Wednesday

26-03-2025 Vol 19

राज्यों की वित्तीय सेहत बिगड़ रही है

states inancial health: उत्तर भारत के राज्यों के मुकाबले अपेक्षाकृत समृद्ध तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने पिछले दिनों एक कार्यक्रम में कहा कि उनके राज्य की मासिक आय साढ़े 18 हजार करोड़ रुपए है।

इसमें से साढ़े छह हजार करोड़ वेतन, भत्ते और पेंशन में चला जाता है और साढ़े छह हजार करोड़ रुपया कर्ज के ब्याज का भुगतान करने में जाता है। सभी तरह की लोक कल्याण की योजनाओं और विकास की परियोजनाओं के लिए सिर्फ साढ़े पांच हजार करोड़ रुपए बचते हैं।

उनकी सरकार ने बेरोजगारों को हर महीने चार हजार रुपए देने की घोषणा की है इस बारे में पूछे जाने पर वे सवाल टाल गए लेकिन कहा कि परिसीमन और एक देश, एक चुनाव की बजाय इस पर पूरे देश में चर्चा होनी चाहिए। (states inancial health)

रेवंत रेड्डी ने कहा कि उनकी सरकार के पास निवेश करने और पूंजीगत खर्च के लिए पैसे ही नहीं है। उनका कहना था कि तेलंगाना हर महीने पांच सौ करोड़ रुपया भी पूंजीगत खर्च करने की स्थिति में नहीं है। अब सोचें जब यह स्थिति तेलंगाना जैसे समृद्ध राज्य की है तो बाकी राज्यों का क्या हाल होगा?

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वास्तविकता यह है कि धीरे धीरे सभी राज्यों की वित्तीय स्थिति खराब होती जा रही है। मुफ्त की योजनाओं के कारण राज्यों की हालत बिगड़ रही है। पिछले हफ्ते बुधवार, 19 मार्च को राज्यसभा के सभापति और उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सदन में कहा कि मुफ्त की योजनाओं और सब्सिडी पर चर्चा होनी चाहिए। (states inancial health)

उन्होंने कहा कि इसके लिए तत्काल एक राष्ट्रीय नीति बनाने की जरुरत है। उप राष्ट्रपति ने पक्ष और विपक्ष को इस मसले पर साथ बैठ कर बात करनी चाहिए। उन्होंने एक और अहम बात यह कही कि देश तभी विकास कर सकता है, जब पूंजीगत खर्च के लिए धन उपलब्ध हो।

यही बात रेवंत रेड्डी ने कहा है कि सरकार के पास राज्य के विकास की योजनाओं पर पूंजीगत खर्च के लिए पैसे नहीं बचते हैं। वेतन, भत्ता, पेंशन और सरकारी संस्थानों के रखरखाव यानी स्थापना पर खर्च से जो पैसे बचते हैं

उसका ज्यादातर पैसा कर्ज का ब्याज चुकाने और मुफ्त की नई योजनाओं व पुरानी सब्सिडी योजना पर खर्च हो रहा है। (states inancial health)

मुफ्त की योजनाएं चलाए रखने के लिए राज्यों को नए कर्ज लेने की जरुरत पड़ रही है क्योंकि राज्य इतना राजस्व नहीं जुटा पा रहे हैं।

महिलाओं को नकद पैसे देने की योजना

अभी सात राज्यों में महिलाओं को नकद पैसे देने की योजना चल रही है। इस योजना पर करीब सवा लाख करोड़ रुपया हर साल खर्च किया जा रहा है। इसमें सबसे ज्यादा ढाई हजार रुपए महीना झारखंड की सरकार दे रही है। (states inancial health)

इस योजना पर झारखंड सरकार का सालाना खर्च 17 हजार करोड़ रुपए से कुछ ज्यादा है। एक लाख 16 हजार करोड़ रुपए के बजट वाले प्रदेश में सिर्फ एक योजना पर 10 फीसदी खर्च हो रहा है।

वेतन, भत्ते, पेंशन और ब्याज के भुगतान के बाद सरकार के पास कुछ नहीं बच रहा है। इसका कारण यह है कि मइयां सम्मान योजना या मुफ्त बिजली देने जैसी दूसरी नई मुफ्त की योजनाओं के अलावा सरकार को बहुत सारी सब्सिडी देनी होती है।

शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, ऊर्जा, कृषि आदि सभी सेक्टरों में सब्सिडी देनी होती है। तभी चालू वित्त वर्ष में सरकार ने सभी विभागों से फंड सरेंडर करा कर महिलाओं को नकद पैसे दिए हैं। हालांकि उसमें भी देरी हुई। (states inancial health)

लेकिन सरकार किसी तरह से इस योजना को चला रही है। राज्य सरकार को उम्मीद है कि महिलाओं के खाते में उसने जो पैसे ट्रांसफर किए हैं वह लौट कर बाजार में आएगा और उससे अर्थव्यवस्था की गाड़ी तेजी से चलेगी।

लेकिन यह सरकार की सदिच्छा है। अभी अर्थव्यवस्था और रोजगार को लेकर जैसा अनिश्चित समय है उसमें उपभोक्ता खर्च में बहुत बढ़ोतरी होगी इसकी संभावना कम ही दिख रही है।

महाराष्ट्र में लड़की बहिन योजना (states inancial health)

महाराष्ट्र में लड़की बहिन योजना के तहत सरकार डेढ़ हजार रुपए हर महीने दे रही है और चुनाव में इसे बढ़ा कर 21 सौ करने का वादा किया गया था। हालांकि सरकार अभी यह वादा पूरा करने के मूड में नहीं है।

अभी डेढ़ हजार रुपए ही मिल रहे हैं। डेढ़ हजार रुपए के हिसाब से भी एक मोटा आकलन 46 हजार करोड़ रुपए सालाना का है। अगर 21 सौ रुपया महीना किया जाता है तो यह खर्च 72 हजार करोड़ रुपए तक जा सकता है। (states inancial health)

महाराष्ट्र में और भी मुफ्त की योजनाएं चल रही हैं, जिनका कुल खर्च हर महीने आठ हजार करोड़ रुपए यानी 96 हजार करोड़ रुपए साल का है।

राज्य सरकार ने अगले वित्त वर्ष के लिए जो बजट पेश किया है उसमें लड़की बहिन योजना के मद में 10 हजार करोड़ रुपए का कम आवंटन हुआ है। (states inancial health)

चाहे महाराष्ट्र की सरकार हो या झारखंड की सभी सरकारें इस योजना के लाभार्थियों के लिए शर्तें सख्त करती जा रही हैं और लाभार्थियों की सूची छोटी कर रही हैं।

पार्टियों का चुनावी एंजेडा

जाहिर है पार्टियां चुनाव जीतने के लिए बड़ी बड़ी घोषणाएं कर देती हैं लेकिन जीत कर सत्ता में आने के बाद वे उन वादों को पूरा करने में असहज महसूस करने लगती हैं। तब उनको सरकारी खजाने का ख्याल आता है। (states inancial health)

जब लाभार्थियों को पैसे ट्रांसफर करने का समय आता है तब वित्तीय अनुशासन और विकास की योजनाओं के लिए पैसे की कमी का ध्यान आता है। इसका मतलब है कि अब वह समय आ गया है कि इस किस्म की योजनाओं पर गंभीरता से विचार हो।

सत्तारूढ़ और विपक्षी पार्टियों को एक साथ आकर इस पर विचार करना चाहिए कि उनकी प्राथमिकता क्या है? शिक्षा और स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को बेहतर करके आम लोगों को सस्ती और बेहतर शिक्षा व स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराना प्राथमिकता है या हजार, डेढ़ हजार रुपए नकद बांटना प्राथमिकता है?

सड़क, बिजली और पानी से लेकर गुणवत्तापूर्ण न्यायिक सेवा की उपलब्धता सुनिश्चित करना और रोजगार की व्यवस्था करके सम्मानपूर्वक जीने की स्थितियां पैदा करना सरकारों की प्राथमिकता होनी चाहिए। (states inancial health)

सात राज्यों में सिर्फ महिला सम्मान की योजनाओं पर करीब सवा लाख करोड़ रुपया खर्च किया जा रहा है। इनमें से महिलाओं को 11 सौ से लेकर ढाई हजार रुपए तक मिल रहे हैं। कोई भी समझदार व्यक्ति हिसाब लगा सकता है कि इतने कम पैसे में किसी महिला या उसके परिवार की आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं हो सकती है।

लेकिन अगर हर साल एकमुश्त सवा लाख करोड़ रुपए विकास की परियोजनाओं पर खर्च हों तो उससे रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे और करोड़ों लोगों का जीवन बेहतर होगा। हालांकि इसका यह मतलब नहीं है कि सारी योजनाओं को बंद कर दिया जाए।

जरुरत इस बात की है कि लोक कल्याण के लिए जरूरी योजनाओं और मुफ्त की योजनाओं में फर्क किया जाए। लोक कल्याण की योजनाओं पर ज्यादा खर्च हो और मुफ्त की योजनाओं को सीमित किया जाए। (states inancial health)

सुप्रीम कोर्ट ने कई बार इस पर टिप्पणी की है और वैकल्पिक रास्ता तलाशने की जरुरत बताई है। उप राष्ट्रपति ने भी सभी दलों के नेताओं को आपस में विचार कर कोई रास्ता निकालने का सुझाव दिया है।

यह समझ लेना चाहिए कि ऐसी योजनाओं से जितना बड़ा आर्थिक बोझ राज्यों पर पड़ रहा है उसे देखते हुए लगता नहीं है कि ज्यादा समय तक इनको चलाए रखा जा सकेगा। (states inancial health)

अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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