श्राप सुनकर पार्वती दुखी हो गई। जब देवताओं ने इस श्राप तथा कामदेव के भस्म होने के बारे मे सुना तो वह बड़े व्याकुल हो गए।
और वे भी शिव की प्रार्थना करने लगे। देवों की प्रार्थना व कामपत्नी रति के विलाप स्तवन से तुष्ट आशुतोष ने वरदान दिया कि अब यह बिना शरीर के ही सबको प्रभावित करेगा। इस प्रकार कामदेव अनंग हुए। शिव ने पार्वती से विवाह किया। तथा उनसे उत्पन्न पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया। कामदेव फिर द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के यहाँ रुक्मिणी के पुत्र रूप में उत्पन्न हुए। भगवान प्रद्युम्न चतुर्व्यूह में से हैं। ये मन के अधिष्ठाता हैं। कामदेव के अनंग होने का दिन चैत्र शुक्ल त्रयोदशी था। इसलिए इस दिन को अनंग त्रयोदशी के नाम से जाना जाता है और इस दिन कामदेव की पूजा-अर्चना की जाती है। कामदेव मंत्र – ऊँ कामदेवाय विद्महे, रति प्रियायै धीमहि, तन्नो अनंग प्रचोदयात्। का जाप किया जाता है। कामदेव मंत्र का जाप प्रेम, आकर्षण, प्रेम संबंधों को सुदृढ़ करने, वैवाहिक जीवन में सुख-शांति लाने, मनचाहे जीवनसाथी की प्राप्ति और संबंधों में सामंजस्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है।