one nation one culture : ‘एक राष्ट्र और एक कुछ भी’, यह अभी तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शगल था। ‘एक राष्ट्र, एक कर’ यानी जीएसटी से शुरू करके ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ तक उनकी सरकार ने ऐसे अनेक नारे बनाए हैं।
यह अलग बात है कि भारत जैसे विशाल और विविधता वाले राष्ट्र में हर नागरिक के लिए सब कुछ एक जैसा करना असंभव की तरह है। जीएसटी से भी कहां एक कर की व्यवस्था बनी। जीएसटी में ही पांच किस्म के कर लगते हैं और उसके अलावा कम से कम एक दर्जन किस्म के कर अलग से लगते हैं।
उत्तराखंड की सरकार एकसमान कानून ले आई लेकिन उसमें भी आदिवासी समाज को बाहर कर दिया। यानी वहां भी सबके लिए एक कानून नहीं है। अब इस शगल में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ भी शामिल हो गया है। (one nation one culture)
बेंगलुरू में तीन दिन की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में ‘एक राष्ट्र, एक संस्कृति’ की बात दोहराई गई है। संघ के नंबर दो पदाधिकारी और सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि ‘एक राष्ट्र, एक संस्कृति’ की पहल इसलिए की गई थी ताकि देश के लिखित इतिहास की गड़बड़ियों को ठीक किया जा सके और एक सद्भाव वाला भारत बनाया जा सके।
इसके बाद उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि अब समय आ गया है कि ‘एक राष्ट्र, एक संस्कृति’ के विचार को आगे बढ़ाया जाए। (one nation one culture)
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क्या यह एक खतरनाक विचार है?
कोई नौ साल पहले 2016 में संघ के विचारक एमजी वैद्य ने ‘एक राष्ट्र, एक संस्कृति’ शीर्षक से एक लेख लिखा था, जिससे इस अवधारणा पर विचार आगे बढ़ा। उन्होंने कहा कि देश के लिए एक भाषा या एक धर्म की बजाय एक साझा मूल्य प्रणाली की जरुरत है। (one nation one culture)
क्या संघ इस साझा मूल्य प्रणाली को ही एक संस्कृति कह रहा है? उन्होंने खुद यह सवाल उठाया कि क्या यह एक खतरनाक विचार है? लेकिन उससे बड़ा प्रश्न संस्कृति का है। क्या भारत एक संस्कृति या एक साझा मूल्य प्रणाली वाला देश हो सकता है?
वास्तविकता यह है कि इतिहास में कोई कालखंड ऐसा नहीं रहा है, जब भारत भूमि पर एक साझा मूल्य प्रणाली रही हो तो अब कैसे यह विचार सामने लाया जा रहा है? भारत कभी भी एक संस्कृति वाला देश नहीं रहा है। (one nation one culture)
हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इसे अनेक ‘संस्कृतियों का समुच्चय’ कहा है। अनेक संस्कृतियों के मेल से भारत की सभ्यता का निर्माण हुआ है। इतना ही नहीं ये संस्कृतियां परस्पर विरोधाभासी भी हैं और इसी कारण आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भारत की सभ्यता को ‘विरूद्धों में सामंजस्य’ साधने वाला कहा है।
तभी राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की एक संस्कृति वाली बात हैरान करने वाली है। संघ का दावा एक सांस्कृतिक संगठन होने का है लेकिन क्या उसे पता नहीं है कि भारत एक संस्कृति वाला देश नहीं हैं? (one nation one culture)
संस्कृति और सभ्यता का अंतर ? (one nation one culture)
क्या उसे संस्कृति और सभ्यता का अंतर नहीं पता है? क्या एक संस्कृति वाला देश पांच हजार साल तक अपनी निरंतरता बनाए रख सकता है? भारत की सभ्यता पांच हजार साल से जीवित बची है। (one nation one culture)
लेकिन इस दौरान अनेक संस्कृतियां नष्ट हुईं और नई संस्कृतियों का जन्म हुआ लेकिन वह सभ्यता के विशाल समूह का हिस्सा बनी रहीं। वैसे भी भारत में एक संस्कृति की बात कैसे की जा सकती है, जहां कोस कोस पर पानी और दो कोस पर बानी बदलने की बात कही जाती हो।
पानी और बानी बदलने के साथ ही संस्कृति के कई तत्व भी बदलते जाते हैं। देश में सैकड़ों भाषाएं और हजारों बोलियां हैं। हर बोली के साथ उसकी अपनी संस्कृति जुड़ी हुई है। (one nation one culture)
हर भाषा और बोली के साथ उसके अपने त्योहार और परंपराएं जुड़ी हुई हैं। यहां तक की धार्मिक मान्यताएं भी भौगोलिक क्षेत्र के हिसाब से बदल जाती हैं। इस लिहाज से कह सकते हैं कि संस्कृति एक व्यापक अवधारणा का एक बहुत छोटा हिस्सा है।
समाज में जो स्थान व्यक्ति का होता है सभ्यता में वही स्थान संस्कृति का है। जैसे किसी पार्टी की अपनी संस्कृति होती है, किसी संस्थान की अपनी संस्कृति होती है, किसी उद्योग घराने की अपनी संस्कृति होती है। उसी तरह जाति, धर्म, भाषा, बोली या भौगोलिक क्षेत्र के हिसाब से हजारों संस्कृतियां एक समय में विद्यमान रहती हैं।
हिंदू धर्म में कितने तरह की पूजा पद्धति
इस आलेख का मकसद संस्कृति और सभ्यता के प्रश्न पर बहुत गहराई से विचार करना नहीं है। लेकिन जिसने भी एमएन श्रीनिवास या श्यामा चरण दुबे की कोई भी किताब पढ़ी है उसको पता है कि भारत में कितनी सामाजिक भिन्नताएं हैं, कितनी परंपराएं हैं, कितनी मान्यताएं और लोक व्यवहार हैं, कितनी भाषा और कितनी बोलियां हैं, किस तरह के खान-पान और पहनावे की भिन्नता है और ये सारी भिन्नताएं अलग अलग संस्कृतियों को जन्म देती हैं।
विवाह से लेकर अंतिम संस्कार तक की कितनी विधियां इस देश में प्रचलित हैं क्या यह किसी को बताने की जरुरत है? अकेले हिंदू धर्म में कितने तरह की पूजा पद्धति है, कितने तरह की विवाह संस्कृति है या कितने तरह की अंतिम संस्कार की विधियां हैं? (one nation one culture)
एमएन श्रीनिवास ने ‘यादों से रचा एक गांव’ में लिखा है कि कर्नाटक में मैसूर के इलाके में हिंदुओं, खास कर सवर्णों में मामा और भांजी या ममेरे और फुफुरे भाई बहन के बीच विवाह को श्रेष्ठ माना जाता है।
क्या उत्तर भारत के किसी राज्य में हिंदू परिवार में इस तरह की बात सोची भी जा सकती है? उत्तर भारत में ही हरियाणा या पश्चिमी उत्तर प्रदेश या कुछ अन्य इलाकों में जाटों और कुछ अन्य जातिय समूहों के बीच विवाह के लिए नौ गोत्र बचाने होते हैं। जबकि देश के बड़े इलाके में सिर्फ पिता के गोत्र को छोड़ कर बाकी सबमें विवाह हो सकता है। (one nation one culture)
कर्नाटक के लिंगायत समुदाय में लोगों को मृत्यु के बाद दफनाने की परंपरा है। विवाह और अंतिम संस्कार से अलग अगर पूजा पद्धति की बात करें तो बिहार, उत्तर प्रदेश से लेकर देश के बड़े हिस्से में नवरात्रि मनाई जाती है, जिसमें शुद्ध सात्विक खान पान होता है लेकिन पश्चिम बंगाल में तीन दिन के दुर्गापूजा में बलि होती है और वध किए गए पशु का मांस ही देवी का प्रसाद होता है।
यह परंपरा बिहार, UP में
बलि की यह परंपरा बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे कुछ अन्य राज्यों में भी है। क्या शाक्त, शैव और वैष्णव परंपराओं को मिला कर एक बनाने की बात की जा सकती है? पिछले कुछ समय से समूचे देश को जबरदस्ती वैष्णव परंपरा में ढालने का प्रयास हो रहा है क्या एक संस्कृति की बहस उसी का हिस्सा है?
बहरहाल, जब हिंदू समुदाय के अंदर ही आप विवाह के या अंतिम संस्कार की साझा पद्धति नहीं बना सकते हैं, खानपान और पहनावे की साझा पद्धति नहीं विकसित कर सकते हैं, पूजा पद्धति को एक जैसा नहीं बना सकते हैं तो यह उम्मीद कैसे कर सकते हैं कि जिस देश में दुनिया के हर धर्म के लोग रहते हैं उनकी एक जैसी संस्कृति बना दें? मुस्लिम समुदाय के सभी 72 फिरके भारत में रहते हैं, जिनकी अपनी अलग अलग मान्यताएं हैं। (one nation one culture)
उन्हें कैसे एक किया जा सकेगा? उत्तराखंड के समान नागरिक कानून में आदिवासियों को बाहर रखा गया। क्यों? क्योंकि उनकी बिल्कुल अलग संस्कृति है और ऐसा नहीं है कि देश की समूची आदिवासी आबादी की एक जैसी संस्कृति है।
उनके अंदर भी संस्कृतियों की भिन्नता है। राष्ट्रवाद को संस्कृति से जोड़ने की गलती नहीं करनी चाहिए। जिस तरह से एक संविधान, एक राष्ट्रगान, एक राष्ट्रगीत, एक राष्ट्रीय झंडा आदि बना दिया गया।
उस तरह से एक राष्ट्रीय संस्कृति नहीं बनाई जा सकती है। भारत सैकड़ों विरोधाभासी संस्कृतियों का समुच्चय है और यह इसी रूप में रहे तो इसकी निरंतरता सुनिश्चित हो पाएगी। (one nation one culture)